1881 ई. – मेरवाड़ा को लेकर बहस :- मेरवाड़ा प्रदेश के प्रबन्ध के मामले में 76 हज़ार रुपए महाराणा सज्जनसिंह द्वारा अंग्रेज सरकार को चुकाए जाने थे, लेकिन महाराणा ने कहा कि “मेरवाड़ा प्रदेश में जो गांव मेवाड़ रियासत के हैं, वे मुझे पूरी तरह से लौटा दिए जाएं।”
लेकिन अंग्रेज सरकार ऐसा करने के पक्ष में नहीं थी, इसलिए अंग्रेज सरकार ने अन्य रियायतें दीं। यह तय हुआ कि महाराणा पर जो 76 हज़ार रुपए बकाया हैं, वे अब अंग्रेज सरकार को नहीं दिए जाएंगे।
मेरवाड़ा प्रदेश के लिए महाराणा जो भी ख़र्च देते हैं, वह ख़र्च अब से अंग्रेज सरकार को नहीं दिया जाएगा। मेरवाड़ा प्रदेश में जो मेवाड़ के गांव हैं, उनसे जो भी आमदनी होगी, वह मेवाड़ भील कोर और मेरवाड़ा बटालियन के ख़र्च में लगाई जाएगी।
इन दोनों फ़ौजों के ख़र्च के लिए महाराणा से कुछ न मांगा जाएगा। यदि किसी वर्ष इस प्रदेश की आय 66 हज़ार रुपए से अधिक हुई, तो बचत का हिस्सा अंग्रेज सरकार महाराणा को चुकाएगी।
इन सब रियायतों के बावजूद महाराणा सज्जनसिंह राज़ी नहीं हुए, क्योंकि ऐसा करने से मेरवाड़ा पर मेवाड़ का प्रभुत्व समाप्त होने का ख़तरा था। फिर महाराणा सज्जनसिंह ने एक और बात अंग्रेज सरकार के समक्ष रखी।
महाराणा ने कहा कि “नीमच के पास मेवाड़ के जो गांव ग्वालियर के अधिकार में हैं, वे गांव मुझको लौटा दिए जाएं और ग्वालियर वालों को उतनी ही आय के अन्य गांव अंग्रेज सरकार के इलाके से दिए जाएं। यदि ऐसा हो तो मैं मेरवाड़ा में अपने गांव छोड़ने के लिए तैयार हूँ।”
महाराणा का प्रस्ताव वाजिब था, परन्तु अंग्रेज सरकार ने इसमें अपनी हानि देखी, इसलिए महाराणा के प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया गया। धीरे-धीरे वही हुआ जिसका ख़तरा था। अप्रत्यक्ष रूप से मेरवाड़ा पर मेवाड़ का प्रभुत्व समाप्त हो गया।
1882 ई. – कविराजा द्वारा बगीचा बनवाना :- महाराणा सज्जनसिंह ने कविराजा श्यामलदास को एक बगीचा बनाने के लिए हाथीपोल दरवाज़े के बाहर हवाले में 10 बीघा ज़मीन दी। इस बगीचे के निर्माण के दौरान महाराणा ने खुद 2-3 बार दौरा किया।
महाराणा ने इस बगीचे के साथ रास्ता, पट्टियां, दरख़्त, इमारत आदि बनवाने का भी हुक्म दिया। 13 अक्टूबर, 1882 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने उदयपुर स्थित करणी माता मंदिर में मूर्ति स्थापना की प्रतिष्ठा करवाई।
18 अक्टूबर को महाराणा सज्जनसिंह कविराजा द्वारा निर्मित बगीचे में पधारे और कविराजा का आतिथ्य स्वीकार किया। महाराणा ने कविराजा को एक खिलअत देकर इस बगीचे का नाम ‘श्यामल बाग’ रखा।
कीकाबाई जी का उदयपुर आगमन :- 25 नवम्बर को महाराणा की भुआ कीकाबाई जी किशनगढ़ से उदयपुर पधारीं। ये महाराणा भीमसिंह की पौत्री, कुंवर अमरसिंह की पुत्री व किशनगढ़ महाराजा शार्दूलसिंह की दादी थीं। महाराणा सज्जनसिंह चम्पाबाग तक पेशवाई हेतु गए और उनको आदरसहित महलों में लाए।
सज्जन हॉस्पिटल की स्थापना :- 7 दिसम्बर, 1882 ई. को उदयपुर में महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन हॉस्पिटल खोला। 12 दिसम्बर को मेवाड़ रेजीडेंसी के पद पर कर्नल वाल्टर नियुक्त होकर उदयपुर आया और कर्नल स्मिथ इस पद से हटकर लौट गया।
बाबू हरिश्चन्द्र का उदयपुर आगमन :- इन्हीं दिनों काशी के विद्वान बाबू हरिश्चन्द्र का उदयपुर आना हुआ। 24 दिसम्बर को विदाई के वक्त महाराणा ने उनको एक खिलअत भेंट की।
महाराणा के पुत्र का जन्म :- 9 फरवरी, 1883 ई. को महाराणा सज्जनसिंह की ईडर की राठौड़ रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिससे मेवाड़ में हर तरफ खुशी का माहौल हुआ, क्योंकि 55 वर्षों में मेवाड़ राजपरिवार में किसी पुत्र का जन्म हुआ था।
सब तरफ यह खुशी के समाचार पहुंचा दिए गए। उदयपुर, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, मांडलगढ़, जहाजपुर आदि जगहों व अन्य ठिकानों पर तोपों के फायर करके खुशी मनाई गई। यहां तक कि जयपुर, जोधपुर आदि रियासतों में भी समाचार पहुंचने पर तोपों से फायर किए गए और जलसे शुरू हो गए।
हज़ारों अशर्फियाँ गरीबों में वितरित की गई। महाराणा सज्जनसिंह ने इस अपार खुशी के मौके पर उत्सव मनाने हेतु 10 लाख रुपए की मंजूरी दी, लेकिन उसी रात 12 बजे राजकुमार का देहांत हो गया और हर तरफ शोक छा गया।
सौभाग्य कुंवर जी का उदयपुर आगमन :- 16 फरवरी को महाराणा की भुआ सौभाग्य कुंवर रीवां से उदयपुर आईं। ये महाराणा सरदारसिंह की पुत्री व रीवां के महाराजा रघुनाथ सिंह की रानी थीं। महाराणा सज्जनसिंह पेशवाई हेतु चम्पाबाग तक गए और आदरसहित उन्हें महलों में ले आए।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जोधपुर प्रस्थान :- 27 फरवरी को स्वामी दयानंद सरस्वती महाराणा से विदा लेकर जोधपुर की तरफ रवाना हुए।
कविराजा श्यामलदास का जोधपुर प्रस्थान :- महाराणा सज्जनसिंह को ख़बर मिली कि जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ के कंठ में तेज़ दर्द हो रहा है। महाराणा ने 27 मार्च को कविराजा श्यामलदास को महाराजा के हाल पूछने के लिए जोधपुर हेतु रवाना किया।
कविराजा जोधपुर से वापस लौटे, तो उनकी आंख में दर्द शुरू हुआ। 2 महीने तक डॉक्टर समरविल और डॉक्टर मलन ने इलाज किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
22 जून को महाराणा सज्जनसिंह ने साइर के दारोगा, कविराजा के मित्र व महद्राज सभा के सदस्य पंडित ब्रजनाथ के साथ कविराजा को इंदौर भेजा। इंदौर में डॉक्टर कीगन ने कविराजा का अच्छा इलाज करके उनको दुरुस्त कर दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)