मेवाड़ महाराणा भीमसिंह (भाग – 13)

राजकुमारी कृष्णा की हत्या :- 1807 ई. में मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा को लेकर जयपुर व जोधपुर रियासतों में विवाद हुआ। जोधपुर महाराजा मानसिंह ने जयपुर महाराजा के प्रबल सहयोगी नवाब अमीर खां को घूस देकर अपनी तरफ मिला लिया, जिससे जयपुर महाराजा को घेरा उठाकर लौटना पड़ा।

21 जुलाई, 1810 ई. को नवाब अमीर खां के दबाव के कारण मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा को ज़हर देकर मरवा दिया गया। ये सम्भवतः राजपूताने के इतिहास का सबसे बुरा दिन था। इस घटना के बाद राजकुमारी की माता महारानी चावड़ी ने अन्नजल का त्याग कर दिया, जिससे कुछ दिनों बाद उनका देहांत हुआ।

राजकुमारी की हत्या के 4 दिन बाद मेवाड़ के दरबार में बिना आज्ञा के रावत संग्रामसिंह शक्तावत ने प्रवेश किया, जो समझदार, योग्य और वीर थे। उन्होंने भरे दरबार में उन सभी को धिक्कारा, जिनकी इस जघन्य पाप में किसी न किसी रूप में भागीदारी रही।

रावत संग्रामसिंह ने रावत अजीतसिंह को श्राप तक दे दिया कि तुम निसंतान मरोगे। विधि का विधान देखिए, कि इस घटना के एक महीने के भीतर ही रावत अजीतसिंह की पत्नी और दोनों पुत्रों का देहांत हो गया। इससे आहत होकर रावत अजीतसिंह विरक्त सा हो गया और हाथ में माला लिए राम नाम जपता हुआ मंदिरों में जाने लगा।

महाराणा भीमसिंह

मेवाड़ में लूटखसोट की चरम सीमा :- इन्हीं दिनों में अमीर खां फौज समेत उदयपुर पर चढ़ आया। अमीर खां ने देबारी के रास्ते से व उसके दामाद जमशेद खां ने चीरवा के रास्ते से मेवाड़ में प्रवेश किया और महाराणा से 11 लाख रुपए मांगे।

धन न देने पर महाराणा की फौज से लड़ाई हुई, जिसमें महाराणा भीमसिंह पराजित हुए। जमशेद खां ने मेवाड़ की प्रजा पर काफी सख्तियां की और धन भी वसूल किया।

इन्हीं दिनों बापू सिंधिया मेवाड़ आया। सिंधिया और जमशेद ने मेवाड़ की वार्षिक आय में से साढ़े तीन लाख का धन आपस में बांटना चाहा पर मेवाड़ की हालत बहुत कमजोर होने से इतना धन भी वसूल न हुआ।

फिर दौलतराम सिंधिया मेवाड़ आया और उसने धन न मिलने पर मेवाड़ के कुछ महाजनों व किसानों को कैद किया और अजमेर ले गया।

दूसरी तरफ कोटा के झाला जलिमसिंह भी साम्राज्य विस्तार में लगे हुए थे। उनका इरादा ये था कि भीलवाड़ा के पूर्व का हिस्सा जो कि खैराड़ के नाम से मशहूर था, उसको कोटा में शामिल कर लिया जावे। यह विचार करके उन्होंने मांडलगढ़ पर अधिकार करना चाहा, परंतु महाराणा द्वारा वहां नियत किलेदार देवीचंद की बहादुरी के कारण जालिमसिंह वहां अधिकार न कर सके।

लड़ाइयों व लूटखसोट के इन दुर्दिनों में एक और कहर आ बरपा। 1812 ई. में मेवाड़ में ऐसा भीषण अकाल पड़ा, कि हर तरफ मातम छाने लग गया। लोग महीनों तक भूखे-प्यासे मरने लगे। महाराणा भीमसिंह के ख़ज़ाने भी खाली थे। महाराणा ने अपने और अपने रनिवास (रानियों व राजपरिवार की अन्य स्त्रियों) के ज़ेवर बेच दिए और प्रजा की परवरिश की।

महाराणा भीमसिंह

इन्हीं दिनों 500 पठान सैनिकों ने तनख्वाह न मिलने पर धरना दे दिया, तब चावंड के रावत सरदारसिंह ने उनसे कहा कि जब तक तुम्हें वेतन न चुका दिया जाता, मैं तुम्हारी क़ैद में रहूंगा।

मेवाड़ के प्रधान सतीदास ने सरदारसिंह से अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने का अवसर जानकर पठानों को इशारा कर दिया की सरदारसिंह पर ज़ुल्म करो।

सरदारसिंह चुंडावत पर होने वाले ज़ुल्म के खिलाफ हथियार उठाने वाले लसाड़िये के लालसिंह चुंडावत, आठूण के जवानसिंह पुरावत, बानसीण के दौलतसिंह भाटी बहादुरी से लड़कर वीरगति को प्राप्त हुए।

1815 ई. में सतीदास व उसके भतीजे जयचंद ने पुराना बैर निकालने के लिए पठानों को धन देकर सरदारसिंह को अपनी हिरासत में लिया और आहाड़ नदी के पश्चिमी किनारे पर उनकी निर्मम हत्या कर दी। 3 दिन बाद सरदारसिंह के शव को जलाया गया।

26 अक्टूबर, 1815 ई. को ये खबर सुनकर महाराणा भीमसिंह के आदेश से ठाकुर अजीतसिंह, रावत जवानसिंह और दूलहसिंह ने सतीदास प्रधान को क़ैद कर उसका सिर काट दिया। सतीदास का भतीजा जयचंद भागा, लेकिन चुंडावतों ने नाई गांव के करीब उसे पकड़कर मार डाला।

1816 ई. – मेवाड़ी फौज द्वारा दिलेर खां को शिकस्त देना :- नवाब दिलेर खां अपनी फौज समेत चित्तौड़ के गांव लूटता हुआ उदयपुर पहुंचा। उदयपुर में महाराणा भीमसिंह ने नीचे लिखे सरदारों समेत मेवाड़ी फौज भेजी :-

कुंवर अमरसिंह, रावत दूलहसिंह, ओछड़ी के उदयसिंह शक्तावत, महंत सखारामगिरी गुसाईं, बानसीण के हमीरसिंह भाटी, गुलाबसिंह वीरमदेवोत राणावत, मान्यावास के चतुर्भुज चुंडावत, गुलाबसिंह भाटी, जोधसिंह गौड़, खूमसिंह, साह शिवलाल।

महाराणा भीमसिंह

इस लड़ाई में मेवाड़ी फौज ने दिलेर खां की फौज को मेवाड़ से बाहर खदेड़ दिया। इस लड़ाई में महंत सखारामगिरी गुसाईं व बानसीण के हमीरसिंह भाटी वीरगति को प्राप्त हुए व रावत दूलहसिंह को बरछे का सख्त ज़ख्म लगा।

हर रोज मेवाड़ को इन लुटेरों का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन आख़िर वो समय आ गया, जब इन लुटेरों पर नकेल कसने की शुरुआत हुई। समय की मांग थी कि अंग्रेजों की मदद लेकर इन लुटेरों का खात्मा किया जावे। आगे का इतिहास अगले भाग में लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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