रावल जैत्रसिंह (शासनकाल 1213 ई. से 1253 ई.) का परिचय व व्यक्तित्व :- रावल जैत्रसिंह के पिता रावल पद्मसिंह थे। रावल जैत्रसिंह स्वाभिमानी, बहादुर व कुलाभिमानी थे। ये मेवाड़ के पहले ऐसे शासक थे, जिन्होंने सीधे ही दिल्ली के सुल्तान से टक्कर ली।
रावल जैत्रसिंह ने न केवल अपने शत्रुओं को परास्त किया, बल्कि इन्होंने उन राजवंशों को भी परास्त किया, जिनके पूर्वजों ने कभी मेवाड़ पर आक्रमण किए थे। बप्पा रावल को मेवाड़ का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है, परन्तु सही मायनों में मेवाड़ की स्वतंत्रता की जड़ें रावल जैत्रसिंह ने ही जमाई थीं।
रावल पद्मसिंह तक के शासकों ने कहीं न कहीं अन्य राजवंशों से समझौते भी किए और कुछ हद तक मेवाड़ के हिस्से उनके अधीन भी रहे। लेकिन रावल जैत्रसिंह ने मेवाड़ को पूर्ण रूप से एक ध्वज के नीचे लाने की ठान ली।
मेवाड़ में गुहिलवंश का वास्तविक उदय रावल जैत्रसिंह के कारण ही सम्भव हुआ। अन्यथा इनसे पहले के गुहिल शासक चालुक्यों, चौहानों, राष्ट्रकूटों, परमारों व प्रतिहारों से जूझते दिखे थे।
बप्पा रावल के बाद मेवाड़ के सबसे पराक्रमी शासक रावल जैत्रसिंह हुए। इनके अन्य नाम हैं :- जयतल, जयसल, जयसिंह, जयंतसिंह, जीतसिंह। रावल जैत्रसिंह की वीरता का वर्णन कई प्रशस्तियों में किया गया है।
रावल समरसिंह के शासनकाल में 1273 ई. में खुदवाई गई चीरवा प्रशस्ति के अनुसार “रावल जैत्रसिंह अपने शत्रुओं के लिए प्रलयकालीन आंधी की तरह थे, जिनको देखकर हर कोई कांप उठता था। उनके आगे मालवपति मिमियाने लगा, गुजरातस्वामी घबरा उठा, मारवाड़ वाले म्लान पड़ गए, जांगलदेश झगड़ा करना भूल गया और सुल्तान तक सकपका गया।”
रावल जैत्रसिंह के शासनकाल का पहला शिलालेख :- 1213 ई. में रावल जैत्रसिंह मेवाड़ के शासक बने। रावल जैत्रसिंह के शासनकाल का पहला शिलालेख 1213 ई. का मिला है, जो कि एकलिंगजी मंदिर के चौक में नदी के निकट वाली एक छोटी सी स्मारक शिला पर खुदा था।
मेवाड़ के मुख्य मंत्री :- रावल जैत्रसिंह के शासनकाल में मेवाड़ के महामात्य (मुख्य मंत्री) जगतसिंह थे। इस बात की जानकारी ‘ओध नियुक्ति’ नामक जैन ग्रंथ से मिलती है।
मेवाड़ के श्रीकरणाधिकार :- 1252 ई. में आहाड़ में लिखित ‘पाक्षिक सूत्र वृत्ति’ ग्रंथ से जानकारी मिलती है कि रावल जैत्रसिंह के समय श्रीकरणाधिकार महत्तर (महता) तल्हण थे।
नाडौल के चौहानों से प्रतिशोध :- मेवाड़ के शासक सामंतसिंह के शासनकाल में नाडौल के चौहान राजा कीर्तिपाल ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था। बाद में मेवाड़ के रावल कुमारसिंह को भी राजा कीर्तिपाल से संघर्ष करना पड़ा था।
रावल जैत्रसिंह ने तय किया कि नाडौल के चौहानों को उनके पिछले आक्रमणों के लिए दण्डित किया जाना चाहिए। इस समय नाडौल पर राजा कीर्तिपाल के पौत्र राजा उदयसिंह चौहान का शासन था।
राजा उदयसिंह ने नाडौल के साथ-साथ जालौर पर भी अधिकार कर लिया था। रावल जैत्रसिंह ने राजा उदयसिंह की इस बड़ी रियासत पर आक्रमण कर पिछली पराजय का प्रतिशोध लिया।
आबू के शिलालेख में लिखा है कि “जैत्रसिंह ने नडूल (नाडौल) को जड़ समेत उखाड़ दिया”। उदयसिंह चौहान ने अपनी पराजय के बाद अपनी पौत्री रूपादे (चाचिगदेव की पुत्री) का विवाह रावल जैत्रसिंह के पुत्र कुँवर तेजसिंह से करवा दिया।
आहाड़ पर विजय :- मेवाड़ के रावल कुमारसिंह ने नाडौल के चौहान राजा कीर्तिपाल को परास्त करने के लिए चालुक्य शासक राजा भीमदेव द्वितीय से सन्धि की थी। सन्धि के तहत उन्हें आहाड़ का क्षेत्र राजा भीमदेव को सौंपना पड़ा था।
तब से ही आहाड़ पर चालुक्यों का राज चला आ रहा था। चालुक्यों ने सलूम्बर तक अपना वर्चस्व जमा लिया था। उन्होंने आहाड़ में कई शिलालेख खुदवाए व भूमि दान की। इन शिलालेखों व ताम्रपत्रों में चालुक्यों ने मेवाड़ के शासकों को भी सम्मानित करने वाली उपाधियों से विभूषित किया, ताकि कोई वैरभाव न रहे।
लेकिन जब मेवाड़ की गद्दी पर रावल जैत्रसिंह बैठे, तो उन्हें चालुक्यों का हस्तक्षेप रास नहीं आया। रावल जैत्रसिंह ने चालुक्यों को परास्त कर आहाड़ को पूरी तरह से जीत लिया।
इतिहासकार डॉ. ओझा लिखते हैं “दिल्ली के गुलाम सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रतापी व बलवान राजा जैत्रसिंह ही हुआ, जिसकी वीरता की प्रशंसा उसके विपक्षियों ने भी की है”
इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार रावल जैत्रसिंह का शासनकाल ‘मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्णकाल’ था। दशरथ शर्मा का यह कथन सटीक व सही है। रावल जैत्रसिंह ने मेवाड़ का गौरव लौटाया।
रावल जैत्रसिंह द्वारा जैन आचार्यों का सम्मान :- जौहड़ के जैन मंदिर (वर्तमान में उदयपुर में स्थित) में आचार्य जगच्चंद्र सूरी ने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की, तो रावल जैत्रसिंह ने उनको ‘तपा’ स्वरूप प्रदान किया।
परिणामस्वरूप जगच्चंद्र सूरी की शिष्य परंपरा को ‘तपागच्छ’ के नाम से प्रसिद्धि मिली। रावल जैत्रसिंह के समय लिखे गए जैन ग्रंथ :- ओध नियुक्ति, पाक्षिक वृत्ति।
अगले भाग में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण करने का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)