अक्टूबर-नवम्बर, 1875 ई. – महाराणा का रुतबा व स्वाभिमान :- इंग्लैंड का युवराज एडवर्ड एल्बर्ट भारत आया और बम्बई में दरबार आयोजित हुआ, जहां सभी बड़े राजा-महाराजाओं को आमंत्रित किया गया।
महाराणा सज्जनसिंह ने इस दरबार में न जाने के प्रयास किए, परन्तु मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल हर्बर्ट के बार-बार निवेदन पर जाना स्वीकार किया।
महाराणा ने एक शर्त रखी कि “दरबार में दक्षिण और गुजरात के राजा-महाराजा भी आएंगे। मेवाड़ के महाराणाओं की प्रतिष्ठा आपसे भी छिपी नहीं है। हमारी बैठक किसी भी राजा या महाराजा की बैठक से नीचे ना हो, तो ही हम वहां आएंगे।”
पॉलिटिकल एजेंट ने कहा कि “हैदराबाद के निजाम के अलावा किसी महाराजा की बैठक महाराणा से ऊपर न होगी और निजाम के आने के बाद भी ऐसा कुछ उपाय किया जाएगा कि महाराणा का स्थान दूसरे नंबर पर न रखके बराबरी पर रखा जावे।”
15 अक्टूबर को महाराणा सज्जनसिंह सैन्य सहित उदयपुर से रवाना होकर गोवर्धनविलास के महलों में पड़ाव डाला। 19 अक्टूबर को वहां से रवाना होकर बारहपाल, परसाद, खेरवाड़ा, बिछीवाड़ा, समेल, बाकरोल, हरसोल की छावनी और देवगाम में पड़ाव डालते हुए 27 अक्टूबर को अहमदाबाद पहुंचे।
वहां अहमदाबाद छावनी का जनरल, शहर का कलेक्टर आदि कुल 13 अंग्रेज अफ़सर डेढ़ कोस तक पेशवाई के लिए आए और टोपियां उतारकर महाराणा को सलाम किया। शहर से आधे मील की दूरी पर महाराणा ने अंग्रेज अफसरों को रुख़सत किया।
फिर महाराणा सज्जनसिंह सेठ मगनभाई हटीभाई की कोठी पर पधारे और फिर अहमदाबाद छावनी की तरफ से 19 तोपों की सलामी महाराणा के सम्मान में सर हुई। 28 अक्टूबर को महाराणा ने अहमदाबाद में दीवाली का त्योहार मनाया।
29 अक्टूबर को महाराणा अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर पधारे, जहां कलेक्टर आदि अंग्रेज अफसर जंगी फ़ौज समेत पेशवाई हेतु खड़े थे। अंग्रेजी फ़ौज ने सलामी उतारी और फिर से 19 तोपों की सलामी सर हुई।
महाराणा वहां से स्पेशल ट्रेन में सवार होकर 11 बजे बड़ौदा स्टेशन पर पहुंचे, जहां फिर से 19 तोपों की सलामी सर हुई। शाम को 5 बजे महाराणा सूरत पहुंचे। महाराणा ने सूरत में पड़ाव डालकर सेठ आदरजी की तरफ से दावत कुबूल की।
अगले दिन 30 अक्टूबर को शाम 5 बजे बम्बई पहुंचे। बंबई का एक सेक्रेटरी और एक अन्य फ़ौजी अफ़सर जंगी फ़ौज व सवारों सहित हाजिर हुए और पेशवाई करके महाराणा को एक बंगले तक ले गए।
31 अक्टूबर को ईडर के महाराजा केसरीसिंह राठौड़ अपने बहनोई महाराणा सज्जनसिंह से मिलने के लिए आए। 1 नवम्बर को बम्बई के गवर्नर का सेक्रेटरी महाराणा को लेने के लिए बंगले तक आया। मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट चार्ल्स हर्बर्ट के साथ बग्घी में सवार होकर महाराणा बम्बई गवर्नर से मिलने पहुंचे।
बम्बई का गवर्नर सर फिलिप वुडहाउस दरवाज़े तक पेशवाई के लिए आया और महाराणा को भीतर ले गया। इत्र पान आदि दस्तूर हुए और कुछ बातचीत के बाद महाराणा वापिस लौट आए। 2 नवंबर को फिलिप वुडहाउस महाराणा से मिलने बंगले तक आया।
शाम के वक्त भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक बम्बई आया। 3 नवम्बर को महाराणा सज्जनसिंह लॉर्ड नॉर्थब्रुक से मिलने के लिए बग्घी में सवार होकर गए। ख़ुद लॉर्ड नॉर्थब्रुक महाराणा की पेशवाई के लिए आगे आया। महाराणा के सम्मान में 19 तोपें सर हुई।
दाई तरफ महाराणा और उनके 9 सरदार बैठे थे। कुछ बातचीत के बाद लॉर्ड नॉर्थब्रुक ने खड़े होकर महाराणा को फूलों की माला पहनाई और इत्र पान के दस्तूर अदा किए। फिर लॉर्ड नॉर्थब्रुक ने सम्मान सहित महाराणा को बग्घी में सवार करवाकर विदा किया।
इसी दिन ईडर के महाराजा केसरीसिंह राठौड़ से दोबारा मुलाकात हुई। 4 नवम्बर को गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक, अंग्रेज अफसर लाठ आदि महाराणा से मिलने पहुंचे। कुछ बातचीत व दस्तूरी रस्में अदा हुईं। 8 नवम्बर को प्रिंस ऑफ वेल्स जब जहाज से उतरा, तब वहां महाराणा सज्जनसिंह भी पहुंचे।
लेकिन उन्होंने देखा कि वहां रखी हुई कुर्सियां उनकी शर्त के ख़िलाफ़ थीं। महाराणा थोड़ी देर आसपास ही टहलते रहे और प्रिंस ऑफ वेल्स से मामूली मुलाकात करके अपने डेरों में लौट आए।
सभी राजा-महाराजाओं के बीच एकमात्र मेवाड़ की खाली कुर्सी देखकर अंग्रेज भी हैरान रह गए। हालांकि ये मुख्य दरबार नहीं था। मुख्य दरबार इसी दिन हुआ, लेकिन महाराणा सज्जनसिंह मुख्य दरबार में प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ नहीं गए।
महाराणा के कुर्सी पर ना बैठने का परिणाम ये हुआ कि अंग्रेज सरकार ने राजाओं की नम्बरवार बैठक का तरीका रद्द करके भविष्य के लिए भिन्न-भिन्न प्रान्तों के अनुसार वहां के राजाओं की बैठक की व्यवस्था कर दी।
9 नवम्बर को महाराणा सज्जनसिंह अपने 9 सरदारों सहित प्रिंस ऑफ वेल्स से मिलने गए। महाराणा की पेशवाई करके बढ़िया खातिरदारी की गई। फिर महाराणा ने प्रिंस से कहा कि
“मेवाड़ महाराणाओं की ख्याति संसार भर में प्रसिद्ध है। बात मात्र कुर्सी की नहीं है, बात मेरे पूर्वजों की प्रतिष्ठा की है। यह प्रतिष्ठा सदैव बनी रहेगी, मेरे हाथों से निसन्देह धूमिल नहीं होगी।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)