1881 ई. – जनगणना से नाराज़गी व कुछ अन्य मांगों को लेकर ज़बरदस्त भील विद्रोह :- मेवाड़ में इस वर्ष पहली जनगणना करवाने के प्रयास हुए, तो पहाड़ी भीलों ने अहलकारों को मनुष्यों व घरों की गिनती करते हुए देखा और वहम किया कि हमारे साथ कुछ अनुचित होने जा रहा है।
फिर किसी ने इन भीलों के साथ मज़ाक करते हुए कहा कि गिनती इस ख़ातिर की जा रही है ताकि बूढ़ी औरतें बूढ़ों को, जवान-जवानों को, मोटी-लंबी मोटे-लंबों को और छोटी-पतली छोटे-पतलों को दिलाई जाएगी।
भील लोग वहम का शिकार जल्दी हो जाते थे और उन्होंने इस मज़ाक को भी हकीकत मान लिया। इसके अलावा बराड़ (एक प्रकार का टैक्स) लिए जाने से भी भील नाराज़ थे।
भीलों और कलालों के बीच शराब को लेकर झगड़े चल रहे थे, इसलिए भीलों ने विद्रोह की आड़ में कलालों का दमन करने की भी ठान ली। इसके अलावा मेवाड़ के कुछ महाजन लोग महाराणा की ऋषभदेव मंदिर में की जाने वाली कार्रवाई से नाराज़ थे, इसलिए वे भीलों को भड़काने का काम करते थे।
4000 भीलों ने गांव जावद में माता के मंदिर पर इक्कठे होकर हलफ़ के साथ तय किया कि महाराणा व अंग्रेजों की फौज से सामना करेंगे। (हलफ़ :- भील लोग लड़ाई के मौके पर तलवार के ऊपर अफ़ीम रखकर थोड़ी-थोड़ी सब लोग खा लेते थे)
महाराणा सज्जनसिंह ने कविराजा श्यामलदास को भीलों को समझाने ख़ातिर भेजा। कविराजा ने जैसे ही भीलों के इलाके में प्रवेश किया, तो उन्होंने तीर चलाने शुरू कर दिए। कविराजा की गनीमत रही कि तीर ऊपर से निकल गए और वे लौटकर टीडी आ गए।
टीडी में कविराजा को खबर मिली कि थानों के 2 सवार भीलों के हाथों कत्ल हुए और भीलों की फौज बारहपाल के थाने की तरफ जा रही है। 26 मार्च को खबर मिली कि बारहपाल, टीडी और पडूणा के भीलों ने मिलकर बारहपाल थाने के थानेदार को उसके सिपाहियों समेत मारकर थाना जला दिया।
महाराणा सज्जनसिंह के हुक्म से कविराजा श्यामलदास, मामा अमानसिंह व लोनार्गीन को 5 कंपनी शम्भू पलटन व सज्जन पलटन की, एक रिसाला, 50 सवार व 2 तोपें देकर विदा किया।
(मामा अमानसिंह :- ये किशनगढ़ के नज़दीकी रिश्तेदार और अजमेर जिले के गगवाना, ऊँटडा, मगरा गांवों के स्वामियों में से हैं। इनका ख़िताब ‘राजा’ है। महाराणा सज्जनसिंह के मामा होने के कारण मेवाड़ में सब इनको मामा ही कहते थे। ये अंग्रेजी, हिंदी, फ़ारसी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे।)
रात की 2 बजे फ़ौज रवाना हुई। मेवाड़ी फौज को काया व बारहपाल के रास्ते के बीच एक बूढ़ी औरत मिली, जिसने कहा कि “मैं गोवर्द्धन कलाल की औरत हूँ और मेरे पूरे खानदान को भीलों ने मार दिया है।”
कविराजा ने इस औरत को तसल्ली देकर उदयपुर की तरफ भेज दिया। मेवाड़ी फौज आगे बढ़ी तो डाक बंगले के करीब सड़क पर एक सिपाही की लाश मिली, बारहपाल में जाकर देखा तो गोवर्द्धन कलाल का घर, थाने का मकान, दूकानें सब जल रहे थे।
थाने के करीब कई घोड़ों की लाशें मिलीं और करीब ही गोवर्द्धन कलाल के घर की एक स्त्री की लाश मिली, डाक बंगले के नज़दीक थानेदार सुंदरलाल की लाश मिली। आम के दरख़्त के नीचे बैठकर लाशें गिनी गई, तो मालूम पड़ा कि 17 लोग मार दिए गए हैं।
गोवर्द्धन कलाल के बेटे की बहू अपने 4 साल के बेटे के साथ कविराजा के सामने आई, तो कविराजा ने देखा कि उस औरत की कमर पर एक गहरा तलवार का ज़ख्म था और उसके लड़के के पैरों की दोनों एडियां तलवार से काट दी गई थीं।
कविराजा श्यामलदास ने उस औरत और बच्चे को पानी पिलाकर पूड़ी और सब्जी दी। दुःख की वजह से उस औरत ने ख़ुद कुछ न खाकर सिर्फ अपने बच्चे को खिलाया। उस औरत के कहने पर उसके जलते हुए घर से एक पीतल का बर्तन बाहर निकाला गया, जिसमें 50 रुपए थे।
कविराजा ने उसको पीतल का बर्तन देकर एक गाड़ी में बिठाया और सही सलामत उदयपुर भिजवा दिया। यह कलाल परिवार करीब 20 हजार की जमा पूंजी रखता था और इस परिवार ने दारू का ठेका लेकर दूसरे कलालों की दूकानें बंद करवा दी थीं, जिससे भील लोग इस परिवार से खफ़ा थे।
जो लाशें इकट्ठी की गई थीं, उनमें हिंदुओं को जला दिया गया और मुस्लिमों को दफनाया गया। फिर कविराजा एक डाक बंगले में पहुंचे, जहां एक बूढ़ा चौकीदार मिला। उसने कहा कि “पडूणा और बारहपाल की तरफ से 2-3 हज़ार भीलों ने थाने पर हमला कर दिया था। थोड़ी देर तक तो
थानेदार और सिपाहियों ने लड़ाई जारी रखी, पर जब भीलों ने थाना जला दिया, तो सिपाही लोग भागकर टेकरी पर चढ़ गए। थोड़ी देर और उन्होंने मुकाबला किया और फिर उदयपुर की तरफ भागने लगे। भीलों ने उनका पीछा किया और सबको मार दिया। फिर भीलों ने कलाल के घर
से शराब पी। अगर आप लोगों की फ़ौज कल यहां आती, तो नशे में चूर सैंकड़ों भील गिरफ्तार हो सकते थे। मुझको उन भीलों ने इसलिए नहीं मारा, क्योंकि मैं टॉमस विलिअम साहिब का आदमी हूँ। उन साहिब ने सड़क की मजदूरी में इन भीलों को हज़ारों रुपए दिलवाए थे।”
शेष अगले भाग में। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)