1832 ई. – महाराणा जवानसिंह का अजमेर प्रस्थान :- गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने जब महाराणा जवानसिंह से अजमेर में मुलाकात करने की बात कही, तो काफी विचार विमर्श के बाद महाराणा जवानसिंह ने अजमेर जाने की तैयारियां शुरू कीं। सभी सरदारों व उमरावों को उदयपुर में हाजिर होने को कहा गया।
सभी सरदार व उमराव वहां आ पहुंचे। महाराणा जवानसिंह के साथ 10 हज़ार घुड़सवार थे व इनके अतिरिक्त पैदल फ़ौज व अन्य लोग भी थे। महाराणा के साथ वीरविनोद ग्रंथ के लेखक कविराजा श्यामलदास के पिता व पुरोहित श्यामनाथ भी थे।
22 जनवरी, 1832 ई. को महाराणा जवानसिंह फौज समेत उदयपुर से रवाना हुए। पहला पड़ाव गुड़ली गांव में हुआ। 23 जनवरी को महाराणा एकलिंगनाथ जी के मंदिर में रहे। 24 जनवरी को खेमली गांव में पड़ाव हुआ। 25 जनवरी को सनवाड़, 26 को गलूण्ड, 27 को जोगन खेड़ी, 28 व 29 को भीलवाड़ा में पड़ाव हुआ।
30 जनवरी को महाराणा जवानसिंह बनेड़ा पहुंचे, जहां के राजा उदयसिंह ने पेशवाई करके महाराणा का स्वागत सत्कार किया। 1 फरवरी को महाराणा ने सखराणी गांव में पड़ाव डाला। मार्ग में अजमेर व मेवाड़ की सरहद पर एक पोलिटिकल अफसर ने महाराणा का स्वागत किया।
2 फरवरी को नांदला गांव में पड़ाव डालकर 3 फरवरी को महाराणा जवानसिंह अजमेर पहुंचे। फिर अजमेर से 2 कोस दूर राजपूताना के एजेंट गवर्नर जनरल मेजर लॉकेट वग़ैरह कुल 8 अंग्रेज अफ़सरों ने महाराणा का स्वागत किया। वे सब महाराणा को उनके खेमे तक पहुंचाकर रुख़सत हुए।
4 फरवरी, 1832 ई. को महाराणा को सूचना मिली कि बूंदी के राव राजा रामसिंह हाड़ा अजमेर आने वाले हैं और वो मेवाड़ के सैन्य के बीच में से गुज़रेंगे।
महाराणा ने महता शेरसिंह, रावत जवानसिंह, रावत दूलहसिंह, पुरोहित श्यामनाथ आदि को बुलाकर कहा कि “ये हमारे लिए अपमान की बात है, क्योंकि रामसिंह के दादा (राव अजीतसिंह) ने हमारे दादा (महाराणा अरीसिंह द्वितीय) की हत्या की थी।”
रावत जवानसिंह व रावत दूलहसिंह ने कहा कि “इस वक्त सलाह की बात कहना हम लोगों का काम नहीं है। हमारी राय तो ये है कि नक्कारे का हुक्म दे दिया जावे, ताकि हम लोग लड़ाई करके बहादुरी दिखलावें और अगर सलाह मशवरे की ही बात करनी हो, तो अहलकारों से कहें।”
महता शेरसिंह ने सलाह दी कि हमें यह मसला लॉर्ड विलियम बैंटिक तक पहुंचाना चाहिए। महाराणा जवानसिंह को यह सलाह पसन्द आई और उन्होंने लाला चिरंजीलाल को बुलाया। लाला चिरंजीलाल उन दिनों पोलिटिकल एजेंट के पास मेवाड़ की तरफ से वकील थे।
लाला चिरंजीलाल ने विलियम बैंटिक से कहा कि “यदि बूंदी वाले मेवाड़ के लश्कर के बीच में से गुज़रेंगें, तो तलवारें चलेंगी।” तब विलियम बैंटिक ने बूंदी के राजा के अजमेर आने का रास्ता बदलवा दिया।
गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने महाराणा जवानसिंह को सलाह दी कि आप पुराने बैर को भुलाकर बूंदी के राजा से मित्रता कर लीजिए, लेकिन महाराणा को ये सलाह पसंद न आई, तो उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।
