मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह भाग – 2 – पंचसरदारी का गठन

महाराणा स्वरूपसिंह की रानी का देहांत व महाराणा का द्वादशाह :- 24 नवम्बर, 1861 ई. को महाराणा स्वरूपसिंह के देहांत के 7 दिन बाद ही उनकी रानी चावड़ी का देहांत हो गया। 28 नवम्बर, 1861 ई. को महाराणा स्वरूपसिंह के द्वादशाह में ब्राम्हण भोज सम्पन्न हुआ।

राजपूताने के ए.जी.जी. व मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट का उदयपुर आना :- 21 दिसम्बर, 1861 ई. को राजपूताने के ए.जी.जी. जॉर्ज लॉरेंस और मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट टेलर उदयपुर आए। 23 दिसम्बर को उक्त दोनों अंग्रेज अफ़सर उदयपुर राजमहल में आए और मातमपुर्सी की रस्म अदा की।

शेरसिंह व श्यामनाथ का उदयपुर आगमन :- महता शेरसिंह और पुरोहित श्यामनाथ भी उदयपुर आए, जो कि महाराणा स्वरूपसिंह की नाराज़गी के कारण उदयपुर नहीं आ पाए थे।

26 दिसम्बर, 1861 ई. – दरबार :- यह मेवाड़ का दूसरा दरबार था जिसमें सिंहासन और कुर्सियों का उपयोग किया गया, वरना मेवाड़ में पुराना रिवाज़ था कि महाराणा गद्दी पर बिराजते और बाकी सामंत वगैरह सब गद्दी के सामने बैठते।

महाराणा शम्भूसिंह

इससे पहले एक बार महाराणा स्वरूपसिंह के समय दरबार में कुर्सियों का प्रयोग किया गया था। महाराणा शम्भूसिंह चांदी के बड़े सिंहासन पर बिराजे। अंग्रेज अफ़सरों ने महाराणा के सम्मान में 19 तोपों की सलामी सर करवाई।

राजपूताने के सभी शासकों में सर्वाधिक तोपों की सलामी मेवाड़ महाराणा के सम्मान में सर की जाती थी, जिनकी संख्या 19 होती थी। जॉर्ज लॉरेंस व टेलर ने इंग्लैंड की राजकुमारी की तरफ से महाराणा शम्भूसिंह को खिलअत, हाथी, घोड़ा, ज़ेवर आदि सामान भेंट किया।

इस दिन दरबार में सभी सरदार पुराने वैमनस्य को भुलाकर उपस्थित हुए। राजपूताने के एजेंट गवर्नर जनरल जॉर्ज लॉरेंस ने सभी सरदारों को एक साथ देखकर खुशी से कहा कि “आज बड़े दिनों बाद महाराणा के दरबार में सभी सरदार उपस्थित हैं, आज का दिन बड़ा शुभ है”

पंचसरदारी का गठन :- महाराणा शम्भूसिंह के नाबालिग होने के कारण रीजेंसी काउंसिल (पंचसरदारी) का गठन हुआ। महाराणा का दैनिक व्यय 1 हज़ार रुपए स्थिर किया गया और उनकी पढ़ाई के लिए एक पंडित को नियुक्त किया गया।

2 जनवरी, 1862 ई. को ए.जी.जी. जॉर्ज लॉरेंस उदयपुर से चला गया। सेना, न्याय, शासन प्रबंध और इमारतों का काम सरदारों के, खज़ाना मेहता शेरसिंह के, माल का काम कोठारी केसरीसिंह के और अन्य कार्य पुरोहित श्यामनाथ के सुपुर्द किया गया।

इस काउंसिल का प्रेसीडेंट पोलिटिकल एजेंट टेलर को बनाया गया। काउंसिल में निर्णय हुआ कि देवगढ़ रावत के जो भी गांव स्वर्गीय महाराणा स्वरूपसिंह ने ज़ब्त किए थे, वे सभी बहाल कर दिए जाएं। कानोड़ रावत का गांव मंडप्या महाराणा स्वरूपसिंह ने ज़ब्त किया था, जो बहाल कर दिया गया।

उदयपुर राजमहल

इस काउंसिल के एक सदस्य भैंसरोड के रावत अमरसिंह को काउंसिल से बाहर कर दिया गया, क्योंकि इनके ठिकाने में एक पुरोहित की स्त्री सती हो गई थी और सती प्रथा मेवाड़ में बंद थी। इस काउंसिल ने शुरुआत में बेहतर काम किए, पर धीरे-धीरे सामंत अपनी स्वार्थसिद्धि में लिप्त हो गए, जिससे राज्य का शासन प्रबंध गड़बड़ा गया।

इस काउंसिल में राय देने के मामले में देवगढ़ के रावत रणजीतसिंह चुंडावत का अधिकार ऐसा था कि उनकी अनुपस्थिति में अदालत की पूरी कार्रवाई बन्द रहती थी। रावत रणजीतसिंह बहुत कम काम करते थे, वे महीने में 2-4 बार ही अदालती कार्रवाई करते थे।

मतलबी सामंतों ने तलवारबन्दी और ज़मानत के जो रुपए राजकोष में पड़े थे, निकाल लिए और वे जागीरें, जो पहले के महाराणा ने संगीन अपराधों की सज़ा के तौर पर ज़ब्त की थी, सामंतों ने पुनः ले ली।

सब सरदारों में केवल बेदला के राव बख्तसिंह चौहान ही ऐसे शख्स थे, जो राज्य के हित में बात कहते थे। इस कारण वे महाराणा शंभूसिंह व पोलिटिकल एजेंट टेलर के ख़ास सलाहकार बन गए।

17 जनवरी, 1862 ई. – राज्याभिषेक उत्सव :- महाराणा शम्भूसिंह के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया। महाराणा रायआंगन के पूर्वी दालान में गद्दी पर बिराजे। इस उत्सव में इज्ज़तदार दरबारी लोगों का ऐसा हुज़ूम उमड़ा कि महाराणा को नज़र दिखलाना भी मुश्किल हो गया।

गणेश ड्योढ़ी से महाराणा शम्भूसिंह की गद्दी तक पहुंचने का रास्ता मिलना भी मुश्किल हो गया था। 18 जनवरी, 1862 ई. को महाराणा शम्भूसिंह एकलिंगनाथ जी के दर्शन करने कैलाशपुरी पधारे, जहां महाराणा को दस्तूर के अनुसार तलवार प्रदान की गई।

काउंसिल की मनमानी :- 8 मार्च, 1862 ई. को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट रियासत का कार्यभार काउंसिल के पंचसरदारों को सौंपकर उदयपुर से चला गया। यह काम टेलर ने बहुत ख़राब किया, क्योंकि अब काउंसिल ने अपनी मनमानी और बढ़ा दी।

पिछले महाराणा स्वरूपसिंह ने महता शेरसिंह से एक कुसूर पर 3 लाख का जुर्माना वसूल किया था। महाराणा शम्भूसिंह के नाबालिग होने का फ़ायदा उठाकर शेरसिंह के बेटे सवाईसिंह ने वे 3 लाख रुपए अपने पिता शेरसिंह के मना करने के बावजूद ख़ज़ाने से निकाल लिए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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