राजा अजयपालदेव बड़गूजर का सम्पूर्ण इतिहास

राजा अजयपालदेव बड़गूजर (1035-1090 ई.) का विस्तृत इतिहास :- पिता – महाराज जतनदेव बड़गूजर। माता – आभानेरी राज्य की निकुंभवंशी राजकुमारी (रानी का नाम ज्ञात नहीं हो सका)

राज्यारोहण के समय बड़गूजर राज्य की स्थिति – 1035 ई. :- कछवाहों के साथ लगातार चले आ रहे युद्धों के कारण राजौरगढ़ राज्य की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी। सैन्य शक्तियों का भी भरपूर ह्रास हुआ। रामगढ़, भांडारेज, देवती, दौसा जैसे युद्धों में कई प्रमुख योद्धा काम आ चुके थे।

बड़गूजर राज्य पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण से पूरी तरह शत्रु सेनाओं से घिरा हुआ था। राजौरगढ़ राज्य को घेरने के लिए राजा दुल्हराय कछवाहा द्वारा तालाब नामक स्थान (राजगढ के पश्चिम) पर एक चौकी की स्थापना की गई।

दौसा, भांडारेज, देवती और खोह जैसे प्रमुख किलों पर कछवाहों का अधिकार हो चुका था। राजा जतनदेव बड़गूजर के कई प्रयासों के बाद भी बड़गूजर कछवाहों से अपने इलाके वापस नहीं ले सके थे। दोनों राजवंशों के राज्य की सीमाएं भी अभी तक निश्चित नहीं, जिस वजह से कछवाहों से सीमावर्ती इलाकों में झड़पें होती रहती थी।

अपने शासनकाल के 1 वर्ष तक राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने कोई विशेष राजनैतिक बढ़त हासिल नहीं की। 1036 ई. में राजा दुल्हराय कछवाहा की मृत्यु हुई और कोकिलदेव अगले शासक बने। राजा कोकिलदेव कछवाहा ने खोह को अपनी राजधानी बनाया और देवती का किला अपने पुत्र हुणदेव को सौंपकर राजौरगढ़ राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगे।

खोह का किला मीणाओं के हाथ से निकलकर कछवाहों के पास जाना बड़गूजरों के लिए एक संकट की तरह था, क्योंकि इससे राजौरगढ़ पर कछवाहों के आक्रमण का खतरा पहले की तुलना में ज्यादा बढ़ गया था। इसलिए राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने सर्वप्रथम खोह का किला जीतना उचित समझा।

खोह की लड़ाई :- राजा कोकिलदेव कछवाह (1036 – 1039 ई.) के समय मीणाओं ने खोह का इलाका वापस लेने के लिए कई प्रयास किए लेकिन जब सफल ना हो सके तो मीणाओं ने राजौरगढ़ शासक राजा अजयपालदेव बड़गूजर से सहायता मांगी।

खोह का इलाका पहले से ही बड़गूजर राज्य का हिस्सा था और मीणाओं द्वारा रक्षित था, इसलिए राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने मीणाओं की सहायता के लिए अपने चौथे पुत्र कुंवर बाघराज प्रथम को सेना सहित भेजा।

राजा कोकिलदेव कछवाह और कुंवर बाघराज के बीच लड़ाई हुई, जिसमें एक पहर की लड़ाई के बाद राजा कोकिलदेव कछवाह को किला छोड़ना पड़ा। खोह का किला एक बार फिर बड़गूजर राज्य का हिस्सा बना और ये इलाका मीणाओं को सौंप दिया गया। राजा कोकिलदेव कछवाहा यहां से खजाना लेकर जाने में सफल हुए।

तालाब की दूसरी लड़ाई :- राजा दुल्हराय कछवाह ने तालाब की पहली लड़ाई में मीणाओं को परास्त करके यहां एक सैनिक छावनी बनाई थी। खोह की लड़ाई जीतने के तुरंत बाद कुंवर बाघराज ने तालाब नामक स्थान पर हमला किया।

अचानक हुए हमले के कारण कछवाह सैनिकों को सम्भलने का मौका नहीं मिला। कुंवर बाघराज ने सैनिक छावनी को तहस नहस कर दिया और इस क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया।

माचेड़ी – राजगढ़ के मीणाओं के विरुद्ध कार्यवाही :- रामगढ़ के युद्ध में इस इलाके के जो मीणा सरदार आमेर के मीणाओं के कहने पर युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए थे, उन्हें दंडित करने के लिए कुंवर बाघराज ने इन मीणाओं पर सैन्य कार्यवाही की और इस इलाके से मीणाओं को खदेड़ कर इस पूरे इलाके को अपने नियंत्रण में ले लिया।

