मेवाड़ महाराणा भीमसिंह (भाग – 9)

गणेश पंत का मेवाड़ में प्रवेश :- 12 जनवरी, 1794 ई. को महादजी सिंधिया का देहांत हो गया। सिंधिया का भतीजा दौलतराव उत्तराधिकारी हुआ व आंबाजी इंगलिया पूर्वी भारत का सूबेदार बना। उसने मेवाड़ राज्य का प्रबंध भार गणेश पंत व महाराणा के 2 अधिकारियों (महता सवाईसिंह व महता शेरसिंह) को सौंप दिया।

अधिकार पाते ही गणेश पंत ने मेवाड़ में लूटमार व ज़ुल्म करने शुरू कर दिए। गणेश पंत के साथियों से चुंडावतों की मुठभेड़ हुई, जिसमें चुंडावतों को काफी नुकसान हुआ। गणेश पंत ने चुंडावतों से कुराबड़ की जागीर छीन ली व सलूम्बर पर तोपों के मोर्चे लगा दिए।

गणेश पंत ने सिंधी सिपाहियों पर हमला कर दिया, तो सिंधियों ने भागकर देवगढ़ में शरण ली। 29 फरवरी, 1796 ई. में महाराणा भीमसिंह व महारानी गुलाब कँवर के पुत्र राजकुमार अमरसिंह का जन्म हुआ।

महाराणा भीमसिंह

1796 ई. – चुंडावतों का बढ़ता प्रभाव :- चुंडावतों ने कुराबड़ रावत अर्जुनसिंह के पुत्र अजीतसिंह चुंडावत को आंबाजी इंगलिया के पास भेजा, जो इन दिनों दतिया की लड़ाई में लगा हुआ था। अजीतसिंह ने प्रस्ताव रखा कि हम आपको दस लाख रुपए देंगे, आप शक्तावतों का साथ देना बंद कर दो व हमारा साथ दो।

आंबाजी इंगलिया ने अपने नायब को खत लिखा कि तुम भींडर के मुहकम सिंह शक्तावत व सतीदास प्रधान का साथ देना छोड़ दो। इस प्रकार चुंडावतों का जोर फिर से बढ़ गया। इन्हीं दिनों सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत महाराणा भीमसिंह के पास आए।

वैसे तो चुंडावतों ने जब महाराणा से बगावत की, तब से ही महाराणा भी इनके विरोधी थे, लेकिन जब रावत भीमसिंह उदयपुर आए, तो महाराणा उनके मददगार बन गए। 26 नवम्बर, 1796 ई. को प्रधान सतीदास व जयचंद गांधी को क़ैद कर लिया गया। शिवदास भाग निकला।

10 दिसम्बर, 1796 ई. को महाराणा भीमसिंह ने महता अगरचन्द को प्रधान का पद और रावत भीमसिंह को मुसाहिबी का खिलअत प्रदान किया। चुंडावतों ने शक्तावतों से दस लाख रुपए वसूल किए व उनकी दो जागीरें हींता व सेमारी छीन ली।

मई, 1798 ई. में महाराणा भीमसिंह ईडर के राजा भवानीसिंह राठौड़ की पुत्री व गंभीरसिंह की बहन से विवाह करने हेतु पधारे।

सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत ने आंबाजी इंगलिया को मेवाड़ से बाहर खदेड़ने के लिए जोधपुर को मददगार बनाना चाहा। उन्होंने जैतकरण सिंघवी के ज़रिए महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कँवर के विवाह सम्बन्ध हेतु पैगाम भिजवाया।

महाराणा भीमसिंह

लकवा व गणेश पंत के बीच लड़ाइयां :- दौलतराव सिंधिया का दूसरा प्रमुख अफ़सर ब्राह्मण लकवा था, जो कि आंबाजी इंगलिया का प्रमुख शत्रु था। चुंडावत राजपूतों ने आंबाजी को खदेड़ने के लिए लकवा से हाथ मिला लिया। लकवा ने मेवाड़ में प्रवेश किया।

लकवा ने महाराणा भीमसिंह को पत्र लिखा कि गणेश पंत को मेवाड़ से निकाल दो। इसी तरह गणेश पंत ने भी महाराणा को लिखा कि लकवा को मेवाड़ से निकाल दो। जब गणेश पंत ने चुंडावतों से मदद मांगी, तो चुंडावतों ने चालाकी से कहा कि तुम मज़बूती से लड़ो, हम तुम्हारे साथ हैं।

चुंडावतों ने कूटनीति से लकवा व गणेश पंत को आपस में भड़काया, जिससे दोनों के बीच लड़ाई हुई, जिसमें चुंडावतों ने गणेश पंत का साथ नहीं दिया और गणेश पराजित हुआ।

चुंडावतों ने फिर से गणेश पंत को भड़काया, जिससे इनके बीच एक लड़ाई और हुई और उसमें भी गणेश पंत पराजित हुआ व उसे भागकर हमीरगढ़ में शरण लेनी पड़ी।

मेवाड़ी फौज व गणेश पंत के बीच हुआ हमीरगढ़ का युद्ध :- लकवा की फौज व मेवाड़ की फौजें मिल गई और इन्होंने हमीरगढ़ पर हमला किया, जहां गणेश पंत अपनी फौज समेत ठहरा हुआ था।

महाराणा भीमसिंह

मेवाड़ी फौज में शामिल प्रमुख योद्धा :- महता अगरचंद बछावत, सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत, आमेट के रावत प्रतापसिंह चुंडावत, देवगढ़ के रावत गोकुलदास चुंडावत, बदनोर के ठाकुर जैतसिंह मेड़तिया राठौड़,

हमीरगढ़ के धीरतसिंह वीरमदेवोत राणावत अपने दोनों पुत्रों अभयसिंह राणावत व भवानीसिंह राणावत सहित, भदेसर के रावत सरदारसिंह चुंडावत, मंडप्या के उदयसिंह वीरमदेवोत राणावत, बाबा गोपालसिंह, भगवानपुरा के रावत जोरावर सिंह चुंडावत,

केरिया के बाबा फतहसिंह गरीबदासोत, बाँसड़ा के बाबा अर्जुनसिंह गरीबदासोत राणावत, लाछुड़ा के जागीरदार सूरजमल ईसरोत राठौड़, बाबा अनोपसिंह पुरावत अपने तीनों पुत्रों सहित। इस प्रकार मेवाड़ के 15 हज़ार सैनिकों ने हमीरगढ़ को जा घेरा।

गणेश पंत ने भी किले से बाहर निकल-निकल कर कई आक्रमण किए, जिनमें हमीरगढ़ के रावत धीरतसिंह राणावत के दोनों पुत्र अभयसिंह व भवानीसिंह वीरगति को प्राप्त हुए।

मेवाड़ी फौज विजय के करीब थी, पर तभी आंबाजी इंगलिया ने गुलाबराव कोदब नामक सरदार को बहुत से सैनिकों समेत गणेश पंत की सहायता हेतु भेजा। मूसामूसी गांव के पास मेवाड़ी फौज व गुलाबराव के बीच लड़ाई हुई, जिसमें गुलाबराव विजयी रहा।

मेवाड़ की तरफ से बहुत से राजपूत काम आए व सिंधी ज़मादार चंदन भी काम आया। मेवाड़ी फौज ने शिकस्त खाकर शाहपुरा में शरण ली, जहां से सुसज्जित होकर उन्होंने फिर से हमीरगढ़ पर चढ़ाई करने की तैयारी की। आगे का वर्णन अगले भाग में किया जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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