मेवाड़ के गुहिलों को कहीं कहीं भगवान राम के पुत्र लव का वंशज बताया गया है, परन्तु अब इतिहासकारों ने माना है कि मेवाड़ के गुहिल भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। मेवाड़ के गुहिलों की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों के मत :-
मुहणौत नैणसी :- मारवाड़ के इतिहासकार मुहणौत नैणसी ने मेवाड़ के गुहिलों को आदिरूप में ब्राह्मण व जानकारी से क्षत्रिय बताया है। नैणसी ने गुहिलों की 24 शाखाएं बताई हैं।
मुहणौत नैणसी लिखते हैं कि “सिसोदिया प्रारम्भ में गुहिलोत कहलाते थे। पहले इनका राज्य दक्षिण में नासिक त्र्यम्बक की तरफ था। इनके पूर्वज सूर्य की उपासना करते थे।”
नैणसी ने एक कथा बताई है, जिसके अनुसार मेवाड़ के प्रारंभिक इतिहास में 10 शासकों ने क्षत्रिय होते हुए भी वचन की खातिर ब्राह्मण धर्म का पालन किया। इस कथा का विस्तृत वर्णन मैं यहां नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि आज से 1500 वर्ष पूर्व घटित घटना की कथाओं पर बिना किसी ठोस प्रमाण के विश्वास नहीं किया जा सकता।
कविराजा श्यामलदास :- इन्होंने गुहिलों को मूलतः वल्लभी का माना है, परन्तु डॉक्टर ओझा ने लिखा है कि मेवाड़ के राजाओं का वल्लभी से कोई संबंध नहीं है।
अबुल फ़ज़ल :- फ़ारसी लेखक व इतिहासकार हमेशा से ही पक्षपात करते आए हैं और कई बातें बिना किसी जानकारी के लिख दिया करते थे। अबुल फ़ज़ल ने मेवाड़ के गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेरखां आदिल का वंशज बताया है।
कर्नल जेम्स टॉड ने भी अपने गुरु ज्ञानचंद्र की बातें मानकर गुहिलों की 24 शाखाएं मानी हैं। इसी तरह ‘बांकीदास री ख्यात’ में भी गुहिलों की 24 शाखाओं का उल्लेख किया गया है।
ब्राम्हण मत :- डी. आर. भंडारकर ने गुहिलों की उत्पत्ति विप्रवंशीय नागर ब्राम्हण से होना लिखा है। इसी तरह डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने भी गुहिलों की उत्पत्ति ब्राम्हणों से होना लिखा है। इनके अनुसार गुहिल मूल रूप से आनंदपुर (बड़नगर) से आए।
डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा :- इनका मत सर्वमान्य है और इन्होंने गुहिलों की ब्राम्हणों से उत्पत्ति के सिद्धांत का तर्कों सहित खंडन किया है और एक सत्य व उचित मत रखा कि मेवाड़ के गुहिल “सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं”।
डॉ. ओझा ने प्रमाणों सहित डी. आर. भंडारकर के ब्राह्मण मत को खारिज किया है। डॉ. ओझा ने इस संबंध में भंडारकर द्वारा प्रस्तुत किए गए हर एक तथ्य का खंडन करने के बाद लिखा है कि
“भंडारकर महाशय ने अपना लेख लिखते समय जो प्रमाण अपने मंतव्य के अनुकूल दिखे, उनको तो ग्रहण किया और जो प्रतिकूल दिखे, उनको छोड़ दिया या उनका अर्थ ही उलट दिया।”
गुहिलों को रघुकुलवंशी बताने वाले प्राचीन शिलालेख :- नाथ अभिलेख – 971 ई., आटपुर (आघाटपुर/आहाड़) अभिलेख – 971 ई., आबू का शिलालेख – 1285 ई.।
महाराणा रायमल के समय गोडवाड़ में स्थित नारलाई गांव में एक जैन मंदिर में शिलालेख खुदवाया गया। इस शिलालेख में गुहिल, बप्पा रावल व रावल खुमाण को सूर्यवंशी कहा गया है।