देवती का किला वापस लेना :- राजा दुल्हराय कछवाहा (1006-1036 ई.) के समय देवती का किला बड़गूजरों से कछवाहों ने जीत लिया था। राजा दुलहराय कछवाहा के बाद देवती किले पर राजा कोकिलदेव ने अधिकार जमाया और यहां अपने पुत्र हुणदेव कछवाहा को तैनात किया।

राजा कोकिलदेव कछवाहा को अपने पुत्र बाघराज के साथ लड़ाई में उलझा जानकर इस समय को राजा अजयपालदेव ने एक सही अवसर के तौर पर देखा। राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने फौज जमा करके देवती किले को घेर लिया।

दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई। हुणदेव कछवाहा को हारकर किला छोड़ जाना पड़ा। इस लड़ाई के बाद देवती किले पर बड़गूजरों ने वापस अधिकार कर लिया। राजा अजयपालदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र महाराजकुमार जयंतपालदेव बड़गूजर को देवती किले का किलेदार नियुक्त किया, जो इस लड़ाई में उनके साथ ही थे।

इस घटना के बाद से लेकर 1557 ई. तक देवती किले पर बड़गूजरों का अधिकार रहा। देवती के अंतिम शासक राजा ईसरदास बड़गूजर मुग़ल बादशाह अकबर की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे इसके बाद देवती किला मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

गेटोर लेने का असफल प्रयास :- खोह और तालाब का इलाका कछवाहों से वापस लेने के बाद कुंवर बाघराज ने गेटोर लेने के लिए कछवाहों पर आक्रमण किया। इस लड़ाई में खोह का आलणसी मीणा भी बड़गूजर सेना के साथ था।

राजा हूणदेव कछवाहा भी सेना लेकर गेटोर आए। दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई। इस युद्ध में कुंवर बाघराज गम्भीर रूप से घायल हुए। कुछ दिनों बाद 21 जून, 1040 ई. को कुंवर बाघराज का देहांत हो गया।

काकंवाड़ी का किले का निर्माण :- सीमा सुरक्षा की दृष्टि से आमेर और राजौरगढ़ सीमा के बीच में राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने 1042 ई. से 1044 ई. के बीच कांकवाड़ी किले का निर्माण कराया। इस किले की तलहटी से एक पथरीला रास्ता नीलकंठ महादेव मंदिर तक जाता है।

यह किला मुख्य तौर पर सीमा सुरक्षा के लिए बनाया था जिसमें सेना की एक छोटी सी टुकड़ी रखी जा सके और आमेर के कछवाहों को इस इलाके में आने से रोका जाए।

राजा अजयपालदेव बड़गूजर के बाद यह किला राजा जयंतपालदेव बड़गूजर के अधिकार में रहा। राजा जयंतपालदेव बड़गूजर से यह किला बड़गूजर सामंतों को प्राप्त हुआ।

12वी-13वी शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों ने इस किले को काफी नुकसान पहुंचाया। किले के भग्नावेशों पर बाद में सवाई जयसिंह आमेर ने किले का पुनर्निर्माण करवाया और आमेर राज्य में मिला लिया।

मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा किला तहस नहस करने के बाद यहां के बड़गूजर कई छोटी बड़ी शाखाओं में बंट गए। कोलासर, तितरवाड़ा, कांकवाड़ी से निकली इन शाखाओं से वर्तमान समय में जौपाड़ा, अजयराजपूरा, उदयपुरा, घेरोली, प्रेमपुरा, बाढ़ और जटवाड़ी आदि कई बड़े ठिकानों में बड़गूजर राजपूत आबाद हैं।

बयाना नरेश विजयपाल यदुवंशी की सहायता करना :- जिस समय राजा अजयपालदेव बड़गूजर कछवाहों से अपने इलाके वापस लेने में लगे हुए थे, उसी दौरान सुल्तान मसूद द्वितीय की सेनाएं बयाना तक चली आई थी और कनावर नामक स्थान पर डेरा डाल दिया था।

राजा विजयपाल यदुवंशी ने राजा अजयपालदेव से सहायता मांगी, तो राजा ने अपने पुत्र महाराजकुमार जयंतपालदेव को सेना सहित बयाना की सहायतार्थ भेजा। कनावर में हुए इस भयंकर युद्ध में राजपूतों की विजय हुई। यह घटना 1046 ई. के आसपास घटित हुई थी।

राजौरगढ़ की लड़ाई :- राजा अधलराय कछवाहा ने निकुम्भों और मीणाओं की सहायता लेकर राजौरगढ़ पर आक्रमण किया। राजा अजयपालदेव बड़गूजर ने शत्रु संघ को बुरी तरह पराजित किया। इस लड़ाई में राजा अधलराय वीरगति को प्राप्त हुए। यह घटना 1049 ई. से 1052 ई. के बीच की है।

पड़ोसी राजाओं से सम्बन्ध सुधारना :- भारत में मुस्लिम सुल्तानों के बढ़ते प्रभाव के कारण राष्ट्रीय एकता को देखते हुए राजा अजयपालदेव ने अपने पड़ोसी राजाओं के साथ सम्बन्ध सुधारे। इस नीति के चलते राजा अजयपालदेव ने आमेर के कछवाहों, शाकम्भरी के चौहानों और बयाना के यदुवंशी शासकों के साथ वैवाहिक संबंध बनाए।

राजा अजयपालदेवजी ने अपनी पौत्री (महाराजकुमार जयंतपालदेव की पुत्री हरसुखदे कुंवर) का विवाह राजा जान्हणदेव कछवाह (1053 ई. – 1070 ई. ) के साथ करवाया।

राजा दुर्लभराज तृतीय की सहायता करना :- शाकंभरी नरेश दुर्लभराज तृतीय (1065 ई. – 1070 ई.) के समय शाकंभरी पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमला लिया। इस युद्ध में चौहान शासक की सहायता के लिए राजा अजयपालदेव ने अपने पुत्र महाराजकुमार जयंतपालदेव बड़गूजर को सैन्य सहित भेजा।

काकंवाड़ी किले के किलेदार ठा. सदाराम बड़गूजर भी इस सेना में थे। राजपूतों और तुर्कों के बीच हुए इस युद्ध में राजपूतों की विजय हुई लेकिन राजा दुर्लभराज तृतीय वीरगति को प्राप्त हुए।

‘पृथ्वीराज विजय महाकाव्य’ से जहां इस युद्ध की पुष्टि होती है, वहीं ‘हम्मीर महाकाव्य’ से मुस्लिम आक्रमणकारी का नाम शाहबुद्दीन मालूम होता है, जो ग़जनी के सुल्तान इब्राहिम (1064 ई. – 1091 ई.) का सेनापति था।

सुल्तान इब्राहिम के विरुद्ध लड़ाई :- शासनकाल के अंतिम वर्षों में सुल्तान इब्राहिम ने पुनः भारत पर आक्रमण किया। इस लड़ाई में शाकंभरी नरेश विग्रहराज तृतीय और राजा अजयपालदेव ने मिलकर मुस्लिम सेनाओं का सामना किया। मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ हुई इस लड़ाई में राजपूतों की विजय हुई।

राजा अजयपालदेवजी का मूल्यांकन :- राज्यारोहण के बाद श्रीहत होते बड़गूजर राज्य को राजा अजयपालदेवजी ने नई मजबूती दी. राजा जतनदेवजी कि मृत्यु के बाद बड़गूजर राज्य एक जर्जर अवस्था में पहुँच चुका था।

राजा जतनदेव बड़गूजर के समय जो इलाके कछवाहों ने जीते थे, राजा अजयपालदेव ने उनमें से बहुत सा क्षेत्र कछवाहों से वापस जीत लिया। दौसा किले और भांडारेज को छोड़कर अधिकांश इलाके कछवाहों से जीते गए।

क्षेत्रफल की दृष्टि से दौसा और भांडारेज से भी बड़ा भूभाग राजा अजयपालदेव के समय माचेड़ी के रूप में बड़गूजर राज्य में मिलाया गया। ये राजा अजयपालदेवजी के अदम्य साहस और राजनैतिक दूरदृष्टि का ही परिणाम था।

धार्मिक तौर पर शैव होते हुए भी राजा अजयपालदेव ने जैनमुनियों को जैन धर्म के प्रचार प्रसार की अनुमति दी। राजा अजयपालदेवजी के समय राजौरगढ़ को छोटी काशी की संज्ञा दी जाती थी। राजा ने 80 से भी ज्यादा छोटे बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया, जिसमें से 60 के आसपास मंदिर मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समय नीलकंठ महादेव मंदिर परिसर में तोड़े गए।

वि. स. 1101 (1044 ई.) की एक भगवान गणेशजी की नृत्य अवस्था में मूर्ति मिली है, जिसके पद पटल पर 3 पंक्तियों का लेख लिखा है। नृत्य अवस्था में मिली भगवान गणेशजी की मूर्ति जहां एक ओर बड़गूजर राज्य में कला और संगीत के विकास को दर्शाती है, वहीं दूसरी तरफ़ राज्य की समृद्ध और ऐश्वर्य के साथ प्रजा के खुशहाल जीवन की ओर भी संकेत करती है।

लछुकेश्वर महादेव मंदिर में ही नीलम रत्न के शिवलिंग की स्थापना के साथ ही यह मंदिर ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा अजयपालदेवजी राजौरगढ़ के एकमात्र राजा थे, जिन्होंने विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध स्थानीय राजाओं की सहायता के लिए अपनी सेनाएं भेजी।

पोस्ट लेखक :- जितेंद्र सिंह बड़गूजर

1 Comment

  1. Mohan Singh Badgujar
    January 26, 2022 / 3:54 pm

    जय बड़गूजर राजवंश

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