5 फरवरी, 1832 ई. – गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक से भेंट :- 5 फरवरी को महाराणा जवानसिंह हाथी पर सवार होकर जुलूस की सवारी से विलियम बैंटिक के डेरों पर गए। विलियम बैंटिक ने डेरों की ड्योढ़ी तक आकर महाराणा की पेशवाई की।
महाराणा के सम्मान में 19 तोपों की सलामी सर हुई। डेरों के अंदर लॉर्ड विलियम बैंटिक, बम्बई के गवर्नर, महाराणा जवानसिंह व महाराणा के अहलकार आदि मौजूद थे।
विलियम बैंटिक ने सोने-चांदी से सुसज्जित 2 घोड़े, मखमली ज़रदोजी झूल व सामान सहित एक हाथी, सरोपाव, मोतियों की माला, चांदी के बांसों व टाटबाफी पर्दों सहित पश्मीने का एक शामियाना, फर्श की 2 दरियां, 2 गलीचे, विलायती साज सहित एक तलवार, फ़ौलादी जड़ाऊ ढाल और एक दुनाली बंदूक महाराणा जवानसिंह को भेंट की।
गवर्नर जनरल ने महाराणा को इत्र पान देने के बाद पेशवाई की जगह तक पहुंचाकर रुख़सत किया। जाते वक्त फिर 19 तोपों की सलामी सर हुई। 6 फ़रवरी, 1832 ई. को महाराणा जवानसिंह मेजर लॉकेट से मिलने के लिए मेजर के लश्कर में आए।
7 फरवरी को जयपुर के महाराजा की तरफ से महाराणा के लिए टीके का दस्तूर आया। 8 फरवरी को सुबह साढ़े दस बजे गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक वापसी हेतु मुलाकात करने के लिए महाराणा के पास आया।
कुछ सरदार विलियम बैंटिक की पेशवाई हेतु गए और उसको महाराणा के खेमे में लेकर आए। इस दौरान राजकाज की जो बातें हुईं, तब खेमे में लॉर्ड विलियम बैंटिक, बम्बई के गवर्नर जनरल, मेजर लॉकेट, महाराणा जवानसिंह, रावत जवानसिंह, रावत दूलहसिंह, महता शेरसिंह, महता सवाईराम, महता मोतीराम, पुरोहित श्यामनाथ आदि मौजूद थे।
चर्चा में सबसे पहले महाराणा जवानसिंह ने जावद, नीमच व गोडवाड़ के परगनों का मुद्दा उठाया, क्योंकि उक्त परगने मेवाड़ के हाथ से निकल गए थे। लेकिन इन परगनों को पुनः मेवाड़ में शामिल करने के लिए गवर्नर जनरल ने कुछ खास ध्यान नहीं दिया।
फिर महाराणा जवानसिंह ने कहा कि “मैं दो बातों के लिए यहां आया हूँ। अव्वल तो ये कि शाहपुरा व फूलिया परगनों से अंग्रेजी फौज हटा ली जावे और दूसरा ये कि मेरे गया जाने का उचित प्रबंध करवा दिया जावे, ताकि अपने पिता का श्राद्ध कर सकूं।”
गवर्नर जनरल ने दोनों ही बातें सहर्ष स्वीकार कर लीं और उसी समय शाहपुरा से अंग्रेजी फ़ौज हटाने का हुक्म दे दिया। फिर खेमे में मौजूद अंग्रेज अफ़सरों को इत्र पान दिए गए।
महाराणा जवानसिंह ने लॉर्ड विलियम बैंटिक को कपड़ों की 51 किश्तियाँ, एक सरसोभा, मोतियों की एक माला, एक ढाल, 2 पहुँचियां, एक तलवार, एक बंदूक, एक बुगदा, एक पेशकब्ज़, एक कटार, ज़रदोजी जीन सहित 2 घोड़े और एक हाथी भेंट किया। आते व जाते दोनों वक्त 21-21 तोपों की सलामी सर हुई।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)