शिक्षा :- महाराणा भूपालसिंह ने बाल्यकाल में हिंदी व संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया और फिर प्रोफेसर मतिलाल भट्टाचार्य ने महाराणा को अंग्रेजी की शिक्षा दी।
25 मई, 1930 ई. – राज्याभिषेक :- महाराणा फतहसिंह का देहांत होने के बाद महाराजकुमार भूपालसिंह का राज्याभिषेक किया गया। 5 जून को राज्याभिषेक उत्सव मनाया गया।
महाराणा भूपालसिंह का व्यक्तित्व :- महाराणा भूपालसिंह प्रजावत्सल, परोपकारी व कुलाभिमानी शासक थे। शारीरिक अपंगता के बावजूद इन महाराणा ने कभी भी राज्य से संबंधित कार्यों में ढील नहीं दी।
6 जून, 1930 ई. – गद्दी पर बैठने के तुरंत बाद करवाए गए सुधार कार्य :- मेवाड़ की प्रजा के 15 लाख रुपए के कर्ज़ को माफ़ कर दिया गया। विवाह, चंवरी, नाता, घरकुंपी आदि कर माफ़ कर दिए गए।
स्वर्गीय महाराणा फतहसिंह की याद में एक सराय बनवाई गई, जहां यात्री 3 दिन तक ठहर सकते थे और उनकी व्यवस्था का खर्च राज्य की ओर से किया जाता। गरीब विद्यार्थियों के लिए एक छात्रावास बनवाया गया व उनको वस्त्र वग़ैरह मुहैया करवाये गए।
उमरावों, सरदारों, जागीरदारों पर भी जो कर्ज़ था, वह काफी हद तक माफ़ कर दिया गया। बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
मेवाड़ महाराणाओं व प्रथम श्रेणी के सरदारों के बीच अधिकारों को लेकर लंबे समय से चला आ रहा झगड़ा महाराणा भूपालसिंह ने सुलझा दिया। इन महाराणा ने सरदारों को न्याय संबंधी कई अधिकार प्रदान कर दिए।
जागीर देना :- महाराणा भूपालसिंह ने अपने मामा अभयसिंह के पुत्र लक्ष्मणसिंह को कोदूकोटा गांव जागीर में दिया।
GCSI का ख़िताब :- 1 जनवरी, 1931 ई. को अंग्रेज सरकार ने महाराणा भूपालसिंह को GCSI का ख़िताब दिया।
1932 ई. को महाराणा भूपालसिंह ने एक शक्कर की मिल लगवाई, जो बाद में ‘मेवाड़ शुगर मिल’ नाम से विख्यात हुई।
महाराणा भूपालसिंह की निस्वार्थ देशभक्ति :- जोधपुर महाराजा हनुवंत सिंह द्वारा मेवाड़ के पाकिस्तान में विलय के प्रस्ताव पर ये बयान महाराणा सा द्वारा दिया गया :-
“भारतीय महाद्वीप में मेवाड़ का स्थान कहाँ होगा, इसका निर्णय तो मेरे पूर्वज शताब्दियों पूर्व कर चुके हैं। यदि वे देश के प्रति गद्दारी करते, तो मुझे भी आज हैदराबाद जैसी बड़ी रियासत विरासत में मिलती। पर न तो मेरे पूर्वजों ने ऐसा किया और न मैं ऐसा करूँगा”
18 अप्रैल, 1948 ई. को संयुक्त राजस्थान में उदयपुर का विलय हुआ व महाराणा भूपालसिंह को ‘राजप्रमुख’ बनाया गया।
14 जनवरी, 1949 ई. को सरदार पटेल ने उदयपुर आकर महाराणा भूपालसिंह से भेंट की। महाराणा ने काफी आग्रह करके उनको आसन ग्रहण करने को कहा पर उन्होंने स्वीकार न किया और खड़े-खड़े ही हाथ जोड़कर निवेदन किया कि
“हम आपको दिल्ली ले जाने के लिए आये हैं, वहां का सिंहासन संभालिए। आपके पूर्वजों द्वारा देशहित में दी गई कुर्बानियों से ही तो आज यह अवसर आया है।”
1 अप्रैल, 1949 को महाराणा भूपालसिंह नए राजस्थान के महाराजप्रमुख कहलाए। 1 जून, 1954 को महाराणा भूपालसिंह के सम्मान में तोपों की सलामी बढ़ाकर हमेशा के लिए 21 कर दी गई।
4 जुलाई, 1955 को महाराणा भूपालसिंह का देहांत हुआ। महाराणा भूपालसिंह ने करेड़ा गांव व आसपास के गांवों में पानी की समस्या हल करने के लिए एक बड़े तालाब का निर्माण करवाया था, जिसके बाद गांव का नाम भूपालसागर कर दिया गया।
महाराणा भूपालसिंह के खिलाफ अंग्रेज सरकार को गोपनीय जानकारियां देने वाले नाहर भंडारी की दो बेटियां कुंवारी थीं। वह संकट में था। महाराणा को पता चला तो उन्होंने उसके अपराधों को माफ किया और उसकी दोनों बेटियों का विवाह भी करवाया।
हक़ीक़त बहिड़ा :- यह महाराणा भूपालसिंह के शासनकाल में परगनों आदि से सम्बंधित ग्रंथ है, जो 4 खंडों में विभाजित है। इसका संपादन आऊवा राजघराने के भूपेंद्रसिंह जी ने किया। यह ग्रंथ महाराणा मेवाड़ हिस्टोरिकल पब्लिकेशंस ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है।
महाराणा भूपालसिंह का परिवार :- विवाह :- (1) महाराणा भूपालसिंह का पहला विवाह आऊवा के ठाकुर शम्भू सिंह चाम्पावत की पुत्री से हुआ। (2) इन महाराणा का दूसरा विवाह अचरोल के ठाकुर केसरीसिंह की पुत्री से हुआ (3) तीसरा विवाह मारवाड़ के खुडाला ठिकानेदार की पुत्री से हुआ।
महाराणा भूपालसिंह का इतिहास लेखन :- राजतंत्र के अंतिम महाराणा भूपालसिंह का क्रमवार व्यवस्थित इतिहास मुझे नहीं मिला। ‘हकीकत बहिड़ा’ में परगनों आदि की जानकारी है, परन्तु इतिहास नहीं है। इसलिए मुझे उनके बारे में जितनी जानकारी मिल सकी है, उसे यहां लिख दी है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
महाराणा श्री भूपाल सिंहजी की पटरानी का नाम था रानी चंपावत राठौरजी श्री हुकम कंवरजी, दूसरी रानी का नाम था रानी कछवाहीजी श्री बिराद कंवरजी और अंतिम रानी का नाम था रानी राठौरजी श्री गुलाब कंवरजी
इन महाराणाओं का आजादी की लड़ाई में कोई भी जिक्र नही हुआ कृपया मार्गदर्शन करें🙏🙏
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वो आज़ाद ही थे।