1874 ई. – रीजेंसी काउंसिल का गठन :- महाराणा सज्जनसिंह के बालिग होने तक शासन प्रबंध एजेंट के हाथ में रहा व निम्न 4 सदस्यों की एक रीजेंसी काउंसिल का गठन किया गया :- (1) बेदला के राव बख्तसिंह चौहान
(2) काकरवा के उदयसिंह राणावत (3) शिवरती के महाराज गजसिंह (4) मोतीसिंह :- ये उदयपुर की एक पासवान, जो किशनगढ़ के किसी पासवानिये से ब्याही गई, उसका पुत्र था।
दरबार में विवाद :- 30 अक्टूबर, 1874 ई. को उदयपुर राजमहलों की छोटी चित्रशाली में दरबार हुआ, जिसमें मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल राइट भी उपस्थित था। इस दरबार में बेगूं के रावत मेघसिंह चुंडावत और भींडर के कुंवर मदनसिंह शक्तावत के बीच बैठक को लेकर विवाद हुआ।
इस विवाद में गलती भींडर के कुंवर मदनसिंह की बताई जाती है। कर्नल राइट दोनों सरदारों को समझाकर महलों के नीचे तक ले गया। फिर अन्य सरदारों को भी पान के बीड़े देकर विदा किया गया।
नवम्बर, 1874 ई. – राज्याभिषेक उत्सव :- 25 नवम्बर को महाराणा सज्जनसिंह के राज्याभिषेक का उत्सव हुआ। 26 नवम्बर को महाराणा एकलिंग नाथ जी के दर्शन करने पधारे, जहां मंदिर की तरफ से महाराणा को घोड़ा, सिरोपाव व तलवार भेंट किए गए।
28 नवम्बर को राजमहलों में छोटी चित्रशाली में दरबार हुआ, जहां कर्नल राइट ने 1 हाथी, 2 घोड़े व सिरोपाव महाराणा सज्जनसिंह को भेंट किए।
शुक्रग्रस्त सूर्योपराग :- 9 दिसम्बर, 1874 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने सामंतों सहित शुक्रग्रस्त सूर्योपराग देखा, यानि शुक्र ग्रह की छाया सूर्य में दिखाई दी। यह नज़ारा सैंकड़ों वर्षों में एक बार दिखाई देता है।
महाराणा को पहले ही ज्योतिषी बापुदेव शास्त्री ने बता दिया था, जिस वजह से सभी को ये नज़ारा सही समय पर देखने को मिला। इस बात से मालूम पड़ता है कि उस ज़माने का ज्योतिष ज्ञान कितना सटीक था।
11 फरवरी, 1875 ई. – पुस्तकालय की स्थापना :- महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन वाणी विलास नाम से उदयपुर महलों में एक पुस्तकालय की स्थापना करके इसे कविराजा श्यामलदास के सुपुर्द कर दिया।
महाराणा ने यह पुस्तकालय कविराजा श्यामलदास को सौंप कर कहा कि “एक ऐसा विशाल ग्रंथ इतनी सच्चाई से लिखो कि यदि मुझमें भी कोई कमी हो, तो उसे बेख़ौफ़ दर्ज करो”
महाराणा ने कविराजा को इस कार्य के लिए 1 लाख रुपए दिए। कविराजा ने कार्यालय स्थापित कर वहां संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फ़ारसी, अरबी आदि भाषाओं के ज्ञाता नियुक्त किए।
साथ ही राजपूतों के भिन्न-भिन्न वंशों के बड़वों (वंशावली लेखकों) को भी बुलाया गया। स्वयं महाराणा ने भी इस कार्य में बहुत दिलचस्पी ली थी, पर महाराणा की जीवित दशा में यह ग्रंथ तैयार न हो सका।
कविराजा ने विशाल ग्रंथ “वीरविनोद” की रचना की। यह ग्रंथ पक्षपात रहित है। जो गलतियां इस ग्रंथ में हुई हैं, वो ऐतिहासिक भ्रम की वजह से हुई हैं, फिर भी इस ग्रंथ से अगले इतिहासकारों को काफी मदद मिली।
सज्जन वाणी विलास पुस्तकालय की पुस्तकों पर लगाने के लिए सुवर्ण मुद्रा बनवाकर उसमें यह श्लोक खुदवाया गया :- “सज्जनेन्द्र नरेन्द्रेण निर्मितम पुस्तकालयम। आकरं सारग्रंथानामिदं वाणीविलासकम।।”
1875 ई. – महाराणा के शिक्षक की नियुक्ति :- राजपूताने के ए.जी.जी. लॉयल के सुझाव से भरतपुर के जानी बिहारीलाल को महाराणा सज्जनसिंह का शिक्षक नियुक्त किया गया, जिनके मार्गदर्शन में महाराणा सज्जनसिंह ने बहुत कुछ सीखा।
बिहारीलाल का बर्ताव ऋषिमुनि की तरह था। शुरू में जब ये उदयपुर आए, तब हर एक को अजीब तरह से धमकाया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे सबको यकीन हो गया कि यह गुरु ही महाराणा के लिए सर्वोत्तम हैं। बिहारीलाल संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी व अंग्रेजी के विद्वान थे।
महाराणा ने उनको ‘परमपूज्य’ व ‘गुरू’ का ख़िताब दिया। एक वर्ष की शिक्षा के बाद इन गुरु को भरतपुर के जाट महाराजा जसवंत सिंह ने बुला लिया।
लौटते वक्त महाराणा ने उनको 400 अशर्फियाँ, सिरोपाव, सर्पेच, मोतियों की माला आदि भेंट करनी चाही, परंतु बिहारीलाल ने केवल एक पगड़ी लेना स्वीकार कर बाकी सब नम्रतापूर्वक लौटा दिया।
नए एजेंट की नियुक्ति :- 8 मार्च, 1875 ई. को मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल राइट का तबादला हो गया। 26 मार्च को उसकी जगह चार्ल्स हर्बर्ट मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर उदयपुर आया, जो मिज़ाज का सख़्त था।
मेहता पन्नालाल को क़ैद मुक्त करना :- पिछले एक वर्ष से कर्णविलास में क़ैद मेहता पन्नालाल को रिहा कर दिया गया, जिसके बाद वह अजमेर चला गया।
जयपुर से दस्तूर का पेश होना :- 8 अप्रैल, 1875 ई. को जयपुर के महाराजा रामसिंह कछवाहा की तरफ से महाराणा सज्जनसिंह के राजतिलक का दस्तूर पेश हुआ। मंडावा के ठाकुर आनंदसिंह व बख्शी जवाहरलाल ने जयपुर की तरफ से 1 हाथी, 4 घोड़े, ज़ेवर आदि महाराणा को नज़र किए गए।
महाराणा द्वारा विवाद सुलझाना :- महाराणा सज्जनसिंह ने आमेट के शिवनाथ सिंह चुंडावत से मेजा के अमरसिंह चुंडावत को 2500 रुपए सालाना आय वाली जागीर व 5500 रुपए रोकड़ सालाना दिलवाने का हुक्म देकर एक पुराने झगड़े का निपटारा किया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)