अर्थूणा पर रावल जैत्रसिंह का आक्रमण :- अर्थूणा वर्तमान बांसवाड़ा जिले के अंतर्गत आता है। अर्थूणा पर मालवा के परमार राजा देवपाल के पुत्र जयतुगिदेव (जैत्रमल्ल) का शासन था।
परमार राजाओं ने मेवाड़ पर पहले भी अधिकार किया था, जिस वजह से प्रतिशोध स्वरूप रावल जैत्रसिंह ने अर्थूणा पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में मेवाड़ की तरफ से मदन ने अर्थूणा के शासक जैत्रमल्ल से लड़कर अपना बल प्रदर्शित किया था।
मदन :- मेवाड़ की राजधानी नागदा के तलारक्ष (नगर रक्षक) योगराज के चौथे पुत्र क्षेम को रावल जैत्रसिंह ने चित्तौड़ की कोतवाली सौंपी थी। क्षेम की पत्नी हीरू ने एक पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम रत्न रखा गया। मदन रत्न के भाई थे। मदन टांडरण जाति के उद्धरण के प्रपौत्र थे।
मालूम पड़ता है कि योगराज का परिवार उस समय मेवाड़ हितैषियों में अव्वल दर्जा रखता था। इन्हें बहुत से अधिकार प्राप्त थे। शिलालेखों में भी इन्हें स्थान देकर इनका सम्मान किया गया।
1222 ई. – इल्तुतमिश का आक्रमण व नागदा का विध्वंस :- इल्तुतमिश का परिचय :- कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाई थी, जहां 1210 ई. में चौगान खेलते वक्त घोड़े से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई।
इस वक्त इल्तुतमिश बदायूं का सूबेदार था। कुतुबुद्दीन के बाद इल्तुतमिश ने सल्तनत संभाली और दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। इसने उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर को लूटकर अपनी मानसिकता का परिचय दिया। इल्तुतमिश ने भिलसा के मंदिरों का भी विध्वंस कर दिया।
दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश को मेवाड़ की व्यापारिक उन्नति और रावल जैत्रसिंह का वर्चस्व खटकने लगा। उसने रावल जैत्रसिंह के पास अधीनता स्वीकार करने के प्रस्ताव भिजवाए, परन्तु मेवाड़ी पाग झुकने को तैयार नहीं थी।
नतीजतन सुल्तान इल्तुतमिश ने भारी भरकम फ़ौज सहित मेवाड़ पर आक्रमण करने हेतु कूच किया। इल्तुतमिश मेवाड़ का विध्वंस करना चाहता था। उसके लिए नैतिकता का कोई महत्व शेष नहीं रह गया था।
इल्तुतमिश ने नादेशमा के सूर्यायतन मंदिर को ध्वस्त कर दिया, इस्लामी आक्रमण के द्वारा मेवाड़ में तोड़ा जाने वाला यह पहला मंदिर था। आगे जाकर उसने एक जैन मंदिर को भी ध्वस्त किया। इल्तुतमिश मेवाड़ की धार्मिक आस्था पर प्रहार करते हुए लगातार आगे बढ़ता जा रहा था।
नादेशमा के शिलालेख (1222 ई.) से जानकारी मिलती है कि इल्तुतमिश के मेवाड़ पर आक्रमण के समय मेवाड़ की राजधानी नागदा के कोषाध्यक्ष डूंगरसिंह थे। मेवाड़ की राजधानी होने के कारण नागदा उस समय समृद्ध स्थिति में था।
इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया। इसके आक्रमण 7 वर्षों तक (1229 ई. तक) लगातार जारी रहे व इसने नागदा को नष्ट कर दिया। नागदा के हज़ारों लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े व कई मंदिर ध्वस्त कर दिए गए।
इल्तुतमिश की क्रूरता और हृदयहीनता के बारे में ‘हम्मीरमदमर्दन’ ग्रंथ में लिखा है कि “सुल्तान इल्तुतमिश की फ़ौज ने नागदा के निवासियों को तलवार के घाट उतारा, लोगों में त्राहि-त्राहि मच गई और बच्चों को निर्दयता से मारा गया।”
एकलिंग जी मंदिर के निकट स्थित सहस्त्रबाहु मंदिर (वर्तमान में सास बहू मंदिर नाम से प्रसिद्ध) को खंडित कर दिया गया। उस समय नागदा व आहाड़, दोनों ही मेवाड़ की राजधानियां हुआ करती थीं।
रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश के कदम तो रोक दिए, उसे नागदा से आगे नहीं बढ़ने दिया, परन्तु नागदा के विध्वंस को रावल जैत्रसिंह भी नहीं रोक सके। नागदा का नरसंहार रावल जैत्रसिंह के लिए असहनीय था। मेवाड़ के शासकों ने नागदा को इसके बाद फिर कभी राजधानी नहीं बनाया।
चित्तौड़गढ़ को राजधानी घोषित करना :- इल्तुतमिश के आक्रमण से नागदा के नष्ट होने के बाद रावल जैत्रसिंह ने स्थिर रूप से चित्तौड़ को मेवाड़ की राजधानी घोषित किया।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के महत्व को समझते हुए रावल जैत्रसिंह ने इस दुर्ग की प्राचीरों का निर्माण कार्य शुरू करवाया। क्योंकि रावल जैत्रसिंह नहीं चाहते थे कि नागदा विध्वंस जैसी घटना दोबारा घटे। रावल जैत्रसिंह के समय से चित्तौड़गढ़ का वास्तविक उत्थान शुरू हुआ।
1223 ई. – सिंध की फौज को शिकस्त :- नासिरुद्दीन नामक एक गुलाम ने शहाबुद्दीन गौरी की सल्तनत के एक भाग सिंध पर कब्ज़ा कर लिया था। फिर जलालुद्दीन रवारिज्म ने नासिरुद्दीन को परास्त किया।
जलालुद्दीन ने अपनी शक्तियों का विस्तार करने के लिए अपने सेनापति खवास खां को अन्हिलवाड़े पर आक्रमण करने भेजा। खवास खां के नेतृत्व में सिंध की फौज ने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़े पर आक्रमण किया व धन दौलत लूटकर लौटने लगे।
जब ये फौज मेवाड़ के निकट पहुंची तो, रावल जैत्रसिंह ने इस फौज पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में रावल जैत्रसिंह विजयी रहे। खवास खां जीवित बचने में सफल रहा।
अगले भाग में इल्तुतमिश और रावल जैत्रसिंह के बीच हुए भूताला के युद्ध के बारे में लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)