मराठों व पिंडारियों की लूटखसोट के कारण मेवाड़ की स्थिति :- मराठों की लूटखसोट, आपसी लड़ाइयों से मेवाड़ का राजकोष खाली हो गया, ज़ेवर तक बिक गए, फसलें खत्म हो गई, मेवाड़ उजड़ हो गया। मेवाड़ की बहुत सी प्रजा मालवा, हाड़ौती की तरफ बस गई।
ये हाल सिर्फ मेवाड़ का ही नहीं था, 2-3 रियासतों को छोड़कर राजपूताने की सभी रियासतें इन लूटेरों के कारण उजड़ चुकी थीं। मराठों द्वारा लूटखसोट के बाद गांव के गांव जला दिए जाते थे। महज़ 8 पहर में खुशहाल गांव उनकी उपस्थिति से कंगाल हो जाता था।
कर्नल जेम्स टॉड 1806 ई. में मेवाड़ आया था, तब यहां भीलवाड़ा में 6 हज़ार घरों की बस्ती थी व व्यापार का प्रमुख केंद्र था। जब वह 1818 ई. में दोबारा आया तो भीलवाड़ा को बिल्कुल उजड़ पाया।
जेम्स टॉड लिखता है “जहांजपुर से कुम्भलमेर जाते हुए मुझे 140 मील में 2 कस्बों के सिवा मनुष्य के पैरों के निशान तक न दिखे। जगह-जगह बबूल के पेड़ उग गए और रास्तों पर घास उग रही थी। चीते, सुअरों ने इन्हें अपना रहने का स्थान बना रखा था।”
उदयपुर में जहां पहले 50 हजार घर आबाद थे, अब केवल 3 हजार घर रह गए थे। महाराणा का अधिकार केवल उदयपुर, चित्तौड़ व मांडलगढ़ पर रह गया था। महाराणा को अपने खर्चे के लिए भी कोटा के झाला जालिमसिंह से धन उधार लेना पड़ता था।
मेर व भील पहाड़ों से निकलकर मुसाफ़िरों को लूटते थे। मेवाड़ में रुपए का 7 सेर गेहूं बिकता था और मेवाड़ से बाहर रुपए का 21 सेर अर्थात महंगाई 3 गुना ज्यादा हो गई। महाराणा के साथ 50 सवार भी नहीं रहते थे। कोठारिया के सरदार, जिनके ठिकाने की सालाना आय पहले 50 हजार रुपए हुआ करती थी, अब एक घोड़ा भी नहीं रख पाते थे।
इतिहासकार ओझा जी लिखते हैं “रावल जैत्रसिंह से लेकर महाराणा राजसिंह तक के 450 वर्षों में मुसलमानों से अनेकों लड़ाइयां हुईं, पर मेवाड़ का बल क्षीण न हुआ, परंतु मराठों ने 60 वर्षों में ही मेवाड़ की ऐसी दुर्दशा कर दी कि यदि अंग्रेजों से संधि न होती तो मेवाड़ का सारा राज्य मराठों का हो जाता”
मराठों की लूटपाट के कारण महाराणा भीमसिंह अंग्रेजों से सन्धि करना चाहते थे। यह बात कोटा के झाला जालिमसिंह को पता चली, तो उन्होंने महाराणा से कहा कि अगर आप कहें तो मैं इस बारे में अंग्रेजों से बात करूं।
लेकिन महाराणा भीमसिंह को झाला जालिमसिंह पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने जयपुर के चतुर्भुज हल्दिया के ज़रिए अंग्रेजों तक अपनी बात पहुंचाई। महाराणा ने ठाकुर अजीतसिंह से कहा कि तुम गवर्नर जनरल के पास जाकर बातचीत करो।
