दिसम्बर, 1839 ई. – बीकानेर से वैवाहिक संबंध :- महाराणा सरदारसिंह श्रीनाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा गए। बीकानेर के महाराजा रतनसिंह राठौड़ भी नाथद्वारा पहुंचे, जिनके पुत्र कुंवर सरदारसिंह से महाराणा की पुत्री मेहताब कंवर का विवाह तय हुआ था।
महाराणा व बीकानेर महाराजा कांकरोली पहुंचे, जहां द्वारिकाधीश जी के दर्शन करके उदयपुर पधारे। 16 जनवरी, 1840 ई. को महाराणा सरदारसिंह की पुत्री मेहताब कंवर व बीकानेर के कुंवर सरदारसिंह राठौड़ का विवाह हुआ।
इस विवाह में पोलिटिकल एजेंट रॉबिन्सन भी शरीक हुआ। 18 जनवरी, 1840 ई. को महाराणा सरदारसिंह ने बीकानेर के महाराजा रतनसिंह राठौड़ को फौज समेत दावत दी। 20 जनवरी, 1840 ई. को महाराणा सरदारसिंह ने बारात को विदा किया।
वर्ष 1827 ई. में महाराणा भीमसिंह व कप्तान कॉब ने मिलकर महाराणा व सरदारों के बीच एक कौलनामा तैयार किया, लेकिन उस समय सरदारों ने उस कौलनामे पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। महाराणा सरदारसिंह ने वही कौलनामा फिर से लागू करने का विचार किया और उन्होंने पहले से लिखित शर्तों के अलावा भी कुछ शर्तें अपनी तरफ से जोड़ दीं।
कौलनामा व उसकी शर्तें :- महाराणा सरदारसिंह व उनके सामंत-जागीरदारों के बीच एक कौलनामा तैयार किया गया, जिसमें महाराणा ने निम्नलिखित शर्तें रखीं :- 1) जागीरदार अपनी जागीर से होने वाली आय का छठा हिस्सा (छटूंद) 6 माही किश्तों में महाराणा को देंगे।
2) प्रत्येक जागीरदार को उसकी बारी आने पर जितनी फ़ौज रखी जानी चाहिए, उसकी आधी फ़ौज समेत महाराणा के पास आकर प्रत्येक वर्ष में 3 माह तक सेवा देनी होगी। यदि कोई सरदार तय संख्या से कम सिपाहियों के साथ हाजिर होगा, तो महाराणा उससे अप्रसन्न होंगे। ये महाराणा के ऊपर निर्भर करेगा कि वे जब चाहें, जिसे चाहें, हाजिरी से छुट्टी दे सकते हैं।
3) मेवाड़ में सफ़र करने वाले विदेशी व्यापारी, जो जहां भी ठहरे, उस इलाके के सरदार को पहले से ख़बर कर दे, तो उन व्यापारियों के सामान की जिम्मेदारी उक्त सरदार की होगी। जो व्यापारी जानकारी दिए बगैर गांव से दूर ठहरेंगे, उनकी जिम्मेेेदारी सरदार की नहीं होगी।
4) यदि कोई सरदार अपराध करेगा, तो उसे अपराध के अनुसार सज़ा दी जाएगी। 5) बिना किसी कारण के महाराणा द्वारा न तो किसी सरदार का गांव ज़ब्त किया जाएगा और ना ही ये गांव किसी अन्य को दिया जाएगा। 6) शरणा नियमानुसार पाला जाएगा, परन्तु कातिलों के लिए नहीं।
शरणा :- मेवाड़ में सलूम्बर, कोठारिया ऐसे ठिकाने थे, जिनको यह अधिकार प्राप्त था कि यदि कोई अपराधी उनके यहां शरण लेता, तो वे उसकी रक्षा करते और उसे राज्य को नहीं सौंपते थे, इसे शरणा कहा जाता था।
7) कोई भी सरदार अपनी प्रजा पर किसी भी तरह का ज़ुल्म नहीं करेगा और ना ही कोई अतिरिक्त कर (टैक्स) लगाएगा। यदि इस प्रकार के नए कर लगाए गए हैं, तो उन्हें फ़ौरन बन्द कर दिया जाए।
8) सभी सरदार अपनी-अपनी जागीर की प्रजा से पैदावार की आधी आय लिया करे। यदि इसमें कोई दिक्कत आए, तो पैदावार का एक तिहाई हिस्सा और बराड़ नामक कर ले लिया जावे।
9) अंग्रेज सरकार की वजह से मराठों की लूटमार बन्द हो गई है, जिससे न केवल महाराणा व प्रजा, बल्कि जागीरदारों को भी फायदा हुआ है। फिर भी अंग्रेज सरकार को कुल आय का छठा हिस्सा खालसे की भूमि (राज्य की वह भूमि, जिस पर शासक का अधिकार हो) से दिया जाएगा, इसके लिए जागीरदारों से कोई रुपया नहीं वसूला जाएगा।
10) महाराणा द्वारा कामदारों, पटेलों आदि का हिसाब न्यायपूर्वक किया जाएगा। 11) छटूंंद (जागीर की आय का छठा हिस्सा) महाराणा तक पहुंचाने में जागीरदार जानबूझकर देरी करते हैं, जिसके बाद महाराणा को घुड़सवारों और पैदल सैनिकों को उक्त ठिकानों पर भेजा जाता है।
इसमें महाराणा को सैंकड़ों रुपए की हानि उठानी पड़ती है। इसलिए महाराणा ने निश्चय किया है कि सभी सरदारों के वकील बुलाए जाए, ताकि प्रधान के साथ मिलकर वे 5 साल के लिए 2 किश्तों में छटूंंद दिए जाने का बन्दोबस्त कर सकें।
यदि कोई सरदार नियत समय से 10 दिन के भीतर छटूंंद नहीं देता है, तो कर्ज़ के अनुसार उसकी जागीर के गांव ज़ब्त कर लिए जाएंगे, जो उसे लौटाए नहीं जाएंगे। 12) 1665 ई. से पहले दी हुई वंशपरम्परागत भूमि जायज़ समझी जाएगी, उस पर कर (टैक्स) नहीं लिया जाएगा।
कौलनामे के हस्ताक्षरकर्ता :- 1 फरवरी, 1840 ई. को इस कौलनामे पर महाराणा सरदारसिंह ने हस्ताक्षर किए। गवाह के तौर पर मेजर रॉबिन्सन ने हस्ताक्षर किए। फिर निम्नलिखित सरदारों के हस्ताक्षर हुए :-
बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, सलूम्बर के रावत पद्मसिंह चुंडावत, देवगढ़ के रावत नाहरसिंह चुंडावत, आमेट के रावत सालिमसिंह चुंडावत, भींडर के महाराज हमीरसिंह शक्तावत, भैंसरोडगढ़ के रावत अमरसिंह, कुराबड़ के रावत ईसरीसिंह चुंडावत, आसींद के रावत दूलहसिंह चुंडावत।
इस प्रकार कौलनामे की प्रक्रिया पूरी हुई। अगले भाग में महाराणा सरदारसिंह की गया यात्रा के बारे में लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)