महद्राज सभा :- 20 अगस्त, 1880 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने इजलासखास नामक काउंसिल का नाम बदलकर ‘महद्राज सभा’ रखा और कांउसिल में कई परिवर्तन किए। इस काउंसिल के 18 सदस्यों को बुलाकर उदयपुर के कुंवरपदा के महल में दरबार रखा गया।
महद्राज सभा के 18 सदस्य :- बेदला के राव तख्तसिंह चौहान, पारसोली के राव रतनसिंह चौहान, सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, आसींद के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत, शिवरती के बाबा गजसिंह, ताणा के राज देवीसिंह झाला, देलवाड़ा के राज फतहसिंह झाला,
काकरवा के उदयसिंह राणावत, शिवपुर के महाराज रायसिंह, कविराजा श्यामलदास, अर्जुनसिंह कायस्थ, महता तख्तसिंह, राय पन्नालाल, बख्तावरसिंह, पुरोहित पद्मनाथ, पंडित ब्रजनाथ, जानी मुकुंदलाल, मोहनलाल पंड्या।
दरबार में महाराणा सज्जनसिंह ने एक भाषण दिया। यह भाषण कुछ इस तरह था :- “ऐ मेम्बरान जलसे राज्य श्री महद्राज सभा। यह बात ज़ाहिर है कि हमारे गद्दी पर बैठने से पहले मेवाड़ राज्य को एक बड़ी अदालत की सख़्त जरूरत थी। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने
इजलासखास की स्थापना की। जिस समय यह अदालत बनाई गई, उस समय से ही हमारी ये दिली ख्वाहिश थी कि सभी उमराव, सरदार, अहलकार और पासवान न्याय के प्रबन्ध से रूबरू हो जाएं। पिछले 3 सालों में इस अदालत
की कार्रवाइयों से मेवाड़ ने बहुत से क्षेत्रों में बड़ी तरक्की हासिल की है। मेवाड़ में कौन-कौन कैसे-कैसे उमराव, सरदार, अहलकार व पासवान हैं, ये सबको मालूम हो गया। किस-किस ने इस अदालत की कार्रवाई में दिल से मदद की
और किस-किस ने नहीं की, ये बातें हमको बखूबी रोशन हो गई। आज हम इजलासखास का नाम बदलकर महद्राज सभा रख रहे हैं। हम ये उम्मीद करते हैं कि इस सभा के सभी 18 सदस्य दिलोजान से मेहनत करेंगे और प्रजा को
अच्छा न्याय दिलाएंगे। हमारी नज़र हर एक सदस्य की कार्रवाई पर अवश्य रहेगी। श्रीएकलिंगजी से यही अर्ज़ है कि इस महद्राज सभा को कायम रखते हुए सभी सदस्यों से इंसाफ और उम्दा कार्यों की नामवारी करावें। बस और ज्यादा क्या कहें।”
इसके बाद 18 सदस्यों में से एक कविराजा श्यामलदास ने सभी सदस्यों की तरफ से एक भाषण देकर महाराणा का अभिवादन किया और अपना काम पूरी जिम्मेदारी के साथ करने का वचन दिया। फिर सभी सदस्यों ने महाराणा सज्जनसिंह को नज़राने दिए। महाराणा ने सभी सदस्यों को अपने हाथ से फूलों के हार पहनाए और दरबार बर्खास्त हुआ।
जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा का देहांत :- 17 सितम्बर, 1880 ई. को जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा का देहांत हो गया। उनके देहांत की ख़बर आने पर महाराणा को बड़ा अफ़सोस हुआ। 22 सितम्बर को दस्तूर के अनुसार उदयपुर में मातमी दरबार किया गया।
22 अक्टूबर को महाराणा सज्जनसिंह मातमपुर्सी के लिए जयपुर की तरफ रवाना हुए। उनके साथ में सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, शिवगढ़ के रामसिंह, बख्तावरसिंह, कविराजा श्यामलदास, महता राय पन्नालाल, उदयसिंह राणावत, महाराज प्रतापसिंह, पृथ्वीसिंह राठौड़, जानी मुकुन्दलाल, पुरोहित पद्मनाथ, बड़वा लखमीचन्द, धायभाई हुकमा, उदयराम पाणेरी भी थे।
महाराणा व उनके सरदार आदि बग्घियों व घोड़ों पर सवार होकर सरदारगढ़ व फिर आसींद पहुंचे। 24 अक्टूबर को नयानगर से रेल में सवार होकर अजमेर पहुंचे, जहां कमिश्नर साण्डर्सन पेशवाई हेतु स्टेशन पर आया।
फिर महाराणा सज्जनसिंह किशनगढ़ पहुंचे, जहां महाराजा शार्दूलसिंह राठौड़ अपने भाइयों सहित पेशवाई हेतु खड़े थे। मामूली मुलाकात के बाद महाराणा ने जयपुर से लौटते समय किशनगढ़ आने की बात कही और वहां से रवाना हुए।
25 अक्टूबर को जयपुर पहुंचे। मातमी के कारण पेशवाई और तोपों की सलामी न करने के लिए महाराणा ने पहले ही जयपुर सूचना भिजवा दी थी। महाराणा महलों में पहुंचे, जहां शवरता के महल में जयपुर के नए महाराजा माधोसिंह मातमी दरबार में गद्दी पर बैठे थे।
महाराणा ने सांत्वना दी और रामबाग में पधारे, जहां राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल ब्राडफोर्ड ने महाराणा से मुलाकात की। शाम के वक्त महाराणा सज्जनसिंह व महाराजा माधोसिंह में बातचीत हुई।
शाम के वक्त महाराजा माधोसिंह महाराणा सज्जनसिंह को राजमहलों में ले गए, जहां दस्तूरी दरबार व महाराणा के सम्मान में 25 तोपों की सलामी सर हुई। 29 अक्टूबर को महाराणा जयपुर से रवाना हुए। महाराणा किशनगढ़ गए, जहां महाराजा शार्दूलसिंह पेशवाई करके उनको महलों में ले गए।
30 अक्टूबर को अजमेर, वहां से बदनोर और फिर सरदारगढ़ में पड़ाव होते हुए 2 नवम्बर को महाराणा ने उदयपुर राजमहलों में प्रवेश किया। 4 दिसम्बर को कर्नल ब्राडफोर्ड ने उदयपुर आकर महाराणा से मुलाकात की।
फतहलाल का विवाह :- 26 जनवरी, 1881 ई. को महता पन्नालाल के पुत्र फतहलाल का विवाह था। उन्होंने महाराणा को जनाने सहित आमंत्रित किया। महाराणा ने फतहलाल को पैर में पहनने के स्वर्ण आभूषण, पन्नालाल व मुरलीधर को खिलअत भेंट की।
8 मार्च को राजपूताने का ए.जी.जी. कर्नल ब्राडफोर्ड विलायत चला गया। उसकी जगह मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट वाल्टर को ए.जी.जी. बनाया गया। वाल्टर आबू की तरफ रवाना हो गया। अगले भाग से भील विद्रोह का वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)