मेवाड़ महाराणा भीमसिंह (भाग – 4)

1787 ई. – मेवाड़ व कोटा की सम्मिलित फ़ौजों द्वारा मराठों पर आक्रमण :- मेवाड़ के प्रधान सोमचन्द गांधी ने मेवाड़ में मराठों के कब्जे वाली भूमि को मुक्त करने का फैसला किया और कोटा से भी फ़ौजी सहायता ले ली।

सोमचन्द ने जयपुर और जोधपुर राज्यों से भी मराठों को राजपूताने से बाहर निकालने की सलाह कर ली। इस संबंध में जोधपुर से ज्ञानचंद मुहणौत ने सोमचन्द को एक पत्र भी लिखा था।

इसी वर्ष लालसोट की लड़ाई हुई, जिसमें मारवाड़ व जयपुर की सम्मिलित सेना ने मराठों को बुरी तरह पराजित किया, जिससे राजपूताने में उनका प्रभाव कम पड़ गया। इस अवसर को सही समझकर मेवाड़ के प्रधान सोमचन्द गांधी ने मराठों को मेवाड़ से बाहर निकालने के लिए फ़ौज रवाना की।

चुंडावत राजपूतों को उदयपुर की रक्षा का भार सौंपकर महता मालदास और महता मौजीराम की अध्यक्षता में मेवाड़ व कोटा की सम्मिलित फौजें रवाना हुईं। यह फ़ौज निम्बाहेड़ा, नकुम्प, जीरण आदि स्थानों पर अधिकार करती हुई जावद पहुंची।

निम्बाहेड़ा का परगना महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय के शासनकाल में अहल्याबाई होल्कर ने छीन लिया था, जो मेवाड़ी फ़ौज द्वारा इस समय पुनः जीत लिया गया। जावद पर नाना सदाशिवराव का कब्ज़ा था, जिसने कुछ दिनों तक मेवाड़ी फौज का सामना किया, पर फिर कुछ शर्तों पर सुलह करके जावद का क्षेत्र मेवाड़ को सौंप दिया।

महाराणा भीमसिंह

इसी वर्ष बेगूं के रावत मेघसिंह चुंडावत ने भी सींगोली आदि क्षेत्रों में मराठों को पराजित किया और इन राजपूतों ने रामपुरा पर फिर से अधिकार कर लिया। बेगूं के रावत को जो परगने महादजी सिंधिया को देने पड़े थे, वे पुनः बेगूं वालों ने मराठों से छीन लिए।

इसके बाद विजयी फौज चलदू नामक गांव की तरफ रवाना हुई। राजपूतों द्वारा किए गए हमलों की खबर सुनकर होल्कर की राजमाता अहल्याबाई ने तुलाजी सिंधिया और श्रीभाई की अध्यक्षता में मराठों की फौज जावद की तरफ रवाना की।

मार्ग में सिंधिया की फौज और मंदसौर से नाना सदाशिवराव की सेना भी उनसे आ मिली। इस तरह मराठों की शक्ति बढ़ गई और उन्होंने मेवाड़ वालों के हमले से भागे हुए मराठों को फिर से एकत्र कर लिया। इस तरह तीन फ़ौजें मिलकर एक बड़ी फ़ौज तैयार हो गई।

यह सेना कुछ समय तक मंदसौर में ठहरकर मेवाड़ की तरफ बढ़ी। इस फौज से लड़ने हेतु महता मालदास की अध्यक्षता में मेवाड़ी फौज आगे बढ़ी। मेवाड़ी फौज में जाने वाले प्रमुख सामंत व सहयोगी :-

सादड़ी के राज सुल्तानसिंह झाला, देलवाड़ा के राज कल्याणसिंह झाला, कानोड़ के रावत जालिमसिंह सारंगदेवोत, सनवाड़ के बाबा दौलतसिंह व उनके भाई कुशालसिंह, सिंधी फौज का अफसर सादिक, सिंधी फौज का अफसर पंजू आदि।

महाराणा भीमसिंह

26 जनवरी, 1788 ई. को मंगलवार के दिन चलदू गांव के निकट हड़क्या खाल पर लड़ाई हुई। पहले हमले में तो राजपूतों ने बड़े जोर-शोर से अपने से ज्यादा बड़ी मराठों की फ़ौज को रोका, लेकिन दूसरे हमले में बाज़ी पलट गई।

मेवाड़ के सेनापति महता मालदास, बाबा दौलतसिंह के छोटे भाई कुशालसिंह, सिंधी अफ़सर पंजू आदि प्रमुख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। कानोड़ के रावत जालिमसिंह सारंगदेवोत व देलवाड़ा के राज कल्याणसिंह झाला बुरी तरह ज़ख्मी हुए।

ज़मादार सादिक और बाबा दौलतसिंह की सिलह पर तलवारों के कई वार हुए। सादड़ी के झाला सुल्तानसिंह घायलावस्था में क़ैद हुए, जो कि 2 वर्ष क़ैद में रहने के बाद अपने ठिकाने के 4 गांव मराठों को देने के बाद क़ैद से छूटे।

इस तरह राजपूतों की सेना ने बड़ी बहादुरी से सामना किया, लेकिन फ़ौजी संख्या कम पड़ जाने से पीछे लौट गए और जावद में बची-खुची सेना को एकत्र किया। जावद पर महता अगरचंद के भतीजे दीपचंद ने बचे-खुचे सैनिकों का नेतृत्व किया।

मराठों ने इस सैनिक टुकड़ी को चारों तरफ से घेर लिया। फिर भी दीपचंद ने बड़ी बहादुरी से एक माह तक मराठी फौज का सामना किया, उसके बाद वे मराठों से कुछ शर्तों पर सुलह करके, लड़ाई के सारे सामान व सैनिकों समेत जावद से निकलकर मांडलगढ़ पहुंचे।

इस तरह मेवाड़ के कुछ गांव फिर से मराठों के कब्जे में चले गए, लेकिन प्रधान सोमचन्द गांधी ने हिम्मत नहीं छोड़ी। उन्होंने उन क्षेत्रों को दुरुस्त किया, जो मेवाड़ के अधीन थे।

उदयपुर सिटी पैलेस

बारहट शिवदान की बढ़ती प्रसिद्धि :- 1788 ई. में महाराणा भीमसिंह ने बारहट शिवदान को लाख पशाव दिया। वे महाराणा के प्रमुख सलाहकार बन गए। महाराणा भीमसिंह के ज्योतिदान में सलाह के वक्त की एक तस्वीर में भी बारहट शिवदान का चित्र है।

महाराणा भीमसिंह द्वारा ढाल को हाथों से चीरना :- एक दिन नवाब जमशेद खां मेवाड़ आया, जिसे अपने बल पर बहुत घमंड था। महाराणा भीमसिंह ने उसकी परीक्षा लेनी चाही, इस खातिर उन्होंने एक पुरानी व मज़बूत ढाल मंगवाकर जमशेद खां से कहा कि “इसे चीर के दिखाइए”।

नवाब ने बहुत ज़ोर आजमाइश की, परंतु वह ढाल न चीर सका। तब महाराणा ने उसी ढाल को अपने दोनों हाथों से चीर डाला। जमशेद खां यह दृश्य देखकर दंग रह गया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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