1821 ई. – रतलाम के कुँवर बलवंत सिंह को उनका हक़ दिलाना :- इन दिनों सेंट्रल इंडिया के एजेंट गवर्नर जनरल सर जॉन माल्कम का उदयपुर आना हुआ। इस वक्त रतलाम के राजा पर्वतसिंह राठौड़ के पुत्र कुँवर बलवंत सिंह उदयपुर में ही मौजूद थे।
कुँवर बलवंत सिंह आयु में छोटे थे, उनका ननिहाल सलूम्बर था। रतलाम के कुछ मतलबी लोगों ने कुँवर बलवंत को उनके हक से खारिज करने के लिए किसी बात का शक रतलाम के राजा के कानों में डाल दिया था।
महाराणा भीमसिंह ने कुँवर बलवंत सिंह का हाथ पकड़ा और उनको जॉन माल्कम की गोद में बिठा दिया और माल्कम से कहा कि अब इस बच्चे को उसका हक आपको ही दिलाना है। तब माल्कम ने कहा कि मुझको आपकी इस बात का बड़ा लिहाज है, पर रतलाम के लोगों के बनावटी बयान की वजह से मुझको विश्वास दिलाइये कि यही रतलाम का उत्तराधिकारी है।
तब महाराणा ने 11 अप्रैल, 1821 ई. को कुँवर बलवंत सिंह का विवाह बागोर के महाराज शिवदान सिंह की पुत्री के साथ करवा दिया। इस घटना के बाद माल्कम को पूरी तरह यकीन हो गया और 1825 ई. में रतलाम के राजा पर्वतसिंह के देहांत के बाद कुँवर बलवंत सिंह को रतलाम की गद्दी पर बिठा दिया गया।
कुँवर जवानसिंह का विवाह :- 10 मई, 1821 ई. को महाराणा भीमसिंह के कुँवर जवानसिंह का विवाह रीवां के राजा जयसिंहदेव की पुत्री व विश्वनाथसिंह की पुत्री सुभद्र कुमारी से करना तय किया गया। 19 अप्रैल, 1822 ई. को महाराजकुमार जवानसिंह विवाह हेतु रीवां के लिए रवाना हुए। 2 जुलाई, 1822 ई. को विवाह सम्पन्न हुआ।
कर्नल जेम्स टॉड के प्रयासों का परिणाम :- 1818 ई. में मेवाड़ की वार्षिक आय 1,20,000 रुपए थी। इसी वर्ष सन्धि के बाद टॉड द्वारा किए गए शासन प्रबंध के चलते 1821 ई. में मेवाड़ की वार्षिक आय 8,77,634 रुपए दर्ज की गई। 1822 ई. तक मेवाड़ की वार्षिक आय 12 लाख रुपए तक पहुंच गई।
1823 ई. – भीलों के उपद्रव :- भीलों व कई ठाकुरों द्वारा बगावत करने पर अंग्रेज सरकार द्वारा एक फौज भेजी गई। नतीजतन, जवास के राव समेत बागी ठाकुरों और भीलों ने महाराणा भीमसिंह की अधीनता स्वीकार कर ली व हथियार डालकर दोनों प्रकार के करों (वोलाई, रखवाली) पर अपना हक़ छोड़ने को तैयार हो गए।
पर इस समझौते के कुछ दिन बाद भीलों ने फिर से उपद्रव करना शुरू कर दिया। पॉलिटिकल एजेंट कप्तान कॉब ने बिग्रेडियर लम्ले को फौज समेत भेजकर जवास पर अधिकार कर लिया।
फरवरी, 1823 ई. में भीलों ने महाराणा के कई थानों पर हमले किए, जिनमें महाराणा के 250 सैनिक मारे गए। भीलों ने खेरवाड़ा के थाने को घेर लिया, जहां 1 हजार का लश्कर था।
अंग्रेज सरकार ने कप्तान ब्लैक को 20 कंपनी, 200 सवार व अन्य सेना के साथ नीमच से खेरवाड़ा भेजा, पर मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई, जिसके चलते कप्तान स्पीयर्स को उसके स्थान पर भेजा गया।
स्पीयर्स ने खेरवाड़ा, ओगणा, पानरवा, जूड़ा आदि क्षेत्रों की सुरक्षा के प्रबंध कर दिए। ओगणा के स्वामी ने महाराणा की अधीनता स्वीकार कर ली। खेरवाड़ा और पिंडवाड़ा में कुछ कंपनियां छोड़कर अंग्रेजी फौज नीमच लौट गई।
19 फरवरी, 1823 ई. को साह शिवलाल गलूंंड्या को किसी कुसूर पर कैद किया गया और उससे जुर्माना लिया गया। 1823 ई. में कर्नल जेम्स टॉड बीमार हो गया और वह शासन प्रबंध कप्तान वॉग को सौंपकर अपने वतन लौट गया।
वॉग जेम्स टॉड की भांति उदार नहीं था। वॉग ने महाराणा भीमसिंह को 1 हज़ार रुपए प्रतिदिन दिलाने की जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया। मार्च, 1823 ई. में कप्तान स्पीयर्स मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त हुआ, लेकिन एक माह बाद ही वह अपने वतन लौट गया।
फिर कप्तान कॉब पॉलिटिकल एजेंट नियुक्त हुआ, तब उसे मालूम चला कि पिछले एक वर्ष में महाराणा के हाथों में समस्त प्रबंध होने से 83 गांव लोगों को दे दिए गए, जिससे राज्य की आय कम हो गई।
महाजन का कर्ज 2 लाख और अंग्रेज सरकार का खिराज 8 लाख रुपए तक पहुंच गया। यह दशा देखकर कॉब ने शासन व्यवस्था में फिर से सुधार किए। राज्य का प्रबंध पुनः अंग्रेज सरकार के एजेंट की निगरानी में सौंप दिया गया। कॉब ने फिर से महाराणा को प्रतिदिन हज़ार रुपए निजी खर्च हेतु दिलाना शुरू कर दिया।
कॉब को मालूम हुआ कि शासन व्यवस्था में अनुचित प्रबन्ध के कारण प्रजा परेशान हो रही थी, इसका उत्तरदायी साह शिवलाल को ठहराया गया। नतीजतन, 20 अगस्त, 1824 ई. को साह शिवलाल को प्रधान के पद से ख़ारिज करके महता रामसिंह को प्रधान बनाया गया।
12 दिसम्बर, 1824 ई. को महाराणा भीमसिंह की बड़ी बहन चंद्र कँवर बाई का देहांत हो गया। महाराणा उन्हें अपनी माता के समान समझते थे। चंद्र कंवर बाई ने प्रजा पर भी बहुत से उपकार किए थे, इस कारण उनके देहांत से समस्त राज्य को बड़ा रंज हुआ। 16 जनवरी, 1825 ई. को महाराणा भीमसिंह की दूसरी बहन अनोप कँवर बाई का देहांत हो गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)