यहां वे घटनाएं लिखी जा रही हैं, जिनका कोई समकालीन प्रमाण नहीं है, परन्तु ये घटनाएं बड़ी प्रसिद्ध हैं :- हज्जात की पराजय :- हज्जात ने मेवाड़ पर अपनी फौज भेजी। बप्पा रावल ने हज्जात की फौज को हज्जात के मुल्क तक खदेड़ दिया।
अरबों से युद्ध :- ये युद्ध वर्तमान राजस्थान की सीमा के भीतर हुआ। बप्पा रावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की सम्मिलित सेना ने अल हकम बिन अलावा, तामीम बिन जैद अल उतबी व जुनैद बिन अब्दुलरहमान अल मुरी की सम्मिलित सेना को पराजित किया।
सिंधु के शासक से लड़ाई :- बप्पा रावल ने सिंधु के मुहम्मद बिन कासिम को पराजित किया। गज़नी के शासक से लड़ाई :- बप्पा रावल ने गज़नी के शासक सलीम को पराजित किया। सलीम ने अपनी पुत्री बप्पा रावल को सौंपकर अपने प्राण बचाए।
बप्पा रावल द्वारा जारी सोने का सिक्का :- इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बप्पा रावल का सिक्का कहा है। बप्पा रावल सोने के सिक्के चलाने वाले मेवाड़ के प्रथम शासक थे।
भीलवाड़ा के एक महाजन ने बप्पा रावल का सोने का सिक्का अजमेर के एक सर्राफ को बेच दिया था। इस सिक्के पर लगा हुआ नाका (कुंडा) उस सर्राफ ने उखड़वा दिया और झालन (टांके) को घिसवा दिया। सिक्के का दायां हिस्सा कुछ घिस गया।
इतिहासकार ओझा जी को मालूम पड़ा, तो उन्होंने इस सिक्के का महत्व देखते हुए इसे खरीदा और सिरोही के महाराव केसरीसिंह देवड़ा को देकर संरक्षित करवा दिया। इस सिक्के का तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। आधे सिक्के के किनारे पर बिंदियों की एक माला है।
इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे ‘श्री बोप्प’ लिखा है, जो कि बप्पा रावल का एक अन्य नाम है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है।
शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है, जिसका जांघों तक का चित्र इस सिक्के पर आया है। इस पुरुष के कान बड़े व मुंह लंबा है। पीछे की तरफ चँवर, सूर्य और छत्र के चिह्न हैं।
इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। बछड़े के गले में एक घंटी बंधी है और उसकी पूंछ ऊंची है। गौ और बछड़े के नीचे दो आड़ी लकीरों के दाईं ओर एक तिरछी मछली बनी हुई है।
सिक्के पर त्रिशूल की आकृति भगवान शिव के आयुध की ओर संकेत करती है। बप्पा रावल शिवभक्त थे। सिक्के पर शिवलिंग की आकृति बप्पा रावल के इष्टदेव एकलिंगजी की तरफ संकेत करती है। बैल की आकृति भगवान शिव के वाहन की तरफ संकेत करती है।
सम्भव है कि पुरुष की आकृति बप्पा रावल की ही हो, जिन्हें एकलिंगजी को दंडवत प्रणाम करते हुए दिखाया गया है, लेकिन इसके बारे में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता।
इस सिक्के पर एक वृत्ताकार चिह्न भी है, जिसमें दो रेखाएं आपस में काटकर चार अर्धवृत्त बनाती हैं। ये चिह्न सूर्य की तरफ संकेत करता है, क्योंकि बप्पा रावल सूर्यवंशी थे। सूर्य के दोनों ओर छत्र व चँवर हैं, जो कि राज्य चिह्न हैं।
दो रेखाएं व एक मछली नदी या जलाशय की तरफ संकेत करती हैं, सम्भव है कि यह एकलिंगजी मंदिर के पास बहने वाले कुटिला नदी हो। इस तरह ये सब चिह्न बप्पा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबंधित हैं।
शिलालेखों में वर्णन :- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है। आबू के शिलालेख में बप्पा रावल का वर्णन मिलता है। कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में भी बप्पा रावल का वर्णन मिलता है।
रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। हालांकि आज के इतिहासकार इस बात को नहीं मानते। 971 ई. के आटपुर अभिलेख में बप्पा रावल को सूर्य के समान तेजस्वी बताया गया है।
971 ई. में मेवाड़ के शासक नरवाहन द्वारा एकलिंगजी मंदिर के निकट स्थित लकुलीश मंदिर में खुदवाए गए शिलालेख में बप्पा रावल को चंद्र के समान तेजस्वी व पृथ्वी का रत्न कहा गया है। इस शिलालेख में बप्पा रावल की धनुष की टंकार का वर्णन भी किया गया है।
कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी का वर्णन मिलता है। कर्नल टॉड ने इस शिलालेख की छाप लेने के लिए जिस व्यक्ति को भेजा, उसकी गलती की वजह से यह शिलालेख टूट गया। इस घटना पर जेम्स टॉड ने अफसोस भी जताया।
परन्तु इस घटना को बाद के इतिहासकारों ने तोड़-मरोड़कर लिखा कि जेम्स टॉड इस शिलालेख को जहाज के ज़रिए अपने देश ले जा रहा था, पर इसका वजन अधिक होने के कारण इसे बीच रास्ते ही समुंदर में फेंक दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)