मेवाड़ महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय (भाग – 2)

1773 से 1777 ई. के बीच की घटनाएं :- मेवाड़ के लिए तनख्वाह पर लड़ने वाले सिंधी सिपाहियों और मराठों के बीच हुई लड़ाई का वर्णन :- कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह, मेवाड़ महाराणा के छोटे भाई भीमसिंह व 10 हज़ार सिंधी सिपाहियों की फ़ौज चित्तौड़गढ़ की तरफ जा रही थी।

जब ये फौज चित्तौड़ के निकट पहुंची, तो महादजी सिंधिया के जमाई बहिर जी ताकपीर की अध्यक्षता में मराठों की फौज चित्तौड़ के गांव लूटती हुई वहां आ पहुंची। तब 6 वर्षीय बालक भीमसिंह ने कहा कि “बड़े अफ़सोस और शर्म की बात है कि मराठा फौज हमारे मेवाड़ में आकर हमारे ही सामने हमारे ही लोगों को लूटे”।

ये वचन सुनकर सिंधी सिपाहियों में ऐसा जोश आया कि सिंधियों की 10 हज़ार की फ़ौज ने मराठों की 15 हज़ार की फौज पर हमला कर एक पहर में परास्त करके वहां से खदेड़ दिया।

फिर रावत अर्जुनसिंह सिंधियों की फौज समेत चित्तौड़गढ़ दुर्ग में गए, जहां चित्तौड़गढ़ के किलेदार सलूम्बर रावत भीमसिंह चुंडावत ने सिंधियों को जागीर वगैरह देकर खुश किया। 2 वर्ष तक ये सब चित्तौड़गढ़ दुर्ग में ही रहे, फिर रावत अर्जुनसिंह और महाराणा के भाई भीमसिंह उदयपुर की तरफ लौट आए।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

महादजी सिंधिया द्वारा बेगूं पर हमला :- महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय के अशक्त होने के कारण सरदार अपनी मनमानी करने लगे। राजमाता ने भींडर के मुहकमसिंह शक्तावत को मुख्तार बना दिया। यह बात रावत भीमसिंह व रावत अर्जुनसिंह को बुरी लगी।

उधर बेगूं के मेघसिंह ने खालसे के कुछ परगनों पर कब्ज़ा कर लिया, क्योंकि मेघसिंह रतनसिंह (नकली महाराणा) के पक्षधर थे।

महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय ने मेघसिंह का दमन करने हेतु एक भारी भूल करते हुए माधवराव सिंधिया (महादजी सिंधिया) से फौजी मदद मांगी, तो सिंधिया फौज समेत भीलवाड़ा होते हुए बेगूं पहुंचा।

रावत मेघसिंह ने बेगूं के एक ब्राम्हण कथाभट्ट फतहराम को सिंधिया के खेमे में भेजा। कथाभट्ट छोटे कद का था तो सिंधिया ने उससे कहा “आओ वामन”। इस पर कथाभट्ट ने कहा “कहिये राजा बलि”। इस पर प्रसन्न होकर सिंधिया ने कहा “मांगो क्या मांगना चाहते हो”।

ब्राम्हण ने कहा “आप अपनी फौज समेत यहां से प्रस्थान करिए”। सिंधिया ने कहा “ठीक है, 1769 ई. के अहदनामे के मुताबिक हमें बेगूं के रावत से जितना फौज खर्च लेना बाकी है, वो मिल जाए तो हम चले जाएंगे”।

कथाभट्ट ने स्वीकार किया और ये बात बेगूं के रावत मेघसिंह के समक्ष रखी तो मेघसिंह ने सिंधिया के पास संदेशा भिजवाया कि “हम ब्राम्हण नहीं हैं जो आशीर्वाद देकर काम चलावें। हम राजपूत हैं, बारूद, गोलों और तलवार से कर्ज़ अदा करेंगे”।

महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय

सिंधिया ने उसी वक़्त बेगूं को घेरकर हमला किया। 3 माह तक घेराबंदी व लड़ाई चलती रही, पर सिंधिया को कामयाबी नहीं मिली। सिंधिया को बड़ा अफसोस हुआ, क्योंकि भारी भरकम फ़ौज होने के बावजूद वह एक छोटे से किले को नहीं जीत पाया।

फिर सिंधिया ने भेदनीति से काम लिया। सिंधिया ने कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत के ज़रिए मेघसिंह के बेटे प्रतापसिंह को अपनी तरफ मिला लिया। मेघसिंह ने पारस्परिक कलह से बचने के लिए सुलह कर ली।

सुलह के तहत रावत मेघसिंह ने 9,63,001 रुपए देना स्वीकार किया। इसमें से 4,81,217 रुपए तो नकद दिए गए व शेष परगनों के रूप में दिए गए। सिंगोली परगने के 36 गांव और भीचोर के 18 गांव इस शर्त पर सिंधिया के सुपुर्द किए गए कि

उक्त गांवों की आमद में से अहलकारों और सिपाहियों का खर्च निकालकर जो बचत रहे, वह इन रुपयों में प्रतिवर्ष जमा होती रहे और जब सारी रकम अदा हो जावे, तो परगने पुनः रावत मेघसिंह के सुपुर्द कर दिए जावें।

सिंगोली परगने के उक्त 36 गांवों में से 35 गांवों के नाम कुछ इस तरह हैं :- सिंगोली कस्बा, अरणो, बरड़ावदो, पाछुदी, कछाला, अनेड़, जेसीगपुरा, सवलपुरा, बामणहेड़ो, घारडी, कुवाई, धन गांव, जामरणा,

जसवंतपुरा, सलोदा, देवपुरा, मोखाचाडोस, हरिपुरा, गोविंदपुरा, खेड़ी, बोहोटो, एमपुरा, पीपलखेड़ा, बजेड़ा, जोदा कुंडल, मादावतों का खेड़ा, मेसपुरा, तुरको, कुबचा, जराड, लाडपुरा, ताल, पाटण, बुहावा, कदवास।

भीचोर परगने के उक्त 18 गांवों के नाम कुछ इस तरह हैं :- भीचोर, पेमपुरा, चावड़ा, गुलावह, मोट्यारड़ा, मेघपुरा, सेणातलाई, कालदा, जोगमोतम, नाल, गोपालपुरा, धनोरा, सरतलाई, गुलभरी, मावुपुरा, काटुदा, फतेपुरा, थडोद।

इनके अलावा 1769 ई. के अहदनामे के अनुसार 43,100 रुपए रावत मेघसिंह से लेने थे, उसके एवज में 42 गांव सिंधिया ने ले लिए। महाराणा हम्मीरसिंह की नासमझी से महादजी सिंधिया ने महाराणा का तो कोई काम न किया, ऊपर से मेवाड़ के कुछ गांव भी हाथ से निकल गए।

महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय

निम्बाहेड़ा का परगना मेवाड़ के हाथ से निकलना :- मल्हार राव होल्कर की जीवित दशा में उसका पुत्र खांडेराव कुम्हेर की लड़ाई में मारा गया। 1766 ई. में मालेराव उत्तराधिकारी हुआ, जो एक वर्ष तक राज करके मर गया। फिर प्रसिद्ध अहल्याबाई ने राजकाज का कार्य अपने हाथों में लिया।

अहल्याबाई ने महाराणा से कहलवाया कि सिंधिया को जो परगने दिए हैं उनके हम भी अधिकारी हैं, क्योंकि सिंधिया, होल्कर और पेशवा के बराबर हिस्से होते हैं।

इस समय प्रधान अमरचंद जैसा कोई योग्य मंत्री नहीं था, जो अहल्याबाई को उचित उत्तर दे सके। इस खातिर महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय को निम्बाहेड़ा का परगना अहल्याबाई को देना पड़ा। महाराणा के पास भी अब ज्यादा योग्य सलाहकार नहीं रह गए थे।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Mohan Rajput
    October 30, 2021 / 3:53 pm

    Jay Rajputana

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