1783-1784 ई. – चुंडावतों का बढ़ता प्रभाव व राजमाता की अप्रसन्नता :- मेवाड़ का राजकोष चुंडावतों के नियंत्रण में आ गया। महाराणा भीमसिंह जब भी राजकोष से धन निकलवाने को कहते तो चुंडावत सरदार ये कहकर मना कर देते कि राजकोष में पर्याप्त धन नहीं है।
एक दिन राजमाता ने चुंडावत सरदारों से कहा कि महाराणा का जन्मोत्सव निकट आ रहा है, इसलिए जलसे के लिए धन का इंतज़ाम करिए, तो चुंडावत सरदारों ने कहा कि राजकोष में ज्यादा धन नहीं है। इस बात पर राजमाता को बड़ा क्रोध आया।
सोमचन्द गांधी को प्रधान बनाना :- सोमचन्द गांधी नामक एक महाजन जनानी ड्योढ़ी के नौकरों में से एक थे। एक दिन सोमचन्द ने राजमाता की दासी रामप्यारी से कहा कि “राजमाता को लगता है कि रावत अर्जुनसिंह में बड़ी योग्यता है। अगर मुझको प्रधान बना देवें, तो रुपयों का बंदोबस्त मैं कर दूंगा।”
राजमाता ने उचित निर्णय लेते हुए सोमचन्द गांधी को प्रधान बना दिया, जो कि इस पद के सर्वथा योग्य थे। प्रधान सोमचन्द ने शक्तावत राजपूतों से मेलजोल बढ़ाया व कुछ धन एकत्र करके राजमाता को भेंट कर दिया।
इसके बाद रावत अर्जुनसिंह, रावत भीमसिंह, रावत प्रतापसिंह आदि चुंडावत सरदारों ने प्रधान व उनके सहयोगियों को सताना शुरू कर दिया। प्रधान सोमचन्द ने अपनी अक्लमंदी से सबके साथ अच्छा व्यवहार बनाना शुरू किया, जिससे उनका दल बढ़ता गया।
सोमचन्द ने लावा के शक्तावत सरदार को राजमाता से सिरोपाव दिलवाकर अपनी तरफ मिला लिया। सोमचन्द ने कोटा के झाला जालिमसिंह, जो चुंडावतों को नापसंद करते थे, उनको भी अपनी तरफ मिला लिया।
3 मार्च, 1786 ई. को प्रधान सोमचन्द ने महाराणा भीमसिंह से अर्ज़ किया कि भींडर के मुहकम सिंह शक्तावत पिछले 20 वर्षों से राज्य के खिलाफ हैं। आप उन्हें मनाएं। तब महाराणा भीमसिंह भींडर पधारे व मुहकम सिंह को मनाने में सफल रहे।
इसी दिन कोटा के झाला जालिमसिंह 5 हज़ार सवारों के साथ भींडर पहुंच गए। महाराणा भीमसिंह, झाला जालिमसिंह और मुहकमसिंह को अपने साथ उदयपुर ले आए।
24 मार्च, 1786 ई. को महारानी भटियाणी ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस खुशी में बड़ा उत्सव रखा गया। इस अवसर पर चारण आसा दूलहसिंह को हाथी, गांव समेत लाख पशाव, चारण आसिया जसवंत सिंह को घोड़ा, सिरोपाव व गांव, कृष्णगढ़ के चारण बारहट शिवदान को घोड़ा व सिरोपाव, बारहट भोपसिंह को घोड़ा व सिरोपाव, बारहट रतनसिंह को घोड़ा आदि भेंट किया गया।
4 मई, 1786 ई. को महारानी अक्षय कंवर राठौड़ (ईडर) ने एक पुत्री को जन्म दिया। इन्हीं महारानी ने 7 सितंबर, 1787 ई. को एक पुत्र को जन्म दिया। इस अवसर पर बारहट भोपसिंह को घोड़ा, बारहट खूबचंद को हाथी, सिरोपाव व सिरशोभा, बारहट शिवदान को घोड़ा, सिरोपाव व गांव, चारण आसिया जसवंत सिंह को घोड़ा, सिरोपाव व गांव आदि भेंट किए गए।
इन दिनों महाराणा भीमसिंह अपनी युवावस्था में थे और राजकाज के कार्यों में ज्यादा प्रवीण नहीं थे। वे अपनी बात पर कायम नहीं रहते थे। फिर कृष्णगढ़ के बारहट शिवदान कई दिनों तक उदयपुर में रहे, जो कि बड़े ज्ञान की बातें करते थे।
महाराणा भीमसिंह पर उनकी बातों का काफी असर पड़ा। महाराणा दो-दो पहर तक शिवदान की बातें सुनते रहते। इससे महाराणा का रियासती कामकाज का ज्ञान बढ़ता गया। अब प्रधान सोमचन्द ने एक और बड़ा काम करने का विचार किया।
सोमचन्द ने मराठा सरदार महादजी सिंधिया और आंबाजी इंगलिया को अपना मददगार बना लिया। फिर कुछ दिन बाद सोमचन्द ने भींडर के मुहकम सिंह के साथ मिलकर तय किया कि मेवाड़ में जहां-जहां मराठों का कब्ज़ा है, तलवार के ज़ोर पर उनको वहां से हटा दिया जावे।
प्रधान सोमचन्द ने मराठों द्वारा हड़पे गए मेवाड़ी परगनों को छुड़ाने के लिए चुंडावतों का सहयोग आवश्यक समझा। दासी रामप्यारी को भेजकर सलूम्बर से रावत भीमसिंह चुंडावत को बुलवाया गया व इसी तरह अन्य चुंडावत सरदारों को बुलाकर उन्हें मराठों के विरुद्ध कार्यवाही हेतु मना लिया गया।
सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत को शक था कि कहीं सोमचन्द गांधी हमको मरवा न दें। यह विचार करके रावत भीमसिंह ने कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत, भदेसर के रावत सरदारसिंह, हमीरगढ़ के रावत धीरतसिंह व आमेट के रावत प्रतापसिंह को साथ लेकर उदयपुर आए और शहर से बाहर कृष्णविलास में ठहरे।
सोमचन्द गांधी की तरफ से कोटा की 5 हज़ार की फ़ौज, भींडर के महाराज मुहकम सिंह शक्तावत, कनाड़ी के राज भवानीसिंह झाला, कोयला के सूरजमल हाड़ा, फलायता के अमरसिंह हाड़ा, गेंता के नाथसिंह हाड़ा, जयसिंह हाड़ा, ऊमरी भदौरा के सिसोदिया सोहनसिंह सगरावत, दयानाथ बख्शी आदि आए और चम्पाबाग के निकट डेरा डाला।
सोमचन्द गांधी की तरफ से भेजे गए इस फ़ौजी दस्ते के आने की बात सुनकर रावत भीमसिंह को और यकीन हो गया कि सब मिलकर चुंडावतों को मारना चाहते हैं। यह ख्याल करके रावत भीमसिंह नाराज़ होकर वहां से चले गए।
फिर सोमचन्द गांधी ने राजमाता से कहा कि चुंडावत राजपूत मुझपर यकीन नहीं कर रहे, इस ख़ातिर आप ही जाकर उनको ले आवें। तब राजमाता पलाणा नामक गाँव में पधारे और वहां चुंडावतों को तसल्ली देकर एकलिंगपुरी में ले आईं।
राजमाता ने एकलिंगनाथ जी के सामने शपथ लेकर चुंडावतों को तसल्ली दिलाई और उनका संदेह दूर करके उदयपुर ले आईं।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)