ग्रंथ वीरविनोद में कविराजा श्यामलदास लिखते हैं कि “चंद रोज पेश्तर मराठों का जोर-शोर और जालिम पिंडारियों का ज़ुल्म ऐसा बढ़ा हुआ था कि जिसको देखकर मेवाड़ के बाशिंदों ने इस मुसीबत के दूर होने की आशा बिल्कुल छोड़ दी थी। जब एक मराठा सरदार फ़ौज लेकर आता और रुपया तलब करता, तब जैसे तैसे ख़ज़ाने से रुपया देकर उससे पीछा छुड़ाया जाता, तब तक दूसरा मराठा सरदार फ़ौज लेकर धावा कर देता था। फिर उस मराठा को रुपए के बदले अपने अज़ीज़ों को सौंपना पड़ता था। (अर्थात मराठों को रुपए चुकाने तक अपने किसी रिश्तेदार को वहां गिरवी के तौर पर रखा जाता)। जैसे तैसे उससे पीछा छुड़ाया जा ही रहा होता था कि इतने में तीसरा मराठा सरदार फ़ौज लेकर धावा कर देता था। ऐसी हालत में प्रजा की खुशनसीबी से गवर्नमेंट अंग्रेजी का आना और एकदम अमन फैलाकर आदमियों के दिलों को तसल्ली दिलाना ऐसा हुआ कि मानो चंद्रमा और सूर्य का ग्रहण लगने के बाद एकदम अपनी असली रोशनी को प्राप्त होना।”
13 जनवरी, 1818 ई. – मेवाड़-अंग्रेज संधि :- गवर्नर जनरल हेस्टिंग्स के दिए हुए पूरे अधिकारों के अनुसार मेवाड़ व अंग्रेज सरकार के बीच संधि हुई, जिसकी शर्तें नीचे लिखी गई हैं :-
(1) दोनों राज्यों के बीच मैत्री, सहकारिता तथा स्वार्थ की एकता सदा पुश्त दर पुश्त बनी रहेगी। एक के मित्र व शत्रु दूसरे के मित्र व शत्रु होंगे। (2) अंग्रेज सरकार उदयपुर राज्य व मुल्क की रक्षा करने का इकरार करती है।
(3) मेवाड़ के महाराणा दूसरे राज्यों से कोई राजनैतिक संबंध न रखेंगे। (4) अन्य राज्यों से साधारण पत्र व्यवहार के अतिरिक्त कोई पत्र व्यवहार नहीं किया जाएगा। (5) 5 वर्षों तक राज्य की आय का चौथा हिस्सा खिराज में दिया जाएगा और इस अवधि के बाद हमेशा एक रुपए पर 6 आने।
(6) मेवाड़ के जो भी हिस्से मराठों व सामंतों द्वारा अन्यायपूर्वक कब्जे में ले लिए गए हैं, वे महाराणा को वापस दिलाए जाएंगे। (7) आवश्यकता पड़ने पर मेवाड़ की तरफ से अंग्रेजी सरकार को फौजी मदद देनी होगी।
(8) मेवाड़ के महाराणा हमेशा खुदमुख्तार शासक रहेंगे और उनके राज्य में अंग्रेजी सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का दख़ल नहीं दिया जाएगा।
इस संधि के बाद मेवाड़ से मराठों और पिंडारियों के हमले हमेशा के लिए बंद हो गए, सामंतों के आपसी लड़ाई-झगड़े बंद हो गए व प्रजा जो मेवाड़ छोड़कर जा चुकी थी, वो फिर से मेवाड़ लौट आई।
फरवरी, 1818 ई. में अंग्रेज सरकार की तरफ से एजेंट बनकर कर्नल जेम्स टॉड उदयपुर आया, जहां उसका धूमधाम से स्वागत किया गया। यह कर्नल सच्चे मन से महाराणा, मेवाड़ और राजपूताने का हितैषी था। महाराणा ने दरबार में कर्नल के बैठने का दर्जा अपने सामन्तों से भी आगे रखा।
एक भव्य दरबार हुआ, जिसमें बहुत से सामंत व जागीरदार शामिल हुए। इस दरबार में कर्नल जेम्स टॉड ने खड़े होकर महाराणा से कहा कि “जिस किसी ने भी मेवाड़ को बर्बाद करने की कोशिश की, उसका नाम बताइए, अंग्रेज सरकार उनको सज़ा देने के लिए तैयार है।”
इस पर महाराणा भीमसिंह ने बड़प्पन दिखलाते हुए कहा कि “मैंने उनके सारे अपराध क्षमा कर दिए हैं, पर अब यदि कोई कुसूर करेगा तो उसके बारे में आपको सूचना दे दी जाएगी।” महाराणा के कहे हुए ये वचन उन दिनों मेवाड़ में बहुत याद किए गए और जिन लोगों ने महाराणा से बर्ख़िलाफी की थी, वे बड़े शर्मिंदा हुए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)