महाराणा सज्जनसिंह द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- जयसमन्द बांध का काम :- महाराणा जयसिंह ने जयसमन्द झील का निर्माण करवाकर बांध का निर्माण 2 पहाड़ों के बीच में करवाया था। इस बांध की दृढ़ता के लिए महाराणा जयसिंह ने बांध के पीछे की तरफ उतना ही ऊंचा और 1300 फुट लंबा बांध बनवाया था।
184 वर्षों तक दोनों बाँधों के बीच का हिस्सा बिना भरे ही पड़ा रहा। 1875 ई. में हुई भारी बारिश को देखते हुए महाराणा सज्जनसिंह ने विचार किया कि यदि यह बांध टूटा, तो गुजरात के बहुत से गांव डूब जाएंगे।
ऐसा विचार करके महाराणा सज्जनसिंह ने पत्थर, चूना और मिट्टी से इस बांध का भराव करवाना शुरू किया। इस कार्य में 2 लाख रुपए खर्च हुए, लेकिन महाराणा सज्जनसिंह इसका 2/3 हिस्सा ही भरवा सके। शेष 1/3 हिस्सा अगले महाराणा फतहसिंह के समय में भरवाया गया।
सज्जनगढ़ दुर्ग का निर्माण :- 18 अगस्त, 1883 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जनगढ़ दुर्ग का खातमुहूर्त किया। इस अवसर के दौरान कविराजा श्यामलदास इंदौर में अपना इलाज करवाने गए थे, लेकिन सज्जनगढ़ के खातमुहूर्त की खबर सुनकर उदयपुर आए।
महाराणा सज्जनसिंह ने बाँसदरा पर्वत पर सज्जनगढ़ नामक दुर्ग बनवाने की शुरुआत की, जो कि समुद्र तल से 932 मीटर या 3100 फुट ऊंचा है। महाराणा सज्जनसिंह इस दुर्ग का एक ही खंड तैयार करवा सके, जिसके अंतर्गत पत्थरों की खुदाई का बहुत ही सुंदर कार्य करवाया गया।
उसके बाद इन महाराणा का देहांत हो गया। शेष सारा काम अगले महाराणा फतहसिंह जी ने करवाया। सज्जनगढ़ दुर्ग पर गिरने वाली वर्षा की प्रत्येक बून्द का संग्रहण करने के लिए तैयार की गई वर्षा जल संग्रहण प्रणाली प्राचीन शिल्पियों की शिल्पकला और दूरदृष्टि का प्रेरणादायक उदाहरण है।
किले की प्रत्येक मंज़िल के खुले भाग पर गिरने वाले वर्षा जल को इसी मंज़िल की छत के भीतरी भाग पर निर्मित टंकियों में एकत्र किया जाकर किले की सुदृढ़ दीवारों में निर्मित पाइप लाइन के द्वारा भू-तल पर निर्मित पानी की टंकियों में संग्रहित किया गया है।
जहां करीब 2 लाख लीटर पानी की क्षमता है। 1883 ई. से लेकर अब तक इस दुर्ग में भू-तल पर निर्मित संरचनाएं व संग्रहण प्रणाली में किसी प्रकार की मरम्मत या संधारण की आवश्यकता नहीं पड़ी।
सज्जननिवास :- यह भवन पीछोला झील के बीच स्थित जगनिवास महल में बनवाया। शिवनिवास :- महाराणा ने राजमहलों के दक्षिणी छोर पर एक विशाल बुर्ज़ बनवाना आरंभ किया। इस कार्य को पूरा महाराणा फतहसिंह ने करवाया। बाद में इसे शिवनिवास नाम दिया गया।
सड़कों का निर्माण :- उदयपुर से नाथद्वारा तक पक्की सड़क डॉक्टर स्ट्रेटन की निगरानी में बनाई गई। महाराणा ने उदयपुर से निम्बाहेड़ा तक पक्की सड़क व उदयपुर से खेरवाड़ा तक पक्की सड़क बनवाई।
सज्जन निवास बाग :- इस बाग की देखरेख के लिए महाराणा ने एक यूरोपियन बागवान को नियुक्त किया। इस बाग में जगह-जगह फव्वारे और जलधारा छोड़ने वाली पुतलियां बनवाई गईं। इस बाग की सिंचाई के लिए पिछोला झील से एक नहर लाई गई।
अलग-अलग प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों के पौधे और फलों के वृक्ष बाहर से मंगवाकर बाग में लगवाए गए। इस बगीचे में विद्यार्थियों के लिए क्रिकेट, फुटबॉल खेलने के लिए मैदान भी बनवाए गए।
जलचरों के लिए तार के मंडप वाले हौज बनवाए गए। शेर, चीते, रीछ, सांभर आदि जंगली जीवों के लिए भी बाग में स्थान बनाए गए। वर्तमान में यह बगीचा ‘गुलाबबाग’ के नाम से मशहूर है।
मरम्मत कार्य :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महल समेत कई महलों की मरम्मत, जिसके लिए प्रतिवर्ष 24 हज़ार रुपए का खर्चा हुआ। उदयपुर में जेलखाने की मरम्मत भी करवाई गई।
चिकित्सा सम्बन्धी कार्य :- जगह-जगह दवाखाने खोले गए। उदयपुर में एक अस्पताल डॉक्टर शेपर्ड द्वारा बनवाया गया। स्त्रियों के लिए अस्पताल :- महाराणा ने कर्नल वाल्टर के नाम पर एक जनाना अस्पताल बनवाया। इस अस्पताल में ही चेचक के टीके की शुरुआत की गई।
एक बड़े अस्पताल का निर्माण :- महाराणा सज्जनसिंह ने महाराणा शम्भूसिंह द्वारा बनवाए गए 2 दवाखानों को बंद करवाकर एक बड़ा अस्पताल बनवाया, जहां हर प्रकार के इलाज और रहने की व्यवस्था की गई।
शिक्षा संबंधी कार्य :- महाराणा ने एक एज्युकेशन कमिटी बनाई। उदयपुर में हाई स्कूल, संस्कृत पाठशाला, कन्या पाठशाला, ब्रह्मपुरी में प्राथमिक शिक्षा की पाठशाला बनवाई। इनकेे अलावा भी कई जगह छोटी-बड़ी पाठशालाएं बनवाई गईं।
प्रकाशन सम्बन्धी कार्य :- महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन यंत्रालय नामक छापाखाना बनवाया, जहां से ‘सज्जन कीर्ति सुधाकर’ नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होने लगा।
जल स्त्रोतों से सम्बन्धित कार्य :- तालाबों की मरम्मत व कृषकों की सुविधा के लिए छोटे-छोटे नए तालाब बनवाए गए। उदयसागर, राजसमंद व पिछोला से नहरें निकलवाकर सिंचाई का उचित प्रबंध किया गया।
अन्य कार्य :- उदयपुर में पागलखाना, अनाथालय व गोशाला बनवाई गई। नाहरमगरे में बगीचा बनवाया। उदयपुर में तोपखाने को दुरुस्त किया। भौराई में गढ़ का निर्माण करवाया। उदयपुर राजमहल में सज्जन वाणी विलास नामक पुस्तकालय बनवाया।
शहर के आसपास के कई मकानों का निर्माण व मरम्मत करवाई गई। महाराणा ने कई सड़कों की मरम्मत करवाकर किनारों पर बड़े-बड़े वृक्ष लगवाकर आधुनिक सोच का परिचय दिया। महाराणा ने चित्तौड़ से उदयपुर तक रेलवे का हुक्म दिया, लेकिन इसके निर्माण से पहले ही महाराणा का देहांत हो गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)