सितम्बर, 1875 ई. – उदयपुर में भारी बारिश :- 20 सितम्बर, 1875 ई. को महाराणा सज्जनसिंह उदयपुर के पितमनिवास महल में किताब पढ़ रहे थे कि तभी जोरदार बारिश शुरू हुई। थोड़ी ही देर में जगनिवास महल की खिड़कियों में पिछोला झील का पानी भर गया।
इस महल की पहली मंज़िल की छत से बस 2-3 फ़ीट खाली रहा। बड़ी पाल के टूट जाने का अंदेशा होने से महाराणा सज्जनसिंह ने कविराजा श्यामलदास और महता पन्नालाल को उधर भेजा। ये दोनों दौड़कर बड़ी पाल तक पहुंचे।
बड़ी पाल का किनारा सिर्फ 5-6 इंच खाली था। इन लोगों ने अर्जुनखुरे के पत्थर तुड़वाकर उधर से पानी का निकास करवा दिया। नीलकंठ महादेव के पास करीब 5-7 फुट तक गहरा पानी बहने लगा।
शहर में डौंडी पिटवाकर हुक्म दिया गया कि पूर्वी हिस्से में रहने वाले लोग पश्चिम में चले जावें, क्योंकि बांध टूट जाने से उस हिस्से के बहने का डर था। महाराणा सज्जनसिंह भी भारी बारिश के बीच अर्जुनखुरा तक पहुंचे और वहां से पानी की निकासी के आदेश फरमाते रहे।
पिछोला का जलस्तर ज्यादा बढ़ने के कारण सीसारमा गांव डूब गया। लोगों के घरों से खाट, बिछौने, अनाज, नारियल आदि बहते हुए पानी के निकास की तरफ जाते हुए दिखाई दे रहे थे। बागोर की हवेली के चौक में नावें चलने लगी।
त्रिपोलिया और हनुमान घाट के बीच ऐसा बहाव था, जैसे कोई नदी बह रही हो। चांदपोल के बाहर ब्रह्मपुरी के कई घर डूब गए। शहरपनाह से पाल के आख़िर तक स्वरूपसागर की पाल पर 1-2 फुट गहरे पानी की चद्दर चल रही थी।
गुमानिया नाला और धायभाई की पुलां की बड़ी नदी का बहाव एक होकर बीच के खेतों में पानी की धारा चलने लगी। यह सारा पानी उदयसागर की तरफ बड़े वेग से जा रहा था। लकड़वास, पचोली, कान्हपुर व मटूण गाँव के बीच की ज़मीन पर एक बड़ा तालाब भरकर कड़वा टीमरु तक नदी में तालाब हो गया था।
महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाए गए बड़ी तालाब जनासागर के नाले के बहने के अलावा बांध पर होकर पानी की चद्दर चलने लगी। ऐसी चद्दर बड़ी तालाब पर इससे पहले कभी नहीं चली थी। बड़ी तालाब के यहां मिट्टी कटकर बड़े-बड़े गड्ढे हो गए।
मकानों के टूटने, माल व जानवरों के बह जाने व खेती बर्बाद होने से लाखों रुपयों का नुकसान हुआ। महाराणा सज्जनसिंह बड़े ही प्रजावत्सल शासक थे। महाराणा द्वारा इन लोगों की हरसंभव आर्थिक मदद की गई।
महाराणा जगतसिंह प्रथम ने उदयसागर के बांध के पीछे निकास के नाले पर महल बनवाए थे। उन महलों की जड़ों तक अब तक कभी निकास का पानी नहीं पहुंचा था। लेकिन इस वक्त महलों के आसपास की ज़मीन कटकर नहरें बन गई।
पहाड़ों की जड़ों में दलदल हो गया था, जिससे कई दिनों तक हाथी-घोड़े चलने में ख़तरा रहा। उदयपुर में 3 दिन तक ऐसी भारी बारिश हुई, जैसी पिछले 311 वर्षों में कभी नहीं हुई थी।
311 वर्षों का अनुमान कविराजा श्यामलदास ने लगाया था, जिसके पीछे का कारण था कि उदयसागर के नाले के निकास से पश्चिम की तरफ पत्थर की चट्टानों पर महाराणा उदयसिंह के शासनकाल में 1564 ई. में मिट्टी डाली गई थी।
वह मिट्टी पूरी तरह से निकल गई और कुदरती पत्थर निकल आये, इससे कविराजा ने अनुमान लगाया कि निकास का पानी यहां तक कभी नहीं बहा। उदयपुर में बारिश का सालाना औसत 28 इंच माना जाता था, लेकिन इस वर्ष 48 इंच तक पानी गिरा।
डाकन प्रथा का झूठा मामला :- महाराणा स्वरूपसिंह के शासनकाल में मेवाड़ में डाकन प्रथा पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन फिर भी कभी-कभार कुछ मामले देखने को मिलते थे। इस कुप्रथा की आड़ में कुछ औरतें अपना हित साधने लगीं।
कुछ औरतें इस प्रथा के नाम से खुद को डाकन मशहूर करके लोगों को डरा-धमकाकर कपड़ा, ज़ेवर, खाना, अनाज आदि ले लेती थी। इसी तरह एक औरत महाराणा सज्जनसिंह के समय में फरयादी बनकर उदयपुर राजमहलों में आई और कहा कि मुझको महता गोकुलचंद के कथाभट्ट ने पीटा।
महता गोकुलचंद उस औरत से इतना डरता था कि उसने महाराणा से कहा कि इस डाकन को आप अभी यहां से निकाल दीजिये। ये बात सुनकर महाराणा सज्जनसिंह और कविराजा श्यामलदास को हंसी आ गई।
कविराजा ने सबकी तसल्ली के लिए उस औरत को अपने घर ले जाकर जांच पड़ताल की। उन दिनों लोग वहम ज्यादा करते थे। जब कविराजा उसे अपने घर ले गए, तब कविराजा के पड़ौसी उस औरत के खौफ़ से घर छोड़कर भाग गए।
कविराजा ने जांच करके कहा कि यह औरत मक्कार है और झूठ बोलकर धन ऐंठती है। महाराणा ने उस औरत को ऐसी हरकत दोबारा ना करने की सलाह देकर जाने दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)