‘बांकीदास री ख्यात’ के अनुसार गुहिलोतों की 24 शाखाएं :- गहलोत, मांगलिया, डाहलिया, टीबाणा, चन्द्रावत, सिसोदिया, आसावत, मोटसीरा, मोहल, वला, आहाड़ा, केलवा, गोदारा, तिवडकिया, बुटिया, पीपाड़ा, मगरोपा, भाखला, धीरणिया, गोतम, हुल, मेर, बूटा, गुहिल।
ग्रंथ वीरविनोद के अनुसार सिसोदियों की 25 शाखाएं :- गहलोत, मांगलिया, सिसोदिया, आहाड़ा, केलवा, पीपाड़ा, मगरोपा, हुल, अजवरिया, कूंपा, भीमल, धोरण्या, गोधा, नादोत, सोबा, आशायत, बोढा, कोढा, करा, भटेवरा, मुदोत, घालरिया, कुचेला, कड़ेचा, दुसन्ध्या।
मेवाड़ राजवंश के बड़प्पन के बारे में विभिन्न लेखकों के मत :-
फिरिश्ता लिखता है “उज्जैन वाले राजा विक्रमादित्य के बाद में राजपूतों ने तरक्की की। मुसलमानों के हिंदुस्तान में आने से पहले यहां पर बहुत से राजा थे जो किसी के मातहत (अधीन) नहीं थे। पर सुल्तान महमूद गजनवी और उसकी औलादों ने बहुतों को ताबे (अधीन) किया। फिर
शहाबुद्दीन गौरी ने अजमेर और दिल्ली के राजाओं को फतह किया। यहां तक कि विक्रमादित्य से लेकर जहांगीर बादशाह तक कोई पुराना राजवंश न रहा, पर राणा ही ऐसे राजा हैं जो मुसलमान मज़हब की पैदाइश से पहले भी राज करते थे और आज भी राज करते हैं”
मुन्तख़बउल्लुबाब में ख़फ़ी खां लिखता है कि “हिंदुस्तान भर में मेवाड़ के राणा से बढ़कर कोई रईस नहीं है। उसके मुल्क की सालानी आमदनी एक करोड़ से भी ज्यादा है।”
तुजुके जहांगीरी में मुगल बादशाह जहाँगीर लिखता है “हिन्दुस्तान के सारे जमींदारों और राजे-रजवाड़ों में राणा अमरसिंह सबसे अहम था। सारे राजे-रजवाड़े राणा और उसके बाप-दादों की कमान (नेतृत्व) और बड़प्पन को मानते थे। राणा के पुरखों ने लम्बे वक्त तक हुकूमत की।
उन्होंने दक्षिण में कई मुल्कों पर फतह हासिल की। इतने लम्बे वक्त तक हुकूमत करने के बावजूद इन्होंने हिन्दुस्तान के किसी बादशाह के सामने अपनी गर्दन नहीं झुकायी, बल्कि ये तो हिन्दुस्तान के हर बादशाह के राज में बगावत और मुश्किलें पैदा करते थे”
अकबरनामा में अबुल फ़ज़ल लिखता है “जो हुक्म बादशाह अकबर पूरे हिंदुस्तान में जारी करते थे, वो हुक्म मेवाड़ का राणा नहीं मानता था”
‘तारीख-ए-अकबरी’ में हाजी मोहम्मद आरिफ कन्धारी लिखता है “राणा के मुल्क में इस्लामी हुकूमत का कभी कब्जा नहीं हो सका। न जाने कितने बादशाह और सुल्तान मेवाड़ फतह करने की हसरत से मर गए”
लुई रोसेलेट ने लिखा है कि “चित्तौड़ की मशहूर मोर्चाबंदी बस्ती, जो एक अकेले पहाड़ की चोटी पर बसी हुई है, मेवाड़ की पुरानी राजधानी थी और कई सदियों तक मुसलमानों के हमलों से बचाव की आखिरी मज़बूत जगह थी।”
रेनाल्ड लिखता है “एक जमाना था जब मेवाड़ के राणाओं की अधीनता में सारा राजपूताना एक ही राज्य था”
एचीसन ट्रीटीज़ में लिखा है “उदयपुर का राजवंश पद प्रतिष्ठा में हिंदुस्तान के राजपूत राजाओं में सबसे बढ़कर है और हिन्दू उनको राम का प्रतिनिधि मानते हैं”
कविराजा श्यामलदास लिखते हैं “धन्य हैं मेवाड़ के बहादुर राजपूत, जो अपने बाप-दादों की इज्जत और कहावतों पर ख़्याल करके मरते और मारते हैं”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)