मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास (भाग – 5)

बप्पा रावल द्वारा धारण की गई उपाधियां :- राजगुरु, हिन्दू सूर्य, चक्कवै। इतिहासकार सी.वी. वैद्य ने बप्पा रावल की तुलना चार्ल्स मॉर्टेल से की। चार्ल्स मॉर्टेल फ्रांसीसी सेनापति था, जिसने मुगलों को परास्त किया।

राजधानी :- बप्पा रावल ने नागदा को राजधानी बनाई। यह नागदा मध्यप्रदेश वाला नागदा नहीं है, बल्कि उदयपुर में स्थित नागदा है। नागदा में आज भी प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं।

बप्पा रावल का देहांत :- बप्पा रावल ने जीवन के अंतिम वर्षों में सन्यास ले लिया। इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है। कर्नल जेम्स टॉड ने बप्पा रावल की समाधि खुरासान में बताई है, जो कि गलत है।

सन्यास लेने से पहले राजगद्दी अपने पुत्र खुमाण को सौंपते हुए बप्पा रावल

बप्पा रावल द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- आदिवराह मन्दिर :- यह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी मन्दिर के पीछे बनवाया। ‘बांकीदास री ख्यात’ के अनुसार बप्पा रावल के एक पुत्र आणददे हुए, जिनके वंशज मागलिया कहलाए।

एकलिंग जी का मन्दिर :- उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया। इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है।

एकलिंग जी मेवाड़ के गुहिलों के कुलदेवता रहे हैं। यह मंदिर राजपूताने में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। एकलिंग जी मंदिर में हीरों के नाग का चढ़ावा है। मेवाड़ के ताम्रपत्रों आदि पर ‘श्री एकलिंगजी प्रसादातु’ व ‘दीवाणजी आदेशातु’ अंकित है।

मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानते थे। उनका मानना था कि शासन तो एकलिंग जी ही कर रहे हैं, हमें तो बस राज्य की रक्षा हेतु नियुक्त किया गया है। मेवाड़ के शासक जब भी मेवाड़ से बाहर जाते थे, तो एकलिंग जी की आज्ञा लेकर ही जाते थे।

एकलिंगजी मन्दिर

रावल खुमाण प्रथम :- ये बप्पा रावल के पुत्र थे। इनका नाम कहीं-कहीं खोमाण भी मिलता है। कहते हैं कि बप्पा रावल ने सन्यास लेने से पहले राजगद्दी रावल खुमाण को सौंप दी थी।

रावल मत्तट :- रावल खुमाण के बाद रावल मत्तट शासक बने। रावल मत्तट ने मालवा के शासक को परास्त किया। रावल मत्तट ने प्रतिहार शासक वत्सराज के साथ मैत्री संबंध स्थापित किए। रावल मत्तट के बाद भर्तृभट्ट मेवाड़ के शासक बने।

रावल भर्तृभट प्रथम :- इनका नाम कहीं-कहीं भर्तृपट्ट भी मिलता है। इनके ज्येष्ठ पुत्र सिंह तो मेवाड़ के शासक हुए और छोटे पुत्र इशानभट ने चाटसू (वर्तमान जयपुर में) में गुहिल वंश की शाखा स्थापित की।

चाटसू की गुहिल शाखा का वर्णन :- 1043 ई. के आसपास का एक शिलालेख जयपुर के चाटसू से मिला है। इस शिलालेख की रचना छित्ता के पुत्र भानु ने की। सूत्रधार रज्जुक के पुत्र भाइल ने यह शिलालेख खोदा।

इस शिलालेख में गुहिलवंशी राजा भर्तृभट्ट प्रथम से लेकर बालादित्य तक कुल 12 राजाओं के नाम दिए गए हैं। वे चाटसू व उसके नज़दीकी इलाकों पर राज करते थे। मेवाड़ के गुहिल वंश के संस्थापक गुहिल के वंशज भर्तृभट्ट प्रथम हुए।

रावल भर्तृभट्ट प्रथम

इनके पुत्र ईशानभट्ट ने चाटसू में गुहिल वंश की नींव रखी। ईशानभट्ट के पुत्र उपेंद्रभट्ट हुए। उपेंद्रभट्ट के पुत्र गुहिल (ये मेवाड़ के गुहिल नहीं, बल्कि चाटसू की गुहिलवंशी शाखा में हुए गुहिल हैं)। गुहिल के पुत्र धनिक हुए।

धनिक का एक शिलालेख कर्नल जेम्स टॉड को मिला था, लेकिन यह शिलालेख बहुत भारी था, इसलिए टॉड उसे विलायत नहीं ले जा सका। गौरीशंकर ओझा को यह शिलालेख डबोक में स्थित जेम्स टॉड के बंगले के पीछे स्थित खेत में पड़ा मिला।

ओझा जी ने यह शिलालेख उदयपुर के विक्टोरिया हॉल म्यूजियम में रखवा दिया। इस शिलालेख से मालूम पड़ता है कि मेवाड़ के जहाजपुर में स्थित धौड़ गांव पर धनिक का अधिकार था।

यह भी जानकारी मिलती है कि धनिक स्वतंत्र शासक नहीं थे, वे किसी धनलप्पदेव नामक शासक के सामन्त थे। धनिक के पुत्र आउक हुए। आउक के पुत्र कृष्णराज हुए। कृष्णराज के पुत्र शंकरगण हुए, जिनको ‘अनेक युद्धों का विजेता’ कहा गया है।

शंकरगण ने भट नामक एक राजा को परास्त किया और गौड़ के राजा के स्वामित्व वाली भूमि को अपने स्वामी के अधीन किया। शंकरगण की रानी का नाम यज्जा था, जो कि शिवभक्त थीं।

शंकरगण व यज्जा के पुत्र हर्षराज हुए, जिन्होंने उत्तर के राजाओं पर विजय प्राप्त करके उनके घोड़े कन्नौज के प्रतिहार शासक भोज प्रथम को भेंट किए। हर्षराज की रानी सिल्ला ने गुहिल द्वितीय को जन्म दिया।

गुहिल द्वितीय ने गौड़ के राजा को परास्त किया और वल्लभराज परमार की पुत्री रज्झा से विवाह किया। इनके पुत्र भट्ट हुए, जिन्होंने दक्षिण के किसी राजा को जीतकर वीरुक की पुत्री पुराशा से विवाह किया। भट्ट के पुत्र बालादित्य हुए।

बालादित्य ने शिवराज चौहान की पुत्री रट्टवा से विवाह किया। बालादित्य के 3 पुत्र हुए :- वल्लभराज, विग्रहराज व देवराज। रानी रट्टवा के देहांत के बाद बालादित्य ने उनकी याद में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया।

चाटसू को चाकसू, चम्पावती आदि नामों से भी जाना गया। गुहिलवंशी शासकों ने चाटसू में एक तालाब बनवाया, जिसे गुहिलराव तालाब कहते हैं। इस तालाब के किनारे गणेश प्रतिमा व 6 भुजाओं वाली एक प्रतिमा मिली।

गुहिलवंशी शासकों ने यहां एक सूर्य मंदिर भी बनवाया, जिसमें सूर्य व उनकी पत्नी की सुंदर प्रतिमा है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों, लंका युद्ध, युधिष्ठिर आदि के भित्ति चित्र भी मंदिर में बनवाए गए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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