कर्नल वाल्टर का उदयपुर आना :- 9 अगस्त, 1884 ई. को मेवाड़ का रेजिडेंसी कर्नल वाल्टर, जो कि छुट्टियों पर विलायत गया था, लौटकर उदयपुर आया और उसकी जगह नियुक्त कर्नल स्मिथ उदयपुर से लौट गया।
महाराणा का कवित्व प्रेम :- अवतारचरित की एक चौपाई (सहज राग अधरन अरुनाये, मानहु पान पान से खाये) के अर्थ से सम्बन्धित लंबे समय से एक मतभेद चला आ रहा था।
महाराणा सज्जनसिंह से किसी ने कहा कि जोधपुर के महाराजा मानसिंह राठौड़ ने इस चौपाई का यह अर्थ निकाला था :- “प्राकृत रंग ने होठों को ऐसा लाल कर दिया है कि मानो पान जैसे पतले होठों ने पान खाए हों।”
महाराणा ने ये सुना तो कहा कि “कवि का आशय होठों की प्रशंसा करने का नहीं है, वह तो केवल उनकी लाली का वर्णन करता है। होठों से उपमा की योजना कर पान शब्द से पतले होंठ का अर्थ ग्रहण करना कवि के अभिप्राय के विरुद्ध है। इसका सीधा-सादा अर्थ यही क्यों न निकाला जाए कि स्वाभाविक रंग से होंठ ऐसे लाल थे मानो पांच सौ पान खाए हों।” सरल और सरस होने के कारण इस अर्थ को उस समय सभी ने पसन्द किया।
महाराणा सज्जनसिंह की बीमारी :- महाराणा सज्जनसिंह की उम्र इस समय मात्र 25 वर्ष थी, लेकिन कई बीमारियों ने उनको जकड़ लिया। एक बीमारी महाराणा के पेट में थी। डॉक्टरों ने इलाज किया, पर कुछ फायदा नहीं हुआ।
फिर महाराणा ने दिल्ली के प्रसिद्ध हकीम महमूद खां को बुलाया, लेकिन उसका इलाज भी काम नहीं आया। महाराणा को इतना ज्यादा दर्द होने लगा कि उन्होंने दर्द कम करने के लिए अफीम और शराब का सेवन करना शुरू कर दिया।
फिर महाराणा ने हवा बदलने का विचार किया। महाराणा का मानना था कि मारवाड़ की ख़ुश्क हवा से उनको फायदा होगा। इन्हीं दिनों कविराजा श्यामलदास की माता का देहांत हो गया। महाराणा ने उनके द्वादशाह के लिए कविराजा को 3 हज़ार रुपए दिए और कहा कि तुम उदयपुर में ही रहो, मैं मारवाड़ की तरफ जाता हूँ।
20 अक्टूबर, 1884 ई. को महाराणा ने जोधपुर की तरफ प्रस्थान किया। देसूरी तक खींवाड़ा के ठाकुर ने महाराणा की पेशवाई की। जोधपुर से 5 कोस दूर स्थित मोगड़ा नामक स्थान पर महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ महाराणा सज्जनसिंह की पेशवाई हेतु आए और उन्हें आदरसहित महलों में ले गए।
जोधपुर में महाराणा की बीमारी और बढ़ने लगी, तो उन्होंने अफीम व शराब का सेवन भी बढ़ा दिया। इन्हीं दिनों उदयपुर में कविराजा श्यामलदास के पेट में भी कोई बीमारी हुई, जिससे एक बार तो उनको लगा कि अब उनके प्राण निकल जाएंगे, लेकिन डॉक्टर समरविल और मिट्ठनलाल द्वारा इलाज करने से कुछ फ़र्क़ पड़ा।
मेवाड़ के रेजिडेंट कर्नल वाल्टर तक यह संदेश पहुंचा कि जोधपुर में महाराणा की तबियत और अधिक बिगड़ गई है। कर्नल वाल्टर ने कविराजा श्यामलदास से कहा कि
“महाराणा की तबियत बिगड़ती जा रही है, लेकिन महाराणा के यहां नहीं होने से काम का भार मुझ पर है, इसलिए आप जोधपुर जा सकते हैं या नहीं ?”
