किशनगढ़ महाराजा पृथ्वीसिंह का देहांत :- 23 दिसम्बर, 1879 ई. को नसीराबाद में महाराणा सज्जनसिंह को खबर मिली कि महाराजा पृथ्वीसिंह राठौड़ बहुत बीमार हो गए। अगले दिन खबर मिली कि महाराजा का देहांत हो गया।
महाराणा सज्जनसिंह ने कविराजा श्यामलदास से पूछा कि “मेवाड़ के महाराणा तो अपने पिता की दाहक्रिया में भी नहीं जाते हैं, तो क्या मेरा किशनगढ़ महाराजा की दाहक्रिया में जाना उचित होगा ?”
तो कविराजा ने कहा कि “मेवाड़ के महाराणा अपने पिता की दाहक्रिया में इसलिए नहीं जाते थे, क्योंकि उस समय महलों में बखेड़ा होने का भय रहता था, पर अभी ऐसा कोई भय नहीं है। अपने कुटुम्ब और सम्बन्धियों के साथ जैसा व्यवहार सामान्य गृहस्थ लोगों का होता है, वैसा ही राजाओं का भी है।”
ये सुनकर महाराणा ने कविराजा से कहा कि “मृत महाराजा एक तो किशनगढ़ के महाराजा हैं और दूसरे वे हमारे श्वसुर भी हैं, इसलिए इस समय हम इस पुरानी रूढ़ी को तोड़ना उचित समझते हैं।”
किशनगढ़ पधारकर महाराणा सज्जनसिंह अचानक महाराजा पृथ्वीसिंह की दाहक्रिया में चले गए। वहां मौजूद लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि महाराणा दाहक्रिया में आएंगे, लेकिन महाराणा के वहां पहुंचने से सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
इस अवसर पर महाराणा ने देखा कि 2-3 को छोड़कर वहां बाकी राजपूतों के चेहरों पर कोई रंज नहीं है। दाहक्रिया के बाद उन्होंने कविराजा से कहा कि “कैसे निष्ठुर लोग हैं, अपने मालिक के देहांत पर भी रंजीदा नहीं हैं और लंबी-चौड़ी बातें बना रहे हैं।”
महाराणा सज्जनसिंह दाहक्रिया के बाद किशनगढ़ के फूल महल में गए और शाम के वक्त मातमी दरबार में पधारकर महाराजा शार्दूलसिंह व उनके भाइयों को तसल्ली दी। इसी तरह किशनगढ़ के अन्तःपुर में भी तसल्ली करवाई। महाराजा शार्दूलसिंह ने ऐसे समय पर महाराणा के पधारने का बहुत धन्यवाद दिया।
महाराणा सज्जनसिंह का अजमेर पहुंचना :- महाराणा सज्जनसिंह किशनगढ़ से नसीराबाद पहुंचे व 27 दिसम्बर को अजमेर पहुंचे। अजमेर स्टेशन पर कर्नल ब्राडफोर्ड, राजपूताने के ए.जी.जी. आदि अंग्रेज अफसर पेशवाई हेतु आए।
मेवाड़ व जयपुर नरेश का स्नेहपूर्ण मिलन :- 31 दिसम्बर को शाम की 4 बजे महाराणा सज्जनसिंह जयपुर पहुंचे, जहां महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा, खेतड़ी के राजा अजीतसिंह, ठाकुर फतहसिंह व पोलिटिकल एजेंट बैनन सहित स्टेशन पर पेशवाई के लिए मौजूद रहे।
जयपुर के सरदारों ने महाराणा को सलाम करके नज़रें दिखलाई। इसके बाद कविराजा श्यामलदास, देलवाड़ा के राजराणा फतहसिंह झाला, बदनोर के ठाकुर केसरीसिंह राठौड़, कुराबड़ के रावत रतनसिंह चुंडावत व सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया ने महाराजा रामसिंह को नज़रें दिखलाई।
इस समय कविराजा श्यामलदास ने यह दोहा कहा :- “आज बधाई अखिल जग अरिगन पाई ताप। सेवक भये विदेह लखि सज्जन राम मिलाप।।” बाद में जयपुर के पोलिटिकल एजेंट ने इस दोहे की नकल मांगी, तो कविराजा ने नकल भिजवा दी।
महाराणा सज्जनसिंह व महाराजा सवाई रामसिंह एक ही बग्घी में सवार होकर सांगानेरी दरवाज़े से होते हुए जयपुर के राजमहलों में पहुंचे। शवरता नामक सभा स्थान में दरबार हुआ। महाराणा को सुखनिवास महल में ठहराया गया।
1 जनवरी, 1880 ई. को महाराणा व महाराजा दोनों एक ही बग्घी में सवार होकर रामनिवास बाग़ में पाठशाला के विद्यार्थियों का जलसा देखने पधारे। रात्रि के समय दोनों राजाओं ने नाटकशाला में एक नाटक देखा।
2 जनवरी को महाराणा ने दस्तकारी के स्कूल व पानी लाने के नलों के इंजन का अवलोकन किया। रात्रि को दोनों राजाओं ने ‘बद्रेमुनीर’ व ‘बेनज़ीर का बेनज़ीर’ नाटक देखा। 3 जनवरी को महाराणा खातीपुरा की तरफ चीते के ज़रिए हिरणों का शिकार करने पधारे।
इस समय खेतड़ी के राजा अजीतसिंह व ठाकुर फतहसिंह महाराणा के साथ थे। महाराणा ने एक हिरण चीते से और 3 सूअर गोली से शिकार किए। 4 जनवरी को ठाकुर फतहसिंह ने महाराणा, मेवाड़ के सरदारों व पासवानों को दावत दी।
शाम को दोनों राजा रामनिवास बाग में जानवर देखने गए व रात को नाटकशाला में ‘अजीब व गरीब का चराग’ नामक नाटक देखा। 5 जनवरी को महाराणा ने गैस का कारखाना देखा। 6 जनवरी को महाराणा ने बादल महल, नए महल, अंटाघर और महाराजा कॉलेज का दौरा किया।
7 जनवरी को इंदौर के तुकाजीराव होल्कर के दो बेटों ने जयपुर के सुखनिवास महल में आकर महाराणा से भेंट की। 8 जनवरी को दस्तूरी रस्में अदा होने के बाद महाराणा सज्जनसिंह किशनगढ़ के लिए रवाना हुए।
महाराणा का अजमेर पहुंचना :- महाराणा ने किशनगढ़ के महाराजा शार्दूलसिंह व उनके भाइयों को रंगीन पोशाकें व दावत देकर उनके पिता के देहांत का शोक मिटाया। 10 जनवरी को महाराणा किशनगढ़ से अजमेर पहुंचे, जहां कर्नल ब्राडफोर्ड व सेक्रेटरी टाल्बट पेशवाई हेतु आए।
मेरवाड़ा बटालियन ने महाराणा को सलामी दी। महाराणा के मामा बख्तावर सिंह ने महाराणा को दावत दी। 12 जनवरी को महाराणा रायपुर पहुंचे, जहां निम्बाज के ठाकुर चतरसिंह और रायपुर के ठाकुर हरिसिंह ने महाराणा को सलाम किया और भेंट उपहार वग़ैरह नज़र किए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)