देशहितैषिणी सभा का गठन :- 2 जुलाई, 1877 ई. को नवलखा बाग के महलों में महाराणा सज्जनसिंह ने देशहितैषिणी सभा का गठन किया। इसके अंतर्गत राजपूतों के विवाह समारोह में होने वाले ख़र्च को कम किया जाना तय हुआ। इसके अलावा बहुविवाहों के सम्बन्ध में कुछ नियम बना दिए गए।
नंदकंवर जी का देहांत :- 6 नवम्बर, 1877 ई. को महाराणा शम्भूसिंह की औरस माता व बागोर के कुंवर शार्दूलसिंह की पत्नी नंदकंवर जी का देहांत हो गया। नंदकंवर जी का बर्ताव सभी के साथ इतना बढ़िया था कि उनके देहांत का सभी को बड़ा रंज हुआ।
ईडर में विवाह :- महाराणा सज्जनसिंह का तीसरा विवाह ईडर के महाराजा जवानसिंह राठौड़ की छोटी पुत्री केसर कंवर बाई के साथ तय हुआ। 29 नवंबर को बारात उदयपुर से रवाना हुई और 7 दिसम्बर को ईडर पहुंची।
इसी दिन विवाह हुआ। 16 दिसम्बर को महाराणा सज्जनसिंह वहां से रवाना हुए और मूंडेटी, पाल, खेरवाड़ा होते हुए 28 दिसम्बर को उदयपुर के गोवर्द्धनविलास महल में पहुंचे।
अकाल :- 1877 ई. में मेवाड़ में मात्र पौने 14 इंच बारिश होने से अकाल पड़ा, लेकिन महाराणा सज्जनसिंह ने तुरंत व्यवस्थाएं करवाकर बाहर से अनाज मंगवाया और कई जगह खैरातखाने खुलवाकर इस अकाल का प्रभाव प्रजा पर अधिक नहीं पड़ने दिया।
इस अकाल में भी लोग मारे गए लेकिन अकाल की भयावहता के दृष्टिकोण से मरने वालों का आंकड़ा काफी कम रहा।
नमक की कीमतें तय करना :- जनवरी, 1878 ई. में महाराणा सज्जनसिंह चारभुजा, कुंभलगढ़, राजनगर की यात्रा करते हुए नाहरमगरा पहुंचे। इसी दौरान राजपूताने के ए.जी.जी. लॉयल का राजनगर आना हुआ।
महाराणा सज्जनसिंह भी नाहरमगरा से राजनगर पहुंचे और 14 फरवरी को लॉयल से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का उद्देश्य नमक सम्बन्धी मसलों को हल करना था। मेवाड़ की तरफ से कविराजा श्यामलदास व महता पन्नालाल ने नमक के सौदे की बातचीत की।
अंग्रेज सरकार की तरफ से मिस्टर होम व कर्नल इम्पी ने बातचीत की। इस सौदे में तय हुआ कि मेवाड़ अपनी प्रजा के लिए 2 लाख मन नमक 1 रुपए मन के हिसाब से पंचभद्रा झील से लेगा और 2 हजार मन नमक बिना किसी कीमत पर ख़ास कोठार ख़र्च के लिए अलग से लेगा।
साथ ही यह भी तय हुआ कि मेवाड़ में नमक बनाना बन्द किया जाए, जिसके हर्जाने स्वरूप अंग्रेज सरकार महाराणा को रकम अदा करेगी। जिस नमक पर अंग्रेज सरकार चुंगी लगाएगी, उस पर मेवाड़ चुंगी नहीं लगाएगा।
इसके हर्जाने स्वरूप अंग्रेज सरकार महाराणा को प्रतिवर्ष 35 हज़ार रुपए अदा करेगी। इन शर्तों में बाद में कुछ बदलाव किए गए और महाराणा को नमक के हर्जाने के बदले में अंग्रेज सरकार ने प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए देना तय किया।
इस करार के बाद मेवाड़ राजकोष में रुपए तो आने लगे, लेकिन प्रजा के लिए नमक महंगा हो गया। महाराणा सज्जनसिंह ने इसके एवज में 62 चीजों पर चुंगी माफ कर दी और केवल अफीम, तम्बाकू, महुआ, गांजा, कपड़ा, रेशम, खांड, कपास, लकड़ी और लोहा, इन 10 चीजों पर चुंगी जारी रखी।
बम्बई का गवर्नर का उदयपुर आना :- 21 फरवरी को महाराणा सज्जनसिंह उदयपुर पधार गए। 22 फरवरी को बम्बई का गवर्नर सर रिचर्ड टेम्पल उदयपुर आया और 3 दिन ठहरकर 25 फरवरी को लौट गया।
उदयपुर में फैली अव्यवस्था को सुधारने का प्रयास :- उदयपुर शहर में अक्सर चोरियां होती थीं और कभी-कभार खूनी कत्ल करके भागने में सफल हो जाता था। बाजार व गलियों में गंदगी रहने लगी। गाय, भैंस, सांड, बकरे आदि गलियों में घूमते थे। इन्हीं दिनों महता शेरसिंह की हवेली पर पहरा देने वाले एक गुसाई को किसी ने मार डाला और क़ातिल भाग निकला।
महाराणा सज्जनसिंह ने कविराजा श्यामलदास को बुलाया और कहा कि पुलिस व्यवस्था को मजबूत बनाना चाहिए। कविराजा ने अर्ज़ किया कि महाराणा शम्भूसिंह ने भी 1873 ई. में यही फरमाया था, लेकिन कुछ लोगों ने उनके मंसूबे पूरे न होने दिए।
महाराणा सज्जनसिंह ने कहा कि मैं इस काम को पूरा किए बगैर न छोडूंगा। कविराजा ने महाराणा से कहा कि आपको यदि यह काम करवाना ही है, तो कुछ बातें ध्यान में रखनी होंगी।
पहली तो ये कि आपको अपने इस हुक्म पर टिके रहना होगा, दूसरा ये कि अफसरों की नियुक्ति करनी होगी, उन अफसरों के ऊपर भी अलग से शख्स मुकर्रर करने होंगे, तीसरा ये कि आपको शुरुआत में सख़्त सज़ाएं भी देनी पड़ेंगी। यदि आपने सज़ा में नरमी बरती, तो चोर, कातिल वगैरह काबू में न आएंगे।
महाराणा ने ये सब बातें स्वीकार की और मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल इम्पी को बुलाकर राय मशवरे लिए। इम्पी ने भी इस सलाह को उचित जाना। महाराणा ने इस काम के लिए अब्दुर्रहमान खां को सुपरिंटेंडेंट पुलिस नियुक्त किया और कविराजा श्यामलदास को उनका मददगार बनाया।
अब्दुर्रहमान खां ने अपनी योग्यता कई बार सिद्ध की थी, उन्होंने मुस्लिम होते हुए भी निष्पक्ष रहते हुए अपनी ही जाति के कुछ गुनहगारों की जांच करवाकर उन्हें दोषी सिद्ध करवाकर दण्ड दिलवाया था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)