डॉक्टर समरविल ने सलाह दी कि यदि कविराजा को पालकी में जोधपुर भेजा जावे, तो कुछ तकलीफ नहीं होगी। 16 नवम्बर को रात की 12 बजे कविराजा श्यामलदास ने ख़ुद बीमार होते हुए भी पालकी में सवार होकर जोधपुर की तरफ प्रस्थान किया।
कविराजा राजनगर होते हुए जवालिया तक पहुंचे, वहां से ट्रेन में सवार होकर जोधपुर पहुंचे। कविराजा ने महाराणा से उदयपुर चलने को कहा, तो महाराणा ने कहा कि महाराजा जसवन्तसिंह नहीं आने दे रहे।
तब कविराजा ने कर्नल वाल्टर की चिट्ठी जोधपुर महाराजा को दी, तो महाराजा मान गए। इन दिनों महाराजा जसवन्तसिंह को भी कलकत्ता की तरफ जाना था, तो उन्होंने कहा कि अजमेर तक मैं भी आप लोगों के साथ आता हूँ।
महाराजा जसवन्तसिंह, महाराणा सज्जनसिंह व कविराजा श्यामलदास 26 नवम्बर को ट्रेन में बैठे और 27 नवम्बर को अजमेर पहुंचे। उणियारा के रावराजा और अंग्रेज अफसर बेली पेशवाई हेतु स्टेशन पर खड़े थे।
महाराणा सज्जनसिंह की धर्मनिष्ठा :- राजपूताने का ए.जी.जी. कर्नल ब्राडफोर्ड भी पेशवाई हेतु आया था, लेकिन ट्रेन देर से आई, इसलिए वह लौट गया। दोनों राजाओं ने अजमेर का मेयो कॉलेज देखा और फिर किशनगढ़ बंगले में ठहरे, जहां कर्नल ब्राडफोर्ड मिलने के लिए आया।
यहां जामनगर के महाराजा जाम विभाजी के बारे में चर्चा शुरू हुई। दरअसल महाराजा जाम विभाजी ने अपनी मुस्लिम पासवान के लड़के को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के लिए अंग्रेज सरकार से स्वीकृति मांगी, जिस पर अंग्रेज सरकार ने उनको मंज़ूरी दे दी।
इस विषय में महाराणा सज्जनसिंह ने कर्नल ब्राडफोर्ड से मुलाकात के दौरान कहा कि “ये मंज़ूरी देकर अंग्रेज सरकार ने उचित नहीं किया, सरकार को हम राजपूतों के निजी मामलों में दख़ल नहीं देना चाहिए”
तब जनरल ब्राडफोर्ड ने कहा कि “आप राजपूताना में हैं और वो काठियावाड़ में हैं, आपको उनसे कोई मतलब नहीं होना चाहिए”
तब महाराणा सज्जनसिंह ने कहा कि “हम जानते हैं कि वह ठिकाना राजपूताने की हद से बाहर है, पर है तो हमारे ही हमकौम राजपूत। हमें राजपूतों और धर्म की परवाह है, आप अंग्रेज लोग भी तो अपने लोगों के प्रति पक्षपाती हो। जामनगर महाराजा की अर्ज़ी सर्वथा अनुचित और अन्यायपूर्ण है। अंग्रेज सरकार को चाहिए कि इस अर्ज़ी को अस्वीकार कर दे”
इस पर जनरल ब्राडफोर्ड ने कहा कि “मैं इस मामले को सुलझाने का प्रयास करूंगा”। इस घटना के कुछ ही दिन बाद महाराणा का देहांत हो जाने से इस मुद्दे पर अन्य कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने लिखा है कि ब्राडफोर्ड से महाराणा की मुलाकात जोधपुर में हुई और उक्त चर्चा भी वहीं हुई, लेकिन यह सही नहीं है। यह चर्चा अजमेर में ही हुई थी।
अगले भाग में महाराणा सज्जनसिंह के देहांत का विस्तृत वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)