मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह के इतिहास का भाग – 5

मेवाड़ के सामन्तों के बारे में अंग्रेजों की टिप्पणियां :- 19वीं सदी के रियासत काल में मेवाड़ के सामंत काफ़ी फ़साद किया करते थे और कई बार महाराणा के विरुद्ध भी जाया करते थे, जिन्हें काबू में कर पाना काफी मुश्किल काम था।

इन सामंतों के बारे में मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मेजर निक्सन ने लिखा है कि “राजपूताने की किसी भी रियासत में ऐसे ज़बरदस्त सरदार नहीं हैं, जैसे मेवाड़ में हैं”।

एक अन्य पोलिटिकल एजेंट लिखता है “मेवाड़ के सामंतों की मगरूरी और ढिठाई तमाम हिंदुस्तान में सबसे बढ़कर है। इनमें भी कोठारिया का रावत सबसे बढ़कर है। नवम्बर, 1865 ई. में कर्नल ईडन के डेरे नवानिया गांव में खड़े करवाए जा रहे थे, तब कोठारिया के रावत ने ईडन को मारने की धमकी दी थी।”

खास कचहरी की स्थापना :- 5 जुलाई, 1866 ई. को कचहरी अहलियान तोड़कर ‘खास कचहरी’ बनाई गई।

महाराणा शम्भूसिंह

1866 ई. – सलूम्बर रावत की नाराज़गी दूर करना :- बेमाली के जागीरदार जालिमसिंह ने महाराणा शम्भूसिंह से अर्ज़ किया कि सलूम्बर जाकर रावत जोधसिंह चुंडावत को उदयपुर ले आवें। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से मेवाड़ के महाराणा व सलूम्बर वालों के बीच नाइत्तफाकी चली आ रही थी।

रावत चूंडा के बाद से चली आ रही एक रस्म के अनुसार सलूम्बर रावत की मातमपुरसी के लिए महाराणा स्वयं सलूम्बर जाया करते थे। लेकिन इस बार सलूम्बर रावत केसरीसिंह के देहांत के बाद महाराणा वहां नहीं गए थे और ना ही सलूम्बर रावत ने महाराणा शम्भूसिंह के राजतिलक अवसर में भाग लिया था।

इस पुरानी प्रथा का पालन करने व मनमुटाव मिटाने हेतु 27 अक्टूबर, 1866 ई. को महाराणा शम्भूसिंह ने स्वयं सलूम्बर के लिए प्रस्थान किया। 1 नवम्बर को महाराणा सलूम्बर पधारे व मातमपुरसी की रस्म अदा की।

रावत जोधसिंह को इस वक्त जो खुशी हुई, उसका हाल बयां करना सम्भव नहीं, क्योंकि एक सामन्त की नाराजगी दूर करने के लिए स्वयं महाराणा का वहां जाना बहुत बड़ी बात थी। रावत जोधसिंह ने महाराणा की बहुत बढ़िया खातिरदारी की।

रावत जोधसिंह ने महाराणा को उनके सैन्य समेत दावत दी, जिसमें हज़ारों रुपए ख़र्च हुए। 6 नवम्बर को महाराणा शम्भूसिंह रावत जोधसिंह को साथ लेकर उदयपुर पधारे।

26 नवम्बर को महाराणा शम्भूसिंह ने सादड़ी के राज शिवसिंह झाला, सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत, लसाणी व बम्बोरा वालों की तलवार बंधाई की रस्म अदा की।

सलूम्बर के महल

आमेट का बखेड़ा :- बेमाली के रावत जालिमसिंह ने महाराणा शम्भूसिंह से अर्ज़ करके अपने पुत्र अमरसिंह के लिए आमेट की गद्दी की दावेदारी पेश की। आमेट पर रावत चतरसिंह का अधिकार था। महाराणा शम्भूसिंह ने आमेट पर रावत चतरसिंह का राज ही बरकरार रखा और अमरसिंह को उदयपुर की आमेट की हवेली में ठहराया।

महाराणा ने अमरसिंह को खालसे की ज़मीन (वह ज़मीन जो जागीरदारों को न देकर महाराणा स्वयं रखते थे) से मेजा, सिंधेर, पचमता सहित 20 हजार रुपए की वार्षिक आय की जागीरें देकर अलग सरदार बनाया व तलवार बंधाई की रस्म अदा की।

शिवरती के महाराज दलसिंह का देेेहांत :- 15 दिसम्बर, 1866 ई. को शिवरती के महाराज दलसिंह का देहांत हो गया। इन्होंने मेवाड़ व महाराणा की बड़ी सेवा की थी।

महाराणा द्वारा स्वर्ण का तुलादान :- 4 फरवरी, 1867 ई. को महोदय पर्व पर महाराणा शम्भूसिंह ने स्वर्ण का तुलादान किया। 28 नवम्बर, 1867 ई. को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट मेजर निक्सन महाराणा शम्भूसिंह से रुख़सत पाकर छुट्टी पर विलायत चला गया।

कोठारी केसरीसिंह को प्रधान बनाना :- कोठारी केसरीसिंह, जिनको महाराणा की नाबालिगी के समय 2 लाख रुपए के गबन के झूठे आरोप में काउंसिल से बाहर करवा दिया गया था।

महाराणा शम्भूसिंह जब बालिग हुए, तो उन्होंने केसरीसिंह को हक़दार व निर्दोष समझकर फिर से प्रधान घोषित किया। 12 दिसम्बर, 1867 ई. को अपनी जन्मगाँठ के अवसर पर महाराणा शम्भूसिंह ने कोठारी केसरीसिंह को खिलअत व हाथी भेंट किया।

महाराणा ने करजाली के महाराज सूरतसिंह, धायभाई बदनमल्ल व पंचोली पद्मनाथ को साथ भेजकर कोठारी केसरीसिंह को सम्मान सहित उनके मकान तक पहुंचाया।

26 मई, 1868 ई. को मेजर हैचिन्सन मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर विलायत से उदयपुर आया। 11 दिसम्बर, 1868 ई. को महाराणा शम्भूसिंह जनाना समेत प्रधान कोठारी केसरीसिंह की हवेली पर पधारे, जहां कोठारी ने उनकी बड़ी खातिरदारी की।

महाराणा शम्भूसिंह

अंग्रेज सरकार व मेवाड़ के बीच एक अहदनामा तय होना :- 16 दिसम्बर, 1868 ई. को अंग्रेज सरकार व मेवाड़ के बीच अपराध के विषय में एक संधिपत्र तय किया गया, जिसमें निम्न शर्तें रखी गईं :-

1) यदि मेवाड़ का कोई व्यक्ति मेवाड़ में संगीन जुर्म करके अंग्रेजी इलाके में शरण लेता है, तो अंग्रेज सरकार उसे गिरफ्तार करके मेवाड़ महाराणा के सुपुर्द करेगी।

2) यदि कोई व्यक्ति अंग्रेजी इलाके में संगीन जुर्म करके मेवाड़ में शरण लेता है, तो मेवाड़ के शासक उसे गिरफ्तार करके अंग्रेज सरकार के सुपुर्द करेंगे।

3) निम्न अपराध संगीन समझे जाएंगे :- कत्ल, कत्ल की कोशिश, ठगी, डकैती, लूट, स्त्रियों को बेचना, बच्चों को चुराना, विष देना, सेंध लगाना, मवेशी चुराना, घर जलाना, जालसाजी, दण्डनीय विश्वासघात, नकली सिक्के बनाना, सख़्त चोट पहुंचाना, संगीन अपराध में अपराधी की मदद करना।

4) यदि दोनों पक्षों में से किसी एक के द्वारा भी इस अहदनामे की शर्तों का उल्लंघन किया गया, तो यह अहदनामा वहीं रद्द समझा जाएगा। इस अहदनामे का असर उस अहदनामे पर नहीं पड़ेगा, जो अंग्रेज सरकार व मेवाड़ के बीच पहले से तय है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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