ए.जी.जी. का उदयपुर आना :- 4 मार्च, 1885 ई. को राजपूताने का ए.जी.जी. एडवर्ड ब्राडफोर्ड महाराणा फतहसिंह की गद्दीनशीनी का खरीता लेकर उदयपुर आया।
इस दिन उदयपुर में दरबार हुआ और यह खरीता पढ़कर सुनाया गया। 22 अगस्त, 1885 ई. को महाराणा फतहसिंह को राज्य संबंधी सभी अधिकार मिल गए।
राजपूताने के राजाओं का उदयपुर आगमन :- 1885 ई. में जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह राठौड़, कृष्णगढ़ के महाराजा शार्दूलसिंह राठौड़, ईडर के महाराजा केसरीसिंह राठौड़ व जयपुर के महाराजा सवाई माधवसिंह कछवाहा का मातमपुर्सी के लिए उदयपुर आना हुआ।
इस अवसर पर जयपुर महाराजा ने उदयपुर में बहुत दान वग़ैरह किया। उन्होंने उदयपुर की राजकीय संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थियों को एक हज़ार रुपए छात्रवृत्ति के रूप में दिए। ब्राम्हणों, चारणों आदि को भी बहुत सा धन भेंट किया। प्रसिद्ध मंदिरों में भी बहुत सा धन भेंट किया।
इसी मौके पर जयपुर महाराजा ने महाराजकुमार भूपालसिंह के साथ अपनी पुत्री का विवाह तय किया, परंतु कुछ दिन बाद ही राजकुमारी का देहांत हो जाने से ये विवाह नहीं हो सका।
केसरीसिंह शक्तावत को रिहा करना :- महाराणा सज्जनसिंह के समय बोहेड़ा पर केसरीसिंह शक्तावत ने कब्ज़ा कर लिया था, तब महाराणा सज्जनसिंह ने उनको उदयपुर के क़ैदख़ाने में डाल दिया था।
महाराणा फतहसिंह ने केसरीसिंह को क़ैद से रिहा करके कहा कि अब ऐसी हरक़त दोबारा ना करना। महाराणा ने केसरीसिंह को तनख्वाहदार सरदारों में शुमार करके 2 गांव प्रदान किए।
अस्पताल की नई इमारत का शिलान्यास :- 8 नवम्बर, 1885 ई. को हिंदुस्तान का वायसराय लॉर्ड डफ़रिन उदयपुर आया। उसने महाराणा सज्जनसिंह द्वारा स्थापित जनाना अस्पताल के लिए एक नई इमारत बनवाने की घोषणा की। लेडी डफरिन ने इस नई इमारत का शिलान्यास किया।
महाराणा फतहसिंह का सलूम्बर प्रस्थान :- 1886 ई. में सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत की पुत्री के विवाह के अवसर पर महाराणा फतहसिंह वहां पधारे।
1887 ई. – विक्टोरिया हॉल का निर्माण :- महाराणा फतहसिंह ने सज्जन निवास बाग (वर्तमान में गुलाबबाग) में विक्टोरिया हॉल नाम से एक विशाल भवन बनवाकर उसमें पुस्तकालय व अजायबघर स्थापित करवाया।
इस पुस्तकालय में भिन्न-भिन्न भाषाओं के पुरातत्व और इतिहास संबंधी ग्रंथों का बहुत बड़ा संग्रह है। यहां 200 ईसा पूर्व से लेकर 17वीं सदी तक के मेवाड़ के प्राचीन शिलालेखों का संग्रह है।
इस भवन के उद्घाटन समारोह पर महाराणा फतहसिंह ने गरीबों को भोजन करवाया, कई कैदियों को छोड़ा दिया, अफ़ीम के अलावा सभी वस्तुओं पर राहदारी महसूल माफ़ कर दिया। राहदारी महसूल मेवाड़ में होकर बाहर जाने वाले माल पर लिया जाता था। इसी वर्ष महाराणा फतहसिंह को GCSI का ख़िताब मिला।
महाराणा फतहसिंह के पुत्र के जन्म का उत्सव :- 26 नवम्बर, 1887 ई. को अपने दूसरे पुत्र के जन्म पर महाराणा फतहसिंह ने गरीबों को हज़ारों रुपए दान में दिए। सरदारों व चारणों को हाथी व सिरोपाव भेंट किए गए।
बदनमल को जागीर देना :- धायभाई बदनमल की जागीर महाराणा सज्जनसिंह के समय खालसा में शामिल कर ली गई थी, इस कारण महाराणा फतहसिंह ने बदनमल को 2 हज़ार रुपए सालाना आय वाली जागीर दी।
बदनमल का परिचय :- बीकानेर के महाराजा रतनसिंह राठौड़ की बहन का विवाह महाराणा सरदारसिंह के भतीजे शार्दूलसिंह के साथ हुआ था। बदनमल इन्हीं बीकानेरी राजकुमारी के धायभाई थे। ये भी राजकुमारी के विवाह के समय ही बीकानेर से उदयपुर आ गए थे।
जोधसिंह के विवाह समारोह में जाना :- 5 फरवरी, 1888 ई. को महता पन्नालाल के भतीजे जोधसिंह के विवाह पर महाराणा फतहसिंह वहां पधारे और पन्नालाल व जोधसिंह दोनों को सोने के लंगर प्रदान किए। जोधसिंह इतिहास के अच्छे ज्ञाता थे।
1889 ई. – राजपूत हितकारिणी सभा की स्थापना :- महाराणा फतहसिंह ने राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल वाल्टर के नाम पर उदयपुर में ‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की।
इसके ज़रिए महाराणा ने बहुविवाह, बालविवाह, शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची, मौत-मरण पर होने वाली फिज़ूलखर्ची, टीके की मोटी रकम आदि पर रोक लगाने के प्रयास किए, लेकिन इन प्रयासों में महाराणा को कुछ खास सफलता नहीं मिली।
1889 ई. – केनॉट बांध का निर्माण :- महारानी विक्टोरिया का शहज़ादा ड्यूक ऑफ केनॉट हिन्दुस्तान की सैर करता हुआ उदयपुर पहुंचा। उदयपुर से एक मील पश्चिमोत्तर में देवाली गांव के पास एक तालाब था, जिसे देवाली का तालाब कहते थे।
देवाली के तालाब का निर्माण महाराणा जयसिंह ने करवाया था। इस तालाब का बांध ऊंचा न होने के कारण इसका जल दूर तक नहीं फ़ैल सकता था। महाराणा फतहसिंह ने इसका विस्तार करने का इरादा किया।
महाराणा फतहसिंह ने वहां एक ऊंचा बांध बनवाने का विचार करके नींव का पत्थर शहज़ादे ड्यूक ऑफ केनॉट के हाथ से रखवाकर उस बांध का नाम ‘केनॉट बांध’ रखा।
शहज़ादे के आग्रह पर इस तालाब का नाम ‘फतहसागर’ रखा गया। फतहसागर की वजह से उदयपुर की प्राकृतिक छटा ऐसी निखर गई कि आज भी यह उदयपुर के सबसे अधिक चहल-पहल वाले स्थानों में से एक है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)