महाराणा भीमसिंह द्वारा बनवाए गए महल :- 28 अप्रैल, 1825 ई. को महाराणा भीमसिंह द्वारा पिछोला झील के किनारे पर बनवाए जा रहे महलों का काम पूरा हुआ, जिसकी खुशी में बड़ा उत्सव रखा गया और इन महलों का नाम नया महल रखा गया।
11 अक्टूबर, 1825 ई. को हाथीपोल के बाहर कप्तान कॉफ़ ने अपने लिए एक कोठी बनवाई। इस कोठी के बनने की खुशी में कॉब ने महाराणा भीमसिंह को भोजन पर आमंत्रित किया।
शासन प्रबन्ध में बदलाव :- नवंबर, 1826 ई. में कॉब के स्थान पर सदरलैंड मेवाड़ में नियुक्त हुआ। जिन चपरासियों को पहले वाले एजेंटों ने थानों और परगनों में नियुक्त किया था, सदरलैंड ने उनको वहां से हटा दिया, क्योंकि वे लोग प्रबंध में हस्तक्षेप करते थे।
दिसंबर, 1826 ई. में चार्ल्स मेटकॉफ उदयपुर आया। महाराणा भीमसिंह ने चार्ल्स मेटकॉफ से कहा कि “सालाना खिराज की रकम तय कर दी जाए, चढ़े हुए खिराज में रियायत की जाए, राज्य का शासन प्रबंध मुझे सौंपा जाए, भोमट प्रदेश मुझे लौटा दिया जाए, मेवाड़ के वे क्षेत्र जो दूसरे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में चले गए वे मुझको लौटाए जाएं, मेरवाड़ा मुझको वापिस दिलाया जाए और रेजिडेंट के यहां मेरी ओर से एक एजेंट रहे।”
महाराणा की इच्छा अनुसार यह तय हुआ कि सालाना खिराज 3 लाख रुपए रखा जाएगा, चढ़ा हुआ खिराज प्रतिवर्ष 50 हज़ार रुपए की किश्त से चुकाया जाएगा, मेवाड़ के शासन प्रबंध में पोलिटिकल एजेंट का हाथ नहीं रहेगा और महाराणा की तरफ से रेजिडेंट के पास वकील रहेगा।
1827 ई. में महाराणा भीमसिंह ने सेठ जोरावरमल के कार्यों से खुश होकर पालकी और छड़ी के सम्मान सहित बदनोर परगने का गांव परासोली दे दिया। इसी वर्ष कप्तान कॉफ ने एक नया कौलनामा तैयार किया, पर उस पर मेवाड़ के सामंतों ने हस्ताक्षर नहीं किए।
शिवालय का निर्माण :- 31 जुलाई, 1827 ई. को महाराणा भीमसिंह की बीकानेरी रानी पद्मकुंवरी ने पिछोला के पश्चिमी तट पर अपने व अपने पति के नाम से ‘भीमपद्मेश्वर’ नामक शिवालय बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा इस दिन हुई।
महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में घटित हुई वह घटना जिसका वर्ष निश्चित नहीं है :- लुटेरों के एक समूह ने उदयपुर में डाका डाला और बहुत सा माल लेकर भाग निकले।
महाराणा भीमसिंह के आदेश से शाहपुरा के अमरसिंह ने उनका पीछा किया। अमरसिंह ने बहुत से लुटेरों को मार डाला और शेष को क़ैद कर माल समेत उदयपुर ले आए। तब महाराणा ने खुश होकर अमरसिंह को “राजाधिराज” का खिताब दिया।
30 मार्च, 1828 ई. – महाराणा भीमसिंह का देहांत :- 16 अक्टूबर, 1827 ई. को महाराणा भीमसिंह के पौत्र व कुँवर जवानसिंह के पुत्र का जन्म हुआ, जिसकी खुशी में महाराणा भीमसिंह ने हजारों रुपए, हाथी, घोड़े आदि चारणों को दिए, लेकिन 16 मार्च, 1828 ई. को उक्त बालक ने अपने जीवन की अंतिम श्वास ली।
सारी खुशी गम में बदल गई। इस घटना से महाराणा को बड़ा गहरा सदमा लगा। लोगों के कहने से महाराणा ने 3 दिन तक गणगौर की सवारियां कीं। जब एक-दो सवारी और करने के लिए कुँवर जवानसिंह ने महाराणा से अर्ज़ किया, तो महाराणा ने कहा कि मैंने इतना भी लोगों के कहने पर किया है, वरना मेरे बदन की हालत बहुत ख़राब है।
25 मार्च, 1828 ई. को महाराणा भीमसिंह बेहोश हो गए। फिर होश में आए, लेकिन 2-3 दिन बाद दोबारा बेहोश हो गए। तीसरी बाई फिर बेहोश हुए, तब थोड़ी देर बाद 30 मार्च, 1828 ई. को महाराणा भीमसिंह ने अपने प्राण त्याग दिए। 31 मार्च, 1828 ई. को पूर्णिमा के दिन उनकी दाहक्रिया हुई।
महाराणा के देहांत पर उनकी दानशीलता की प्रशंसा में जोधपुर महाराजा मानसिंह राठौड़ ने इस पद्य की रचना की :- राणे भीम न रखियो, दत्त बिन दिहाडोह।
हय गयंद देतो हतां, मुओ न मेवाडोह।। अर्थात मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह, जो दान दिए बिना एक दिन भी खाली नहीं जाने देते थे, वे दान के यशरूपी शरीर से जीवित हैं।
कविराजा श्यामलदास लिखते हैं कि “वैसे तो महाराणा भीमसिंह का देहांत 60 वर्ष की उम्र में हुआ, लेकिन 20 वर्ष के जवान मालिक का देहांत होने पर जैसा रंज होता है, उससे भी ज्यादा सदमा मेवाड़ के लोगों के दिलों पर गुज़रा। उनकी नौकरी करने वाले लोगों में से जो अब भी जिंदा हैं, वे महाराणा भीमसिंह का नाम आते ही ठंडी सांस भरकर याद करते हैं। महाराणा की उत्तमता यहां तक थी कि इस रियासत के लोग ईश्वर का नाम लेने के बाद महाराणा भीमसिंह का नाम लेकर यह ख्याल करते हैं कि उनका दिन चैन से गुजरेगा।”
परिवार :- महाराणा भीमसिंह की रानियां :- इन महाराणा की कुल 17 रानियां थीं, जिनमें से एक महारानी सरदार कवंर थीं, जो सिरोही के शक्तिसिंह देवड़ा की पुत्री थीं। महाराणा भीमसिंह के साथ 4 रानियां (महारानी झाली, महारानी बीकानेरी, महारानी पंवार, महारानी भटियाणी) व 4 पासवान (गुणराय, मोती, सैनरूप, जमुना) सती हुईं।
महाराणा भीमसिंह की संतानें :- कर्नल जेम्स टॉड के लिखे अनुसार महाराणा भीमसिंह की रानियों व पासवानों से हुई कुल सन्तानें 95 थीं, जिनमें से बहुतों का देहांत बचपन में ही हो गया।
ज्येष्ठ कुँवर अमरसिंह थे, जिनका देहांत महाराणा भीमसिंह की जीवित दशा में हो गया था। कुँवर अमरसिंह का विवाह कोटा के महाराजा बिशनसिंह की पुत्री से हुआ था। महाराजकुमार जवानसिंह उत्तराधिकारी हुए और मेवाड़ के अगले महाराणा बने। अगले भाग से महाराणा जवानसिंह का इतिहास लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)