1878 ई. – महाराणा द्वारा गोशाला का निर्माण :- कविराजा श्यामलदास की सलाह पर महाराणा सज्जनसिंह ने लावारिस सांड व गायों के लिए गोशाला बनवाई, क्योंकि अक्सर ये सांड लोगों को ज़ख्मी कर देते थे। सब्जी बेचने वालों को भी इनसे नुकसान होता था।
पत्थरों व लकड़ियों की चोटों से ये मवेशी भी ज़ख्मी होते थे। महाराणा द्वारा बनवाई गई गोशाला को ‘कांजी हाउस’ नाम दिया गया। गोशाला में घास व कुछ सेवकों का उचित प्रबंध कर दिया गया, तो फिर यह आदेश हुआ कि बाजार से आवारा मवेशियों को घेरकर यहां लाया जावे।
जब ये कार्य करने हेतु कुछ लोग भेजे गए, तो बाजार में सेठ चंपालाल के नेतृत्व में व्यापारियों आदि ने इस कार्य का विरोध किया। दरअसल ये सेठ लोग महाराणा सज्जनसिंह की ऋषभदेव मंदिर के सम्बंध में की गई कार्रवाई से नाराज़ थे।
इस वक्त इन सेठ लोगों ने मुसलमान बोहरा व्यापारियों को भी उनके साथ शामिल होकर बग़ावत करने के लिए उकसाया, लेकिन बोहरों ने कहा कि “हम महाराणा साहिब से बग़ावत करके उनके बदख्वाह नहीं बनेंगे”
महाराणा सज्जनसिंह के आदेश से 11 फरवरी की रात को सेठ चंपालाल, तिलोकचंद, चौधरी भीमराज, सिंगवी गुलाबचंद और शूरपुरया साहिबलाल को उनके घरों से गिरफ़्तार करके राजमहलों में क़ैद कर दिया गया।
अगले दिन कर्नल इम्पी को बुलाकर इन पांचों सेठ को हाजिर किया। महाराणा ने पांचों को धमकाकर कहा कि आज के बाद इस तरह का हुल्लड़ हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उदयपुर में व्यवस्थाएं करवाना व विकास के कार्य :- आवारा कुत्तों का बंदोबस्त किया गया, पागलखाना खोला गया, लड़के-लड़कियों के गुम हो जाने को रोकने का प्रबंध किया गया, शहर में सफाई का बंदोबस्त किया गया,
आम सड़कों व गलियों में अवैध मकान निर्माण पर रोक लगाई गई, सब्जी व मेवा बेचने वालों के लिए चुंगी कर माफ़ कर दिया गया, गिरा हुआ माल असली मालिक को दिलाने का प्रबंध किया गया।
मतलबी लोगों ने इन कामों में खलल डालने के बहुत से प्रयास किए, लेकिन महाराणा सज्जनसिंह, अब्दुर्रहमान खां और लाला केसरीलाल के होते हुए मतलबी लोगों की एक न चली और शहर का ऐसा बढ़िया प्रबन्ध कर दिया गया कि उदयपुर नए जमाने का शहर दिखने लगा।
काउंसिल के फैसले :- महाराणा सज्जनसिंह द्वारा इजलासखास नाम से बनाई गई काउंसिल ने वर्ष 1877-1878 ई. में 1203 मुकदमों के फ़ैसले सुनाए और प्रजा को अच्छा न्याय मिला। 12 अप्रैल, 1878 ई. को मेजर केडल मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर उदयपुर आया।
महाराणा सज्जनसिंह ने मुल्की इंतज़ाम हेतु कुछ नियुक्तियां की :- मगरे में महता अक्षयसिंह, गिरवा में महता तख्तसिंह, कुम्भलगढ़ में कायस्थ जोरावरनाथ, सहाड़ा में महता रघुनाथसिंह, राशमी में महता गोपालदास, छोटी सादड़ी में महता केसरीसिंह,
चित्तौड़गढ़ में ढिंकड़िया जगन्नाथ, मांडलगढ़ में महता विट्ठलदास, जहाजपुर में महता लक्ष्मीलाल, भीलवाड़ा में कश्मीरी पंडित रामनारायण, देशदाण में कश्मीरी पंडित ब्रजनाथ को हाकिम नियुक्त किया गया। इन हाकिमों की तनख्वाह 150 से 200 रुपए प्रतिमाह तय की गई।
महाराणा को पेट दर्द :- नवम्बर, 1878 ई. में महाराणा सज्जनसिंह को जोर से पेट दर्द शुरू हुआ। कुछ दिनों तक डॉक्टर शेपर्ड, डॉक्टर बीटसन व डॉक्टर अकबर अली ने इलाज किया, लेकिन कुछ भी फ़र्क़ न पड़ा। फिर हवा बदलने के लिए महाराणा नाहरमगरा पधारे, वहां उनका दर्द आधा कम हो गया।
महाराणा सज्जनसिंह द्वारा सामन्तों से मेलजोल बढ़ाना :- 28 नवम्बर को महाराणा सज्जनसिंह नाहरमगरे से रवाना होकर सारंगदेवोत राजपूतों के ठिकाने बाठरड़ा पहुंचे, जहां के राव दलेलसिंह सारंगदेवोत ने महाराणा को फौज समेत दावत दी। महाराणा के साथ इस समय 5-7 हज़ार लोग थे।
राव दलेलसिंह ने महाराणा को घोड़ा व सिरोपाव नज़र किया व पासवानों को भी सिरोपाव दिए। महाराणा ने राव दलेलसिंह को खिलअत भेंट की। इसी दिन महाराणा का पेट दर्द ख़त्म हो गया।
महाराणा का अगला दौरा भींडर की तरफ जाने का था। भींडर के महाराज हम्मीरसिंह शक्तावत इस समय सख़्त बीमार थे, फिर भी ख़ातिरदारी की बढ़िया तैयारी की, लेकिन 28 नवम्बर को ही हम्मीरसिंह का देहांत हो गया।
अगला पड़ाव 29 नवम्बर को सारंगदेवोत राजपूतों के ठिकाने कानोड़ में हुआ, जहां के रावत उम्मेदसिंह सारंगदेवोत ने महाराणा को फौज समेत दावत दी व हाथी, घोड़ा, ज़ेवर, सिरोपाव आदि नज़र किए। महाराणा ने भी रावत उम्मेदसिंह को खिलअत भेंट की।
वहां से महाराणा सज्जनसिंह बोहेड़ा के रावत अदोतसिंह के यहां भोजन करके बांसी के रावत मानसिंह शक्तावत के यहां पधारे। 1 दिसम्बर को बड़ी सादड़ी के राजराणा शिवसिंह झाला ने भी महाराणा को फौज समेत दावत दी। महाराणा ने भी उनको खिलअत दी।
3 दिसम्बर को छोटी सादड़ी में पड़ाव हुआ। 4 दिसम्बर को महाराणा ने कालाखेत आदि स्थानों का दौरा किया और उस इलाके में रहने वाली प्रजा से खेती वगैरह के हाल सुने। 5 दिसम्बर को महाराणा सज्जनसिंह नीमच पधारे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)