1229 ई. – भूताला का युद्ध :- भूताला गांव मेवाड़ की राजधानी नागदा के निकट स्थित है। गोगुन्दा से नागदा जाने वाली घाटी के बीच यह युद्ध लड़ा गया था। भूताला का युद्ध दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश व मेवाड़ के रावल जैत्रसिंह के बीच हुआ।
इस युद्ध में गुहिलों के साथ चौहान, चंदाणा, सोलंकी, परमार आदि राजपूतों के अलावा चारण और भील योद्धा भी थे। इल्तुतमिश रावल जैत्रसिंह को अपमानित करना चाहता था।
इल्तुतमिश ने अपने सेनापतियों को आदेश दे रखा था कि रावल जैत्रसिंह को जीवित पकड़ा जाए। मेवाड़ की तरफ से तलारक्ष योगराज के ज्येष्ठ पुत्र पमराज भूताला के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
इल्तुतमिश की सेना ने रावल जैत्रसिंह को घेरकर बन्दी बनाने का प्रयास किया, परन्तु मेवाड़ी बहादुरों ने ऐसा होने नहीं दिया। युद्ध में कई घावों से जख्मी हो चुके रावल जैत्रसिंह को मेवाड़ी राजपूतों ने ढाल बनकर उनके प्राणों की रक्षा की।
उन्होंने रावल जैत्रसिंह को नागदा के ही एक घर में छिपा दिया। इल्तुतमिश ने अपने सैनिकों से नागदा के हर एक घर की तलाशी ली, लेकिन सभी घर सुनसान मिले। इल्तुतमिश के आदेश से नागदा के घरों को जला दिया गया।
नागदा के मंदिरों का विध्वंस करने का आदेश दिया गया। इस युद्ध में रावल जैत्रसिंह की पराजय हुई, परन्तु उन्होंने पहाड़ियों में अपनी सेना एकत्र कर ली, जिससे इल्तुतमिश आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सका।
यदि रावल जैत्रसिंह इस युद्ध में पकड़े जाते, तो इल्तुतमिश निश्चित ही मेवाड़ को रौंदते हुए गुजरात का ध्वंस कर देता। गुजरात के इतिहास में एक नाटक में अतिशयोक्ति से भरा वर्णन लिखा है कि
“मंत्रियों वास्तुपाल और तेजपाल ने सुल्तान और मेवाड़ के राजा जैत्रसिंह के बीच हुई लड़ाई का हाल मंगवाने के लिए एक गुप्तचर को भेजा। गुप्तचर ने बताया कि नागदा का विध्वंस हो गया था, फिर मैंने वहां जाकर कहा कि राजा वीरधवल बघेल आ रहे हैं, तो यह सुनकर म्लेच्छ भाग निकले।”
वास्तव में इस नाटक के अंश में कोई सच्चाई नहीं है। बल्कि वास्तविकता तो ये थी कि रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश के कदम रोककर गुजरात को विध्वंस से बचा लिया।
इल्तुतमिश इससे पहले रणथंभौर, मंडोर, अजमेर जैसे सामरिक महत्व के किले अपने अधीन कर चुका था, तो भला नागदा विध्वंस करने के बाद आगे बढ़े बिना व अधिकार किए बिना लौट जाना उसकी फितरत में कैसे होता। उसको अवश्य ही रावल जैत्रसिंह ने लौटने पर विवश कर दिया था।
भूताला का युद्ध मेवाड़ में हुए 13वीं सदी के युद्धों में सबसे बड़ा व प्रसिद्ध युद्ध था। इस युद्ध का वर्णन कई लेखों में किया गया। मेवाड़ के इतिहास में यह पहला युद्ध था, जिसमें मेवाड़ के शासक ने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान को सीधी लड़ाई में टक्कर दी।
कुछ लेखक इस युद्ध में रावल जैत्रसिंह को विजयी बताते हैं, परन्तु मेरे विचार से इस युद्ध के परिणाम हल्दीघाटी युद्ध की तरह ही रहे। दोनों ही परिस्थितियों में शत्रु सेना युद्धभूमि से आगे नहीं बढ़ सकी।
रज़िया सुल्तान :- 1236 ई. में बीमारी के चलते दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश की पुत्री रज़िया दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठी। रज़िया के कई विरोधी खड़े हो गए। रज़िया ने पर्दा त्याग दिया और पुरुषों जैसे वस्त्र पहनकर दरबार में आने लगी।
रज़िया अपने भाई बहराम शाह से परास्त हुई। 1240 ई. में कैथल के पास डाकुओं ने रज़िया का कत्ल कर दिया। 1240 ई. से 1242 ई. तक बहराम शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
उसके बाद अलाउद्दीन मसूद शाह ने गद्दी सम्भाली। मसूद शाह भी कमज़ोर सुल्तान था। इसलिए रावल जैत्रसिंह भी आक्रमणों से बचे रहे। क्योंकि इस समय सुल्तान खुद ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।
1242 – 1243 ई. – गुजरात के राजा त्रिभुवनपाल सौलंकी से लड़ाई :- मेवाड़ के इलाके कोट्टडक (वर्तमान कोटड़ा) पर राजा त्रिभुवनपाल ने अधिकार कर लिया। रावल जैत्रसिंह ने कोटड़ा पर आक्रमण किया।
इस लड़ाई में मेवाड़ की राजधानी नागदा के तलारक्ष योगराज के पुत्र महेंद्र के पुत्र बालाक वीरगति को प्राप्त हुए। बालाक की पत्नी भोली उनके साथ सती हुईं। लड़ाई में विजय के बाद कोटड़ा पर रावल जैत्रसिंह का अधिकार हो गया।
राणा वीरधवल का संधि प्रस्ताव ठुकराना :- 1243 ई. के आसपास बघेलवंशी राणा वीरधवल ने गुजरात के राजा त्रिभुवनपाल सौलंकी से उनका राज्य छीन लिया।
फिर राणा वीरधवल ने अधीनता स्वीकार करवाने के उद्देश्य से अपने मंत्रियों वास्तुपाल व तेजपाल के ज़रिए एक सन्धि प्रस्ताव मेवाड़ के रावल जैत्रसिंह के पास भी भिजवाया, जिसे रावल जैत्रसिंह ने ठुकरा दिया।
राणा वीरधवल का कृपापात्र जयसिंह सूरी अपने द्वारा लिखित नाटक ‘हम्मीरमदर्दन’ में वीरधवल से कहलाता है कि “जैत्रसिंह के अभिमान को तो देखो, वह अपने शत्रु राजाओं की उम्र की साँसों को पी रहा है। कृष्ण सर्प (काले सांप) जैसी तलवार के अभिमान के कारण मेदपाट (मेवाड़) के राजा जयतल (जैत्रसिंह) ने हमारे साथ मेल न किया।”
नासिरुद्दीन महमूद :- अलाऊद्दीन मसूद शाह के बाद 1246 ई. में नासिरुद्दीन महमूद ने दिल्ली सल्तनत का तख़्त सम्भाला। ये इल्तुतमिश का बेटा था। नासिरुद्दीन नाममात्र का सुल्तान था। इस वक्त सल्तनत की वास्तविक सत्ता बलबन के हाथों में थी।
रावल जैत्रसिंह का देहान्त :- 40 वर्षों के लंबे व गौरवशाली शासनकाल के बाद 1253 ई. में रावल जैत्रसिंह का देहांत हो गया। रावल जैत्रसिंह के पुत्र रावल तेजसिंह हुए, जो कि मेवाड़ के अगले शासक बने।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)