11 मार्च, 1862 ई. – भारत के गवर्नर जनरल का ख़त महाराणा शम्भूसिंह के नाम :- गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग के समय हिंदुस्तान में लागू एक कानून रद्द कर दिया गया, जिसके तहत गोद लिए गए पुत्र को उत्तराधिकारी का पद ना मिलकर सत्ता अंग्रेजी शासन के हाथों में चली जाती थी। यह कानून लॉर्ड डलहौजी ने लागू किया था।
लॉर्ड केनिंग ने एक खत महाराणा शम्भूसिंह को भेजा, जिसमें लिखा था कि “श्रीमती महारानी विक्टोरिया की इच्छा है कि भारत के राजाओं व सरदारों का अपने-अपने राज्यों पर अधिकार तथा उनके वंश की जो प्रतिष्ठा एवं मानमर्यादा है, वह हमेशा बनी रहे। इसलिए उक्त इच्छा की पूर्ति के लिए मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि वास्तविक उत्तराधिकारी के अभाव में यदि आप या आपके राज्य के भावी शासक हिन्दू धर्मशास्त्र और अपनी वंशप्रथा के अनुसार दत्तक लेंगे तो वह जायज़ समझा जाएगा।”
कर्नल ईडन की पॉलिटिकल एजेंट के पद पर नियुक्ति :- 20 अप्रैल, 1862 ई. को मेजर टेलर के स्थान पर कर्नल ईडन मेवाड़ का पॉलिटिकल एजेंट बनकर उदयपुर आया। कर्नल ईडन मेवाड़ में सुधार कार्य तो करवाना चाहता था, परन्तु वह स्वयं को महाराणा व सामन्तों पर हावी रखना चाहता था।
महता अजीतसिंह को कविराजा की सलाह :- चित्तौड़गढ़ में महता अजीतसिंह ने चोरों और डकैतों को सख़्त सज़ा देना शुरू कर दिया, जिनमें 2 को उसने मार दिया, 1 की आंख फोड़ दी व बाकियों के हाथ-पैर तुड़वा दिए।
जब कविराजा श्यामलदास चित्तौड़ गए और ये सब देखा तो उन्होंने अजीतसिंह को समझाया कि “महाराणा स्वरूपसिंह और महाराणा शम्भूसिंह के ज़माने में काफी फ़र्क़ है। मैं मानता हूं कि इन लोगों के कुसूर इन्हें सख़्त सज़ा ही दिलवाते हैं, पर अगर तुमने ये ज़ालिम काम बंद न किए, तो अंग्रेज सरकार की तरफ़ से एक दिन तुम क़ैद किए जाओगे”
इस घटना के दूसरे ही दिन उदयपुर से हुक्म आया कि अजीतसिंह अपने ज़ालिम काम फ़ौरन बन्द कर दे। अजीतसिंह ने कविराजा की सलाह व उदयपुर से आया हुआ हुक्म मानकर ये सब काम बंद कर दिए।
कर्नल ईडन की कार्रवाइयां :- मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल ईडन ने पंडित लक्ष्मणराव को मीर मुंशी, पंडित गोविंदराव को चुंगी का दारोगा और निज़ामुद्दीन खां को दीवानी का अफ़सर नियुक्त किया। इन बाहरी लोगों की नियुक्ति से मेवाड़ के सरदारों व महाराणा को आपत्ति हुई।
एक दिन कर्नल ईडन काउंसिल में आते वक़्त सातां की पायगाह के पास हाथी से उतरा, जहां किसी भी अंग्रेज अफ़सर को सवारी पर आने की इजाजत नहीं थी। महाराणा शम्भूसिंह ने इन बातों की शिकायत ख़त लिखकर वायसराय से की।
सती और दास प्रथा को पूर्णतः बंद करने के सख़्त आदेश जारी किए गए, बच्चों को बेचा जाना बंद करवा दिया गया। महाराणा शम्भूसिंह के नाम से ‘शम्भूपलटन’ नामक सेना तैयार की गई।
23 जुलाई, 1862 ई. – सलूम्बर का बखेड़ा :- सलूम्बर रावत केसरीसिंह चुंडावत का निसंतान देहांत हो गया। बम्बोरा के रावत जोधसिंह को सलूम्बर की गद्दी पर बिठाया गया।
कोठारी केसरीसिंह को प्रधान पद से बर्खास्त करना :- कर्नल ईडन द्वारा काउंसिल में दख़ल देना महाराणा शम्भूसिंह को नागवार गुज़रा। काउंसिल के सदस्यों में भी वैमनस्य हो गया।
इसी वैमनस्य के चलते राज्य के सच्चे वफ़ादार कोठारी केसरीसिंह को 2 लाख रुपए के गबन में फंसाकर काउंसिल से बाहर करवा दिया गया। 2 नवम्बर, 1862 ई. को केसरीसिंह को प्रधान पद से ख़ारिज कर दिया गया।
महाराणा शम्भूसिंह का विवाह :- 6 मई, 1863 ई. को महाराणा शम्भूसिंह ने अपना दूसरा विवाह किया। ये विवाह सादड़ी के कीर्तिसिंह झाला की पुत्री के साथ देलवाड़ा में हुआ। इन महाराणा का पहला विवाह गढ़ी के रतनसिंह चौहान की पुत्री तख्त कंवर बाई के साथ हुआ था।
महाराणा स्वरूपसिंह की रानियों का देहांत :- 20 जुलाई, 1863 ई. को स्वर्गीय महाराणा स्वरूपसिंह की बड़ी महारानी गुलाब कंवर राठौड़ का देहांत हुआ। 2 सितम्बर, 1863 ई. को स्वर्गीय महाराणा स्वरूपसिंह की तीसरी रानी भटियाणी बीसलपुरी का देहांत हुआ।
रीजेंसी काउंसिल का टूटना :- अगस्त, 1863 ई. में रीजेंसी काउंसिल को तोड़कर उसके स्थान पर ‘अहलियान श्रीदरबार राज्य मेवाड़’ नामक कचहरी स्थापित की गई।
1863 ई. – महकमा देवस्थान की स्थापना :- मेवाड़ में मंदिरों की देखरेख के लिए महकमा देवस्थान नामक विभाग की स्थापना की गई। कई मंदिरों के कारण इसकी आय काफी बढ़ गई। इस धन का उपयोग अकाल आदि राहत कार्यों हेतु किया जाने लगा।
मेवाड़ की फौजी संख्या :- इस समय तक महाराणा की फ़ौज में 1152 घुड़सवार व 3694 पैदल सिपाही थे, जिनका कुल ख़र्च सालाना सवा 6 लाख रुपए से कुछ अधिक होता था। फ़ौजी संख्या समय के अनुसार कम होती गई, क्योंकि इस समयकाल में युद्ध वगैरह नहीं होते थे। इस सेना का उपयोग मुख्य रूप से राज्य में कहीं-कहीं होने वाले विद्रोह को दबाने के लिए किया जाता था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
हुकुम महाराणा श्री शंभू सिंहजी की रानी चौहानजी का नाम श्री इंद्र कंवरजी लिखा मिलता है ज्यादा तार श्री तख्त कंवरजी दसरी किसी रानी का होगा और उनकी रानी झालीजी थी श्री दौलत कंवरजी