इजलास ख़ास की स्थापना :- 10 मार्च, 1877 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने एक काउंसिल की स्थापना की, जिसे इजलास ख़ास नाम दिया। इस काउंसिल के सदस्यों की सूची :- बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, पारसोली के राव लक्ष्मणसिंह चौहान, देलवाड़ा के राज फतहसिंह झाला, ताणा के राज देवीसिंह झाला,
आसींद के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत, शिवरती के महाराज बाबा गजसिंह, सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, काकरवा के उदयसिंह राणावत, कविराजा श्यामलदास, मोतीसिंह राठौड़, राव बदनमल, महता तख्तसिंह, पुरोहित पद्मनाथ, अर्जुनसिंह कायस्थ।
मार्च, 1877 ई. – पंडित रघुनाथराव को क़ैद करना :- केवड़ा आदि पहाड़ी इलाकों के हाकिम पंडित रघुनाथराव के ख़िलाफ़ शिकायतें महाराणा सज्जनसिंह के कानों तक गई। महाराणा सज्जनसिंह ने रघुनाथराव को उदयपुर बुलाकर कहा कि
“तुम्हारे ख़िलाफ़ रिश्वत लेने और प्रजा को तकलीफ़ देने की शिकायत दर्ज हुई है। अगर सब कुछ सच बयां करोगे, तो शायद सज़ा कम कर दी जाए।” रघुनाथराव ने कहा कि “यदि यह बात सच निकले तो आपकी हर सज़ा मंज़ूर है।”
महाराणा ने कायस्थ जोरावरनाथ माथुर, अब्दुर्रहमान खां, कायस्थ मोतीलाल भटनागर, ढींकड्या जगन्नाथ आदि को इसकी जांच के लिए भेजा। इन लोगों ने सबसे पहले केवड़ा से तहकीकात शुरू की और यहीं से रघुनाथराव की कारगुज़ारी सामने आने लगी।
तहकीकात के बाद मालूम पड़ा कि रघुनाथराव ने ग़बन व पहाड़ी भीलों से रिश्वत के रूप में 3 लाख रुपए लिए। नतीजतन पंडित रघुनाथराव को उसके साथी अहलकारों समेत क़ैद किया गया।
ऋषभदेव के मंदिर को अपने अधिकार में लेना :- मेवाड़ के पहाड़ी इलाके में ऋषभदेव (जैन व वैष्णव की आस्था का प्रतीक) मंदिर था। इस मंदिर के भंडारी जवाना और खेमराज थे, जिनके गिरोह पर मंदिर के कोष से धन के ग़बन का आरोप लगा।
जांच के लिए महाराणा सज्जनसिंह ने महासाणी मोतीलाल व अब्दुर्रहमान खां को भेजा, जिनकी रिपोर्ट आई कि उक्त आरोपियों ने एक लाख रुपए का गबन किया।
महाराणा सज्जनसिंह ने आरोपियों से उनके पद छीनकर अपने मंत्रियों को मंदिर की रक्षा और संचालन का उत्तरदायित्व सौंप दिया। महाराणा ने इस मंदिर को भी मंदिरों की व्यवस्था के लिए बनाए गए विभाग ‘महकमा देवस्थान’ के सुपुर्द कर दिया।
खेरवाड़ा में कार्रवाई :- खेरवाड़ा में रिसालदार हरदेव पर आरोप लगा कि वह सैनिकों पर ज़ुल्म करता है। यह बात मालूम पड़ने पर महाराणा सज्जनसिंह ने इसकी जांच करवाई। जांच 17 मार्च, 1877 ई. से शुरू हुई और अगस्त माह में रिपोर्ट आई।
जिसमें हरदेव पर लगे हुए आरोप सच साबित हुए। इस ख़ातिर महाराणा सज्जनसिंह ने उसे उसके पद से हटाकर महता अखेसिंह को वहां का हाकिम नियुक्त किया।
महाराणा ने इस इलाके के प्रबंध के लिए ‘शैलकांतार संबंधिनी’ नाम से एक सभा बनाई और इस सभा को जानी मुकुन्दलाल के सुपुर्द किया। महाराणा ने इस इलाके को खास अपनी निगरानी में रखा।
कुंभलगढ़ व सरदारगढ़ का दौरा :- मई, 1877 ई. में महाराणा सज्जनसिंह ने कुम्भलगढ़ दुर्ग का दौरा किया। 5 जून, 1877 ई. में महाराणा सज्जनसिंह सरदारगढ़ पधारे, जहां उन्होंने डोडिया ठाकुर मनोहरसिंह को जैतपुरा गांव लौटा दिया, जो फौज खर्च के रुपयों हेतु गिरवी रखा गया था।
महाराणा ने डोडिया ठाकुर मनोहरसिंह को अव्वल श्रेणी के सरदारों के बराबर दर्जा दिया, सामने की पंक्ति में शाहपुरा के नीचे बैठक व नाव में तख़्त के सामने बैठक प्रदान की।
पठानों का दमन :- मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों में कुछ विलायती पठान भीलों को रुपया उधार देते थे, जिसे बहुत ज्यादा ब्याज के साथ बुरी तरह वसूल करते थे। भीलों ने इस बात की शिकायत महाराणा सज्जनसिंह से की।
महाराणा ने अब्दुर्रहमान खां को मामले की जांच करने के लिए भेजा। अब्दुर्रहमान खां ने महाराणा को सूचना दी कि वास्तव में ये पठान ऐसा ज़ुल्म कर रहे हैं और जांच में भी खलल डाल रहे हैं। इस वक्त 200 पठान लाली की सराय में ठहरे हुए थे।
महाराणा ने सूरज निकलते ही महासाणी मोतीलाल व अंग्रेज अफसर लोनार्गिन को 2 पलटन, 2 तोप व 4 रिसालों सहित सराय की तरफ रवाना किया। पठान कहीं उदयपुर महलों की तरफ आकर फ़साद न करे, इस खातिर महाराणा ने ढींकड्या जगन्नाथ को सैनिक टुकड़ी समेत सूरजपोल दरवाज़े पर तैनात किया।
इसके अलावा महाराणा ने कविराजा श्यामलदास को मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल इम्पी के पास भेजकर वहां भी सुरक्षा के इंतज़ाम करवा दिए। महासाणी मोतीलाल के नेतृत्व में गई फ़ौज सराय तक पहुंच गई और उन्होंने पठानों से कहा कि
“अपने हथियार वहीं छोड़कर क़ैद में चले आओ, वरना बुरी तरह मारे जाओगे”। पठानों पर इस धमकी का ख़ासा असर हुआ और वे अपने हथियार वहीं छोड़कर बाहर आ गए। इन सब पठानों को क़ैद करके उदयपुर लाया गया।
महाराणा ने 2-4 फ़सादी पठान अफसरों को कैद किया और बाकियों को अंग्रेज सरकार की मदद से न सिर्फ मेवाड़ से, बल्कि हिंदुस्तान से बाहर निकलवा दिया। इस घटना के बाद पठानों की तरफ से कभी भी मेवाड़ में बग़ावत नहीं हुई।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)