मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास (भाग 1)

मेवाड़ राजवंश के मूलपुरुष गुहिल का इतिहास :- गुहिल को ग्रहादित्य, गुहदत्त, गुहादित्य आदि नामों से भी जाना जाता है। गुहिल की माता महारानी पुष्पावती थीं, जो अपने पति शिलादित्य के देहांत के बाद सती हो गईं।

सती होने से पहले महारानी पुष्पावती ने अपने दुधमुंहे पुत्र गुहिल को कमलावती को सौंप दिया। गुहिल ने मेवाड़ के पहाड़ी भीलों को परास्त किया। गुहिल का अधिकार क्षेत्र विस्तृत भू-भाग पर था।

कहा जाता है कि गुहिल का राज्य मेवाड़, मारवाड़, मध्य राजस्थान, पूर्वी राजस्थान तक बढ़ते हुए आगरा तक फैल गया था। गुहिल ने अपने सैनिकों के लिए कई उत्तम घोड़े व ऊंट रख रखे थे।

1869 ई. व 1922 ई. में आगरा से 2000 सिक्के खुदाई में निकले जो गुहिल के थे, इन सिक्कों पर “श्रीगुहिल” अंकित है। नरवर से एक सिक्का अलेक्जेंडर कनिंघम को मिला था, जिस पर ‘श्रीगुहिलपति’ अंकित है।

इन सिक्कों से मालूम पड़ता है कि गुहिल का साम्राज्य आगरा तक फैला था। इसमें कोई अतिश्योक्ति मालूम नहीं पड़ती, क्योंकि आगरा के निकट जयपुर के पास चाकसू में 813 ई. की प्रशस्ति में गुहिल के वंशज भर्तृभट्ट के वंशजों की सूची दी हुई है।

अपने पुत्र गुहिल को कमलावती को सौंपती हुई रानी पुष्पावती

बसरा के व्यापारी सुलेमान की यात्रा का विवरण 851 ई. में सम्पादित किया गया था। निश्चित ही वह इस समयकाल से पहले भारत आया था। उसने ‘जुरूज’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘गुहिल’।

सुलेमान लिखता है कि “राष्ट्रकूटों के इलाके के पास के इलाके में जो एक और राजा है, उसका नाम जुरूज (गुहिल) है। उसके पास बहुत बड़ा लश्कर है। उसके पास जैसे घोड़े हैं, वैसे पूरे हिंदुस्तान में किसी के पास नहीं हैं। वह अरब वालों का शत्रु है, पर फिर भी इस बात को

मानता है कि अरब का बादशाह सबसे ज्यादा ताकतवर है। उस (गुहिल) के राज्य में चांदी की खानें हैं, वहां ऊंट और दूसरे जानवर भी बहुत हैं। उसका इलाका पहाड़ों से घिरा हुआ है। हिंदुस्तान भर में कोई भी राज्य चोरी से इतना ज्यादा महफूज़ (सुरक्षित) नहीं है, जितना उसका राज्य है।”

गुहिल द्वारा लड़े गए युद्धों में महाराज श्रीतावट ने भी भाग लिया था। माना जाता है कि गुहिल आनंदपुर से मेवाड़ आए थे। ‘बांकीदास री ख्यात’ के अनुसार ग्रहादित्य (गुहिल) गुजरात में तिलगापुर पाटण के थे व गहलोतों की कुलदेवी भी सर्वप्रथम तिलगापुर में ही थीं।

अब तक गुहिल का कोई भी शिलालेख या ताम्रपत्र नहीं मिला है, इसलिए उनका समयकाल तय करना मुश्किल है। सामोली के शिलालेख (646 ई.) को ध्यान में रखते हुए इतिहासकारों ने अनुमानित रूप से गुहिल का शासनकाल 566 ई. के करीब माना है।

मेवाड़ राजवंश की कुलदेवी – मां बायण

भोज :- गुहिल के उत्तराधिकारी भोज का नाम भोगादित्य व भोजादित्य भी मिलता है। रावल समरसिंह के शासनकाल में खुदवाए गए आबू के शिलालेख (1285 ई.) में लिखा है कि भोज श्रीपति के उपासक थे और उनकी धार्मिक प्रवृत्ति प्रशंसनीय थी।

भोज के 2 तांबे के सिक्के मिले हैं, जो प्रमाणित करते हैं कि भोज ने गुहिल की भांति राजनैतिक व्यवस्था को बनाए रखा। भोज के पुत्र महेंद्रनाग हुए।

महेंद्र प्रथम :- इनका नाम कहीं कहीं नागादित्य व महेंद्रनाग भी लिखा गया है। वर्तमान में उदयपुर के कैलाशपुरी के निकट नागदा नगर जो है, जिसे पहले नागहद व नागद्रह नामों से भी जाना जाता था, उसकी स्थापना नागादित्य ने ही की थी।

महेंद्रनाग के पुत्र शिलादित्य द्वितीय हुए। मेवाड़ के भीलों ने महेंद्र के अधिकार में आने वाली बहुत सी भूमि छीन ली और महेंद्र की हत्या कर दी। इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा ने महेंद्र व नाग को 2 अलग-अलग व्यक्ति माना है।

शिलादित्य द्वितीय :- महेंद्र से छीनी गई भूमि को वापस लेने के लिए शिलादित्य ने भीलों को परास्त करके नागदा के आसपास की भूमि पर पुनः अधिकार कर लिया। इनका एक तांबे का सिक्का प्राप्त हुआ, जिस पर इनका नाम ‘शील’ अंकित है।

20 अप्रैल, 641 ई. को चीनी यात्री व्हेनसांग चित्तौड़ आया। इस समय मेवाड़ के एक इलाके पर शिलादित्य का राज था, परन्तु चित्तौड़गढ़ पर उनका राज नहीं था। चित्तौड़गढ़ पर इस समय तक्षकवंशी राजाओं का राज था।

तक्षकवंशी राजाओं के बाद चित्रांगद मौर्य ने यहां राज किया था। यह बड़ी गलतफहमी है कि चित्रांगद मौर्य ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। व्हेनसांग के लिखे वर्णन से यह भ्रांति दूर की जा सकती है।

चित्रांगद मौर्य ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में नए महल, चित्रांगद नामक तालाब आदि बनवाकर उसका नाम अपने नाम से रख दिया होगा। लेकिन यह बात इतनी अधिक प्रसिद्ध हो चुकी है कि खुद मेवाड़ के लोग भी इसे चित्रांगद मौर्य द्वारा बनवाया गया किला ही कहते हैं और पाठ्यपुस्तकों में भी यही जिक्र मिलता है।

मां बायण

व्हेनसांग ने चित्तौड़ का नाम ‘चिकिटो’ लिखा है। व्हेनसांग लिखता है कि “ओसियां के उत्तर-पूर्व में चिकिटो स्थित है, जो कि ओसियां से करीब 1000 ली (166 मील) की दूरी पर स्थित है। यहां की भूमि अच्छी पैदावार के लिए

ख्यातिप्राप्त है और सही ढंग से जोती जाने पर बेहतर उत्पादन देने वाली है। यहां राजमा और जौ ज्यादा पैदा होता है और फल-फूल भी पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं। यहां की राजधानी 3 मील के घेरे में फैली है। यहां 10

मंदिर हैं, पर उनके प्रति श्रद्धा रखने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। इस मुल्क (मेवाड़) के करीब 100 बाशिंदे करोड़पति हैं, दूर-दूर के मुल्कों की कीमती चीजें यहां बहुतायत से मिलती हैं।”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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