1872 ई. – डकैतों पर कार्रवाई :- मोघिया और बावरियों ने बग़ावत की, तो मेवाड़ वालों ने उनसे शस्त्र, ऊंट वग़ैरह छीन कर बहुतों को क़ैद किया। इनसे जुर्माना वसूला गया और जिन्होंने जुर्माना नहीं दिया, उनको क़ैद किया गया।
मंदिर व बावड़ी की प्रतिष्ठा :- स्वर्गीय महाराणा स्वरूपसिंह की महारानी मेड़तणी ने कोठारी केसरीसिंह की हवेली के करीब बाज़ार में भगवान विष्णु (अभयस्वरूपबिहारी) मंदिर व बावड़ी बनवाई, जिनकी प्रतिष्ठा 31 मई, 1872 ई. को की गई।
जून, 1872 ई. – महाराणा द्वारा बीकानेर का राज डूंगरसिंह को दिलाना :- बीकानेर महाराजा सरदारसिंह राठौड़ का देहांत होने पर 3 जून को उदयपुर में मातमी दरबार हुआ। इन महाराजा की कोई संतान नहीं थी, तो कुछ करीबी लोगों ने गद्दी के लिए दावा पेश किया।
महाराणा शम्भूसिंह ने अपने मामा लालसिंह के बेटे डूंगरसिंह को बीकानेर की गद्दी पर बिठाने का सिफारिशी ख़त कर्नल ब्रुक को लिखा और अर्जुनसिंह को आबू की तरफ भेजा। महाराणा की सिफारिश मंज़ूर हुई और डूंगरसिंह को बीकानेर की गद्दी मिल गई।
फिर महाराजा डूंगरसिंह ने एक खत महाराणा को लिखकर शुक्रिया अदा किया। जून-अगस्त, 1872 ई. में उदयपुर में हैजा की बीमारी फिर से फैली, जिसमें 331 लोग मर गए।
6 अक्टूबर को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन विदाई लेने के लिए महाराणा शंभूसिंह के पास आया और अगले दिन विलायत लौट गया।
झालावाड़ नरेश का उदयपुर आगमन :- 13 नवम्बर, 1872 ई. को झालावाड़ के राजराणा पृथ्वीसिंह झाला नाथद्वारा की यात्रा करते हुए उदयपुर आए, जिनके सम्मान में 15 तोपों की सलामी उदयपुर तोपखाने से सर हुई।
14 नवम्बर को राजराणा पृथ्वीसिंह महाराणा शम्भूसिंह से मिलने के लिए आए, जहां राजराणा को 1 हाथी, 2 घोड़े व 11 किश्तियाँ खिलअत भेंट की गई। 15 नवम्बर को फिर मुलाकात हुई, दोनों ने शिकार हेतु जंगलों में प्रस्थान किया। 28 नवंबर को राजराणा झालावाड़ की तरफ रवाना हो गए।
कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति :- 3 दिसंबर, 1872 ई. को खेरवाड़ा के फर्स्ट असिस्टेंट मेकीसन मेवाड़ का कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट बनकर उदयपुर आया। 25 दिसम्बर को कर्नल हैचिन्सन मेवाड़ का कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट बनकर आया। कर्नल हैचिन्सन और महाराणा शम्भूसिंह की मुलाकात नाहरमगरा में हुई।
जोधपुर महाराजा का देहांत :- 28 फरवरी, 1873 ई. को जोधपुर महाराजा तख्तसिंह राठौड़ के देहांत की सूचना मिलने पर उदयपुर में मातमी दरबार हुआ।
11 जून, 1873 ई. – उदयपुर राजमहलों में तोप का फटना :- उदयपुर महलों के चौक में एक अंग्रेज औंधे सिर लटककर दांतों में रस्सों के सहारे तोप को पकड़ चलाने का करतब दिखा रहा था। महाराणा शम्भूसिंह स्वरूपविलास से ये दृश्य देख रहे थे।
बारूद ज्यादा भरा होने के कारण तोप फट गई। तोप के टुकड़े लगने से एक आदमी मर गया और कुछ घायल हुए। तोप के टुकड़े काफी दूर तक गए, लेकिन महाराणा की तरफ ख़ैरियत रही। महाराणा की तरफ तोप का कोई टुकड़ा नहीं पहुंचा।
17 जुलाई, 1873 ई. – उदयपुर में उत्सव :- शम्भूविलास महल को बढ़ाते हुए दक्षिणी तरफ दोमंजिला इमारत का निर्माण डॉक्टर कनिंघम की निगरानी में हुआ। इस उत्सव में प्रमुख सलाहकारों को उपहार वगैरह दिए गए।
महता राय पन्नालाल को पैर में सोने के लंगर, साह अम्बाव मुरड्या को मोतियों की माला व एक गांव, महासाणी रतनलाल को बैठक व बाकी सरदार, चारण, पासवान आदि को ज़ेवर, सिरोपाव, हाथी आदि भेंट किए गए। कविराजा श्यामलदास को एक सिरोपाव व हाथ की सुवर्णमयी पहुँचियाँ भेंट की गई।
इतिहास लेखन :- महाराणा शम्भूसिंह ने ‘महकमा तवारीख’ नाम से एक विभाग बनाया, जिसमें ढींकड्या उदयराम व बख्शी मथुरादास को मेवाड़ के इतिहास लेखन की जिम्मेदारी सौंपी गई। इन लोगों द्वारा यह काम ठीक से नहीं हो पाया।
इसलिए यह जिम्मा कविराजा श्यामलदास व पुरोहित पद्मनाथ को सौंपा गया। कुछ कारणवश यह महकमा टूट गया, लेकिन कविराजा श्यामलदास ने खोजबीन जारी रखते हुए महत्वपूर्ण दस्तावेज वगैरह जुटाने का कार्य जारी रखा।
यह बहुत ही मुश्किल कार्य था, क्योंकि इस समय तक मेवाड़ का व्यवस्थित इतिहास नहीं लिखा गया था। जेम्स टॉड ने एक प्रयास अवश्य किया था, परन्तु अनेक त्रुटियों के कारण जो सफ़लता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली।
6 अक्टूबर, 1873 ई. – यात्रा पर प्रस्थान :- महाराणा शम्भूसिंह जनाने समेत एकलिंगनाथ जी के दर्शनों को पधारे। फिर देलवाड़ा, पलाणा, राजनगर (वर्तमान राजसमंद), केलवा होते हुए 11 अक्टूबर को गढ़बोर पहुंचे। 14 अक्टूबर को वहां से रवाना हुए और केलवा, देपुर, नाहरमगरा होते हुए 23 अक्टूबर को उदयपुर पधारे।
1872 से 1873 ई. के बीच के एक वर्ष में मेवाड़ में दर्ज वारदातों के आंकड़े :- इस वर्ष मेवाड़ के गांवों में 87 डकैतियां हुईं, जिनमें 1 लाख 27 हज़ार रुपए का माल लुटा गया।
मेवाड़ के रास्तों पर 89 डकैतियां हुईं, जिनमें 58 हज़ार रुपए का माल लुटा गया। 60 कत्ल हुए। 113 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 25 मर्द व 88 औरतों ने डूबकर या अफीम खाकर अपनी जान दी।
1874 ई. – फूलडोल उत्सव :- होली के दूसरे दिन शाहपुरा के रामस्नेही पंथ के साधु फूलडोल उत्सव मनाते हैं। लेकिन 1874 ई. में महाराणा शम्भूसिंह की इच्छानुसार यह उत्सव उदयपुर में मनाया गया।
23 फरवरी, 1874 ई. को इस पंथ के महंत हिम्मतराम उदयपुर आए। महाराणा शम्भूसिंह उनकी पेशवाई करके नौलखा बाग में ले गए। इस उत्सव में हज़ारों तीर्थयात्री उदयपुर आए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)