महाराणा स्वरूपसिंह के नाम गवर्नर जनरल लॉर्ड एलेन्वेरा का संदेश :- लॉर्ड एलेन्वेरा ने महाराणा स्वरूपसिंह के नाम एक संदेश भेजा कि “अंग्रेजी फौज ने काबुल और गज़नी पर फतह हासिल करके गुजरात के सोमनाथ मंदिर के किवाड़ उनसे छीन लिए हैं, जो महमूद गज़नवी ने लूटे थे। आपके मुल्क मेवाड़ से ये किवाड़ गुजरात ले जाए जाएंगे। उम्मीद है कि इस नेक ख़बर से आपको ख़ुशी हासिल होगी।”
1842 ई.-1843 ई. की घटनाएं :- सलूम्बर ठिकाने द्वारा एक अपराधी की शरणागत रक्षा :- सलूम्बर के कुंवर केसरीसिंह चुंडावत महाराणा स्वरूपसिंह से नाराज़ होकर अपने सलूम्बर चले गए थे। इन्हीं दिनों एक मुज़रिम ब्राह्मणी ने कोई कुसूर किया, जिसकी शिकायत महाराणा के पास पहुंची।
(पाठकों को जानकारी हेतु बता दें कि उन दिनों यह एक रिवाज़ हो गया था कि कोई भी अपराधी, जिस पर कत्ल जैसा संगीन इल्ज़ाम न हो, वह अपराधी सलूम्बर व कोठारिया जैसे ठिकानों में शरण पा सकता था।)
उस ब्राह्मणी ने सलूम्बर में जाकर शरण ली, जहां के कुंवर केसरीसिंह चुंडावत ने उसकी रक्षा करने की ठानी। महाराणा को केसरीसिंह के इस कृत्य पर बड़ा क्रोध आया। महाराणा ने अपने सैनिक भेजकर उस औरत को गिरफ्तार करके दरबार में हाजिर करने का हुक्म दिया।
रावत केसरीसिंह ने अपना एक सैनिक उस औरत की हिफ़ाज़त हेतु उसके साथ ही कर दिया। वह औरत सलूम्बर ठिकाने में जहां भी जाती, वह सैनिक भी उसके साथ जाता। एक दिन संयोगवश सैनिक उसके साथ नहीं था।
वह औरत अपने किसी रिश्तेदार के यहां खाना खाने के लिए गई, तो महाराणा के कोतवाल ने उसको गिरफ्तार कर लिया। कुंवर केसरीसिंह को इस बात का पता चला, तो उन्होंने फ़ौरन 50-100 सैनिकों को भेजकर उसे छुड़वा लिया।
केसरीसिंह के इस कृत्य पर महाराणा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने आसींद के रावत दूलहसिंह चुंडावत को फौज व तोपखाने समेत सलूम्बर पर हमला करके सलूम्बर की हवेली समेत केसरीसिंह को उड़ाने का हुक्म दिया, पर महता रामसिंह ने महाराणा को सलाह दी कि
“यह निर्णय उचित न रहेगा। आपकी गद्दीनशीनी को अभी कुछ ही समय हुआ है। शुरुआत में ही आप सलूम्बर जैसे नामी ठिकाने पर हमला करेंगे, तो बड़ी बदनामी हो सकती है। आपको चाहिए कि यह मसला पोलिटिकल एजेंट पर छोड़ दें।”
महता रामसिंह की खुदगर्जी :- महाराणा स्वरूपसिंह ने महता रामसिंह की बात सही समझकर अपना आदेश वापिस ले लिया। फिर रामसिंह को बड़ी खुशी हुई कि महाराणा ने उसकी बात मान ली। यह विचार करके उसने शक्तिशाली सामंत रावत दूलहसिंह के बारे में महाराणा को कहा कि रावत ने अपना काम नहीं किया है अब तक।
दरअसल रावत दूलहसिंह ने महाराणा को वचन दिया था कि मैं और सलूम्बर के रावत पद्मसिंह मिलकर सभी सरदारों से कर (टैक्स) सम्बन्धी मामलों का विवाद निपटा देंगे।
महाराणा ने रावत दूलहसिंह को उनका वचन याद दिलाया, तो रावत ने कहा कि मैं अकेला ही यह काम करने का प्रयास करता हूँ, क्योंकि सलूम्बर रावत अब मेरे बस में नहीं हैं। फिर रावत दूलहसिंह अपने वचन को पूरा करने का प्रयास करने लगे।
लेकिन महता रामसिंह अपना स्थान सभी सामंतों व मंत्रियों में सर्वोपरि रखना चाहते थे। इसलिए महता रामसिंह ने गोगुन्दा के लालसिंह झाला के ज़रिए रावत दूलहसिंह का विरोध करवाया, जिससे रावत दूलहसिंह अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सके।
रावत दूलहसिंह के साथ अन्याय :- महाराणा स्वरूपसिंह इस बात से नाराज़ हुए कि रावत दूलहसिंह अब तक अपने वचन को पूरा नहीं कर सके। इस बात को रावत के विरोधियों ने और बढ़ा चढ़ाकर महाराणा के सामने पेश किया।
एक दिन महाराणा ने रावत दूलहसिंह को उदयपुर से जाने को कहा, तो रावत अपने ठिकाने में चले गए, पर जाते-जाते महाराणा से कहा कि “आपको कुछ अरसे बाद मेरी खैरख्वाही का हाल मालूम होगा।”
महाराणा जवानसिंह ने रावत दूलहसिंह को उनकी जागीर के छोटे-छोटे गांवों के बदले में बड़े-बड़े गांव दिए थे। महाराणा स्वरूपसिंह ने वे बड़े गांव ज़ब्त करके पुनः छोटे गांव रावत दूलहसिंह को दे दिए।
महाराणा को फिर भी तसल्ली न हुई, तो उन्होंने कुछ जासूस भी रावत के पीछे लगा दिए। इस घटना के बाद रावत दूलहसिंह उदासीन हालत में रहने लगे। उन्होंने अपने ठिकाने से बाहर आना-जाना भी कम कर दिया।
इस घटना से पाठकों को मालूम हुआ होगा कि उस ज़माने में एक शासक द्वारा शासन करना कितना मुश्किल काम था। हर एक अच्छे शख्स के ख़िलाफ़ शासक को गुमराह करने वालों की कमी न थी। एक अच्छे शासक होने के बावजूद महाराणा के हाथ से यह अन्याय हो गया।
लेकिन यह अन्याय सदा के लिए नहीं था। महाराणा स्वरूपसिंह एक योग्य शासक थे। उनके सामने महता रामसिंह की चालें अधिक समय तक चलने वाली नहीं थीं।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)