मेवाड़ महाराणा अरिसिंह द्वितीय (भाग – 8)

जनवरी, 1770 ई. – टोपला गांव की लड़ाई :- मेवाड़ के बागी सामन्तों द्वारा माधवराव सिंधिया को मेवाड़ पर चढ़ा लाने के बावजूद भी महाराणा अरिसिंह को पदच्युत नहीं किया जा सका, तो देवगढ़ के रावत जसवंतसिंह के पुत्र राघवदेव चुण्डावत, भींडर के महाराज मुहकम सिंह शक्‍तावत वगैरह सामंतों ने फिर से जयपुर से महापुरुषों की फौज लेकर मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी।

महापुरुष :- ये दादू पंथी नागा साधु थे, जिन्हें महापुरुष कहा जाता था। ये जयपुर की सेना में बड़ी संख्या में विद्यमान थे। ये साधु विवाह नहीं करते। मेवाड़ के बागी सामंत इन साधुओं को मेवाड़ पर चढ़ा लाए थे। इन साधुओं की संख्या ज्यादा होने के कारण ये युद्धों के परिणाम बदलने की क्षमता रखते थे।

इन महापुरुषों व बागी सामन्तों ने महाराणा के तरफ़दार सामन्तों को धमकियां देना शुरू कर दिया। महाराणा अरिसिंह ये ख़बर सुनकर स्वयं फौज समेत लड़ने के लिए रवाना हुए और सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत व कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह को उदयपुर की रक्षार्थ वहीं छोड़ दिया।

महाराणा अरिसिंह फौज समेत देलवाड़ा होते हुए जीलोला गांव में पहुंचे। मोकरुंदा के निकट मेवाड़ के बागी सामन्तों व नागा साधुओं की फ़ौज भी लड़ाई के लिए तैयार थी। टोपला गांव में टोपल मगरी के निकट दोनों पक्षों में लड़ाई हुई।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

नागा साधुओं की संख्या 15 हज़ार थी। इनके अलावा बागी सामन्तों की सेना के 3 दल बनाए गए, पहले दल का नेतृत्व साह मेघराज देपुरा, दूसरे दल का नेतृत्व देवगढ़ के राघवदेव चुंडावत और तीसरे दल का नेतृत्व भींडर के महाराज मुहकम सिंह शक्तावत ने किया।

महाराणा अरिसिंह की फ़ौज में महता अगरचन्द की कमान में मांडलगढ़ और जहाजपुर के भोमिया मीणा वग़ैरह की संख्या 1600 थी, जिनमें 500 सवार और 1100 पैदल सिपाही थे।

इनके अलावा बीच में महाराणा अरिसिंह स्वयं घोड़े पर सवार थे और उनके साथ निम्नलिखित सरदार, पासवान, मंत्री आदि अपनी-अपनी सैनिक टुकड़ियों समेत तैनात थे :-

मेवाड़ के प्रधान सनाढ्य ब्राह्मण ठाकुर अमरचंद बड़वा, प्रधान कायस्थ जसवंतराय, बिजोलिया के राव शुभकरण पंवार, आमेट के रावत प्रतापसिंह जगावत चुंडावत, घाणेराव के ठाकुर वीरमदेव मेड़तिया राठौड़, चाणोद के बिशनसिंह मेड़तिया राठौड़,

नाडोलाई के सूरजमल मेड़तिया राठौड़, खोड़ के शेरसिंह मेड़तिया राठौड़, बसी के चतरसिंह कूंपावत राठौड़, रूपाहेली के शिवसिंह मेड़तिया राठौड़, बदनोर के ठाकुर अक्षयसिंह के छोटे पुत्र कुँवर ज्ञानसिंह राठौड़, महाराणा अरिसिंह के काका अर्जुनसिंह और काका गुमानसिंह,

सनवाड़ के बाबा शम्भूसिंह राणावत, खैराबाद के बाबा शक्तिसिंह भारतसिंहोत, महुवा के बाबा सूरतसिंह, हमीरगढ़ के रावत धीरतसिंह राणावत, बनेडिया के चतरसिंह चौहान, थांवला के नाथसिंह चौहान, गाडरमाला के बाबा मुहकम सिंह पुरावत,

दौलतगढ़ के ईसरदास सांगावत चुंडावत, लसाणी के गजसिंह जगावत चुंडावत, जीलोला के नाथसिंह जगावत चुंडावत, कोशीथल के उम्मेदसिंह जगावत चुंडावत, पीथावास के तख़्तसिंह जगावत चुंडावत,

रूद के जवानसिंह गोकुलदासोत शक्तावत, सियाड़ के सूरजमल शक्तावत, चारण पन्ना आढा, नगराज, धायभाई कीका, कोठारिया के रावत फतहसिंह चौहान आदि।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

कोठारिया के रावत पहले महाराणा अरिसिंह के विरोधी सामन्तों में शुमार थे, लेकिन जब माधवराव सिंधिया और महाराणा अरिसिंह के बीच सन्धि हो गई और माधवराव ने उदयपुर से घेरा उठा दिया, तब कोठारिया के रावत अपना पक्ष कमजोर समझकर महाराणा अरिसिंह के तरफ़दार बन गए।

महाराणा अरिसिंह के दाहिनी तरफ जमादार कासिम खां अरब व जमादार आरब अमीर 5 हज़ार अरबी सिपाहियों के साथ तैनात थे। महाराणा के बाई तरफ उनके काका बाघसिंह जमादार मलंग, जमादार लड़ाऊ, जमादार अब्दुर्रज़्ज़ाक़, जमादार गुलहाला, जमादार कोली आदि अफ़सर 8 हज़ार सिपाहियों के साथ तैनात थे।

दोनों तरफ से तोप, बंदूक, शुतरनाल व तीरों से लड़ाई शुरू हुई। महाराणा की फ़ौज में तोपें ज्यादा थीं। थोड़ी देर लड़ाई हुई, जिसके परिणाम से महाराणा अरिसिंह ज्यादा ख़ुश नहीं हुए, इसलिए बरछा हाथ में लिया और जय एकलिंग का उद्घोष करते हुए अपना घोड़ा आगे बढ़ाया।

इन महाराणा के घोड़े का नाम भी चेटक था। महाराणा अरिसिंह बरछा चलाने में माहिर थे। जो इन महाराणा के सामने आया, बरछे से कत्ल हुआ। महाराणा का हौंसला देखकर सिंधी जमादारों ने भी