महाराणा सज्जनसिंह का जन्म परिचय :- इन महाराणा का जन्म 8 जुलाई, 1859 ई. को हुआ। इनके पिता बागोर के महाराज शक्तिसिंह जी थे, जो कि महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र महाराज नाथसिंह के वंशज थे।
व्यक्तित्व :- महाराणा सज्जनसिंह का कद 5 फुट 8 इंच, रंग गेहुंआ, शरीर बलिष्ठ, आंखें बड़ी, चौड़ी पेशानी, गहरी व लंबी दाढ़ी मूंछें, चेहरा प्रभावशाली था। गुस्से की हालत में बहुत सख़्त थे, लेकिन गुस्से को जल्द ही रोक लेने की क्षमता भी थी।
महाराणा सज्जनसिंह प्रतापी, शक्तिसम्पन्न, असाधारण प्रतिभाशाली, निर्भीक, तेजस्वी, कुलाभिमानी, प्रजावत्सल, क्षत्रियों के सच्चे हितचिंतक, कवियों व विद्वानों के गुणग्राहक, न्यायनिष्ठ, नीतिकुशल, दृढ़ संकल्प, उदार, विद्यानुरागी, बुद्धिमान व विचारशील थे।
मेधावी ऐसे की घंटे भर में 22 श्लोकों को आशय सहित याद कर लेते थे। शिल्प कार्यों में ऐसे प्रवीण थे कि मकानों के नक्शे हाथ से खींच देते थे, जिन्हें देखकर इंजीनियर भी दंग रह जाते। इन महाराणा को भले-बुरे, योग्य-अयोग्य व्यक्तियों की अच्छी परख थी।
बुरी सोहबत से हमेशा बचते व चापलूसों को कभी मुंह न लगाते। इन महाराणा के धर्म संबंधी विचार स्वतंत्र, उन्नत व उदार थे। महाराणा सज्जनसिंह अपना अमूल्य समय नाच, रंग, शिकार वगैरह कार्यों में न लगाकर राज्य प्रबंध, शिक्षा प्रचार व लोकहित में लगाते।
इन महाराणा ने अन्य रियासतों से मेलजोल बढ़ाया, कई सुधार कार्य व निर्माण कार्य करवाये, सामंतों के साथ भी बिगड़े संबंधों को सुधारने के प्रयास किए। ये महाराणा बड़े-बड़े अंग्रेज अफ़सरों को भी जरूरत पड़ने पर बेख़ौफ़ जवाब दे दिया करते थे।
जो कोई भी कार्य अंग्रेजों द्वारा धर्म विरुद्ध किया जाता, उसे ये किसी हाल में बर्दाश्त नहीं करते थे। महाराणा सज्जनसिंह की बुरी आदत थी कि उनके खाने-पीने, सोने-जगने का समय बहुत अनियमित होता था, जिसके बाद शराब, अफ़ीम जैसे व्यसनों का सेवन करने लगे और अपना स्वास्थ्य खराब कर बैठे।
बहरहाल, ओझा जी का कथन है कि “महाराणा राजसिंह प्रथम के बाद मेवाड़ की दशा को उन्नत करने वाला जैसा महाराणा सज्जनसिंह हुआ, वैसा दूसरा कोई न हुआ”
8 अक्टूबर, 1874 ई. – राज्याभिषेक :- 7 अक्टूबर को महाराणा शम्भूसिंह का देहांत हुआ व 8 अक्टूबर को दाह संस्कार हुआ। दाह संस्कार के बाद जब सभी राजमहलों की तरफ आए, तो शहर में सब दरवाज़े बन्द थे। जगह-जगह सैनिक तैनात थे और हर तरफ रोने के अलावा कुछ और दिखाई नहीं पड़ता था।
महाराणा शम्भूसिंह का निसंतान देहांत होने पर बेदला के राव बख्तसिंह चौहान ने दाह संस्कार में भाग नहीं लिया, क्योंकि उन्हें लगा कि कहीं गद्दीनशीनी के चलते महलों में कोई बखेड़ा न हो जाए। फिर सभी सामन्तों में विचार विमर्श हुआ कि अब मेवाड़ की राजगद्दी पर किसे बिठाया जावे।
राव बख्तसिंह ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बागोर के महाराज शक्तिसिंह के 15 वर्षीय पुत्र सज्जनसिंह को मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाया जाना चाहिए। यह सलाह सभी को पसंद आई, तो यह बात जनानी ड्योढ़ी पर भी बताई गई, जहां से भी मंज़ूरी दे दी गई।
मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल राइट शम्भूनिवास महल में चला गया। सभी सरदारों ने महाराणा सज्जनसिंह को सफेद कपड़े पहनाकर दरीखाना सभाशिरोमणि में लाकर गद्दी पर बिठा दिया।
बेदला के राव बख्तसिंह चौहान ने महाराणा सज्जनसिंह के सिर से गमी की चादर हटाकर कानों में मोती पहनाए। चारणों ने उनको महाराणा शम्भूसिंह व महाराणा स्वरूपसिंह का नाम लेकर शुभाशीष दी। एक-एक करके सभी सरदारों ने महाराणा को नज़रें दीं।
फिर महाराणा सज्जनसिंह छोटी चित्रशाली में पधारे। कुछ सामन्तों को यह भय भी था कि कहीं महाराणा सज्जनसिंह में उनके पिता महाराज शक्तिसिंह की बुरी आदतों का असर न हो। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं था।
सूर्यास्त के बाद महाराणा सज्जनसिंह के आदेश से शहर के दरवाज़े खोले गए। सभी कारखानों की चाबियां महाराणा के सामने नज़र की गईं, तो महाराणा ने वे चाबियां पुनः उन लोगों को लौटा दी, जिनके जिम्मे अब तक कारखाने चले आ रहे थे।
फिर पूरे शहर में महाराणा के नाम की दुहाई फेरी गई। राज्याभिषेक से पहले तो सज्जनसिंह जी में लड़कपन था, लेकिन जैसे ही गद्दी पर बैठे, उनमें दानाई झलकने लगी।
महाराणा सज्जनसिंह ने ऐसे प्रयास करने शुरू किए, जिनसे पिछले महाराणा शम्भूसिंह के देहांत का रंज कम किया जा सके। राज्याभिषेक होते ही चापलूसों ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से महाराणा को अपने वश में करने के प्रयास शुरू कर दिए।
लेकिन महाराणा सज्जनसिंह काफी तेज़ मिज़ाज के थे और इन सब बातों का उन पर कोई असर न हुआ। वे राज्य के सच्चे खैरख्वाहों को भली-भांति जानते थे और उन्हीं की सलाह पसंद किया करते थे।
जल्द ही चापलूसों को यह बात समझ में आने लगी कि महाराणा सज्जनसिंह पिछले महाराणा शम्भूसिंह की तरह कान के कच्चे नहीं हैं। यहां तक कि अपने पिता महाराज शक्तिसिंह की अनुचित सलाह को भी नापसन्द करते थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Very Nice Article and deep research