1864 ई. – प्रजा में असंतोष व हड़ताल :- मेवाड़ की प्रजा अदालती कार्यों से अपरिचित थी और ऐसी स्थिति में कर्नल ईडन द्वारा बाहर से लाए हुए अहलकारों ने दबाव डालकर कायदों की पाबंदी करवानी चाही।
इसके अतिरिक्त अफ़सर निजामुद्दीन खां ने लेनदेन के नियमों में बदलाव किए, जिससे भी जनता में असंतोष बढ़ गया। महाराणा स्वयं भी निजामुद्दीन को बर्खास्त करने की फिराक में थे। लेकिन महाराणा इस समय नाबालिग थे, इसलिए उन्हें सीमित अधिकार प्राप्त थे। मुख्य निर्णय पोलिटिकल एजेंट व काउंसिल द्वारा लिए जाते थे।
निजामुद्दीन ने एक हुक्म जारी कर दिया कि लेनदेन के मामलों में कोई भी व्यक्ति महाराणा की आण नहीं दिलावेगा। दरअसल रियासती दौर में ऐसा चलन में था कि दो लोगों में किसी लेनदेन को लेकर विवाद हो और कोई एक महाराणा की कसम खाकर बोल दे तो उसकी बात सच मानी जाती थी।
लोगों ने इस बात की शिकायत महाराणा से की, तो महाराणा ने कहा कि निजामुद्दीन को जल्द ही बर्खास्त कर दिया जाएगा। 30 मार्च, 1864 ई. को नगर सेठ चंपालाल की अध्यक्षता में हज़ारों लोग पोलिटिकल एजेंट की कोठी पर पहुंचे।
इन लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से महाराणा का सहयोग भी प्राप्त था। लोगों ने पोलिटिकल एजेंट को बहुत सी गालियां दीं। मामूली झड़प हुई, जिसमें एक पत्थर पॉलिटिकल एजेंट के लगा। इसके बाद कर्नल ईडन ने लोगों को तसल्ली देकर वापिस भेज दिया।
6 अप्रैल को महाराणा शम्भूसिंह ने भी सहेलियों की बाड़ी में जाकर इन लोगों को समझाया और काफी हद तक इनकी तकलीफ़ दूर कर दी गई। निजामुद्दीन को उसके पद से हटा दिया गया। 2 नवम्बर, 1864 ई. को जगन्नाथराय मंदिर के पीछे एक बड़े स्कूल की नींव डाली गई।
महाराणा शम्भूसिंह की नाबालिगी के समय पोलिटिकल एजेंट के नेतृत्व में मेवाड़ में हुए सुधार कार्य :- (1) दीवानी और फौजदारी अदालतों का अच्छा प्रबंध किया गया। (2) अहलकारों की घूसखोरी को काफी हद तक रोक दिया गया। (3) सहूलियत के साथ राज्य की आमद बढ़ाई गई।
(4) प्रजा की जान-माल की हिफाज़त का विशेष प्रबंध किया गया। (5) सड़कों पर गश्त लगाने के लिए सवार तैनात किए गए। (6) शम्भूरत्न नाम से एक पाठशाला खोली गई। एक पाठशाला में 5 विद्यार्थी हो गए। एक अन्य पाठशाला लड़कियों के लिए खोली गई, जिसमें 51 लड़कियां हो गईं।
(7) एक अस्पताल खोला गया। (8) जेल का नया बंदोबस्त किया गया। (9) उदयपुर से खेरवाड़ा और नीमच तक पक्की सड़कें बनाने का कार्य शुरू हुआ। (10) नसीराबाद और नीमच के बीच जो सड़क बनाई जा रही थी, उसके लिए महाराणा शम्भूसिंह ने 60 हज़ार रुपए सालाना 3 वर्षों तक अदा किए।
(11) महाराणा ने उदयपुर शहर के अंदर व बाहर की सड़कें व अरावली की पहाड़ी के बीच से गुजरने वाले एक रास्ते के लिए भी धन उपलब्ध करवाया। (12) राजपूताना-मालवा रेलवे बनाई जाने की योजना पर ज़मीन मुफ़्त देना स्वीकार किया गया, बशर्ते मंदिरों व खास मकानों को हानि न पहुंचे।
राज्य की आमद 28,75,000 रुपए तक बढ़ी और खर्च 21,75,000 रुपए तक। ख़ज़ाने में 30 लाख नकद जमा थे। 27 जनवरी, 1865 ई. को मऊ, नीमच व नसीराबाद का जनरल ग्रीन उदयपुर आया।
उसकी पेशवाई के लिए महाराणा शम्भूसिंह ने स्वयं न जाकर शिवरती के महाराज दलसिंह, बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, पंडित लक्ष्मणराव व महता गोकुलचंद को भेज दिया। तीन दिन ठहरकर 30 जनवरी को जनरल ग्रीन उदयपुर से रवाना हो गया।
नए पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति :- 11 अप्रैल, 1865 ई. को महाराणा शम्भूसिंह को यह ख़बर मिली कि मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल ईडन को राजपूताने के ए.जी.जी. का पद सौंप दिया गया है, इसलिए उसे मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट का पद छोड़ना पड़ा।
2 मई, 1865 ई. को निक्सन मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर उदयपुर आया। निक्सन पहले जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट था। निक्सन मेवाड़ के सामन्तों से काफी ज्यादा प्रभावित हुआ था।
शम्भू निवास का निर्माण :- 18 मई, 1865 ई. को उदयपुर राजमहलों के दक्षिण में स्थित कुंवरपदा के महलों की जगह शम्भू निवास नामक महलों की नींव का पहला पत्थर महाराणा शम्भूसिंह ने अपने हाथों से रखा।
भव्य दरबार का आयोजन व महाराणा को अधिकार मिलना :- 18 नवम्बर, 1865 ई. को राजपूताने के ए.जी.जी कर्नल ईडन का उदयपुर आना हुआ। पेशवाई हेतु बेदला के राव बख्तसिंह चौहान व महता गोकुलचंद को भेजा गया।
24 नवम्बर को कर्नल ईडन उदयपुर के राजमहलों में आया। 25 नवम्बर को कर्नल ईडन ने महाराणा शम्भूसिंह को कोठी रेजीडेंसी पर आमंत्रित किया। 26 नवम्बर को उदयपुर में भव्य दरबार का आयोजन हुआ। महाराणा शम्भूसिंह महलों के चौक में सोने के सिंहासन पर बिराजे।
उनके दाईं तरफ ए.जी.जी. कर्नल ईडन चांदी की कुर्सी पर बैठा। शेष 29 अंग्रेज अफसर सादी कुर्सियों पर बैठे। उनके आगे 18 रियासतों के वकील रियासतों के दर्जे के हिसाब से बैठे। महाराणा की बाईं तरफ मेवाड़ के सरदार, चारण, अहलकार आदि अपने-अपने दर्जे के हिसाब से बैठे।
अंग्रेजी रिसाला, तोपखाना, नीमच व खेरवाड़ा की बटालियन भी बड़ी पोल के बाहर तक जमा रही। महाराणा शम्भूसिंह के बालिग़ हो जाने पर कर्नल ईडन ने गवर्नर जनरल की तरफ से महाराणा को सारे अधिकार सौंप दिए। 5 दिसम्बर को कर्नल ईडन उदयपुर से रवाना हो गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)