नए पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति :- 2 मार्च, 1874 ई. को राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल पेली उदयपुर आया और अगले दिन लौट गया। 6 मार्च को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल हैचिन्सन विलायत चला गया। 24 मार्च को कर्नल ब्राडफोर्ड मेवाड़ का कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर खेरवाड़ा के रास्ते से उदयपुर आया।
मंदिर की प्रतिष्ठा :- महाराणा शम्भूसिंह की औरस माता नंदकंवर (बागोर के कुंवर शार्दूलसिंह की पत्नी) ने ठाकुर श्री गोकुलचंद्रमा का मंदिर महलों के करीब बनवाया।
23 अप्रैल, 1874 ई. को मंदिर की प्रतिष्ठा के दिन बहुत दान-पुण्य व इनाम आदि देने का कार्य किया गया, जिसमें हज़ारों रुपए खर्च हुए। इस अवसर पर कविराजा श्यामलदास को मोतियों की माला, सर्पेच, खिलअत व एक हाथी भेंट किया गया।
पुनः पोलिटिकल एजेंट की बदली :- 9 जून को मेवाड़ का कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट कर्नल ब्राडफोर्ड लौट गया, जिसकी जगह 18 जून को कर्नल राइट मेवाड़ का कार्यवाहक पोलिटिकल एजेंट नियुक्त हुआ।
9 सितम्बर, 1874 ई. – मेहता पन्नालाल को क़ैद करना :- जैसा कि पूर्व के भागों में बताया जा चुका है कि महाराणा शम्भूसिंह कान के कच्चे थे। मेहता पन्नालाल मेवाड़ का सच्चा हितैषी व प्रबंध कुशल था, जिस वजह से अन्य रियासती लोग उसके शत्रु हो गए।
उन लोगों ने महाराणा के कान भरे कि मेहता पन्नालाल खूब रिश्वत लेता है और उसने आप पर जादू टोना भी कराया है। महाराणा इस वक़्त बीमारी से ग्रसित थे, तो उन्होंने जादू टोने वाली बात पर जल्द यकीन करके मेहता पन्नालाल को कर्ण विलास में क़ैद कर लिया।
ब्रह्मचारी मथुरादास व गोपाल पाणेरी ने कविराजा श्यामलदास के विरुद्ध भी महाराणा के कान भरे, लेकिन महाराणा ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया।
महकमा खास का कार्य राय सोहनलाल कायस्थ के सुपुर्द किया गया, लेकिन काम बराबर न हो सका। इस वजह से 25 सितंबर को यह काम प्रधान महता गोकुलचंद व अर्जुनसिंह को सौंपा गया।
महाराणा शम्भूसिंह के शासनकाल में हुए सामाजिक, प्रशासनिक व आर्थिक रूप से सुधार कार्य :- उदयपुर में सफाई व्यवस्था पर ध्यान दिया गया। दीवानी और फौजदारी अदालतों का अच्छा प्रबंध किया गया। इतिहास विभाग क़ायम किया। अफीम का कांटा नियत किया।
पुलिस व्यवस्था का अच्छा प्रबंध किया। सारे मेवाड़ के 7 विभाग किए, जिनमें से 5 पर एक-एक पुलिस मजिस्ट्रेट (नायब फौजदार) नियत किया गया। शेष दो (जहांजपुर और मगरे) के इंतज़ाम में कोई परिवर्तन न हुआ। थानेदारों के वेतन में वृद्धि करते हुए उनकी तनख्वाह 30 रुपया महीना कर दी गई।
महाराणा के नाम पर 299 पैदल सिपाहियों की ‘शम्भू पलटन’ फौज क़ायम की गई। जावर की प्रसिद्ध चांदी-सीसे की खान जो काफी वर्षों से बंद पड़ी थी, फिर से चालू की गई। हालांकि इस खान से अधिक लाभ न होने से इसे फिर से बंद कर दिया गया।
अजमेर के मेयो कॉलेज में जो मेवाड़ के छात्र थे, उनके रहने के लिए एक बोर्डिंग हाउस बनवाया गया, जिसके लिए महाराणा ने 36 हज़ार रुपए दिए।
महाराणा शम्भूसिंह द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- आहाड़ में छतरियों की मरम्मत, नावों का निर्माण, शम्भू विलास महल, दिलखुशाल महल, जगनिवास में शम्भू प्रकाश महल, शम्भू रत्न पाठशाला, भाणेज मोतीसिंह की कोठी, आबू में बंगले, नीमच में बंगले बनवाए गए।
सूरजपोल व हाथीपोल दरवाज़ों के बाहर सराय, हाथीपोल दरवाज़े पर एक मकान, उदयपुर, खेरवाड़ा, मेड़ता, भीलवाड़ा व मगरवाड़ में डाक बंगले, भीलवाड़ा में शहरकोट, नाई व सीसारमा नदियों में काम, खेमली में तालाब बनवाया गया।
अमल के कांटे का मकान, जिसमें 9093 रुपए खर्च हुए। उदयपुर हाउस नामक कोठी :- यह कोठी महाराणा ने अजमेर में बनवाई, ताकि अजमेर के प्रसिद्ध मेयो कॉलेज में पढ़ने वाले उदयपुर की विद्यार्थी वहां रह सके।
उदयपुर से देसूरी तक सड़क, बेदला व गोगुन्दा की सड़क, कैलाशपुरी के रास्ते की सड़क, कमलोद की सड़क, नाहरमगरा की सड़क, उदयपुर से चित्तौड़ तक सड़क, कुंवरपदा के महलों की मरम्मत, जगमंदिर की मरम्मत, चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मरम्मत करवाई गई।
नीमच-नसीराबाद सड़क का मेवाड़ वाला भाग :- इस कार्य में 1 लाख 80 हजार रुपए खर्च हुए। उदयपुर से खेरवाड़ा तक सड़क :- इस सड़क से मेवाड़ के रुई के व्यापार को बम्बई की तरफ निकास का रास्ता मिलने से बहुत फायदा हुआ।
राजसमंद झील की पाल की मरम्मत व महलों का छुटपुट काम, जिसमें 1229 रुपए खर्च हुए। गोकुलचंद्रमा मंदिर :- यह मंदिर महाराणा की औरस माता ने बनवाया।
विष्णुमन्दिर व बावड़ी :- इनका निर्माण कार्य महाराणा शम्भूसिंह के शासनकाल में स्वर्गीय महाराणा स्वरूपसिंह की मेड़तणी रानी ने उदयपुर के बाजार में करवाया।
सड़कों के काम में कुल 9 लाख 88 हजार रुपए खर्च हुए। महाराणा की माताओं द्वारा करवाए गए निर्माण कार्यों के अलावा इन सभी कार्यों में करीब 22 लाख रुपए खर्च हुए। अगले भाग में महाराणा शम्भूसिंह के देहांत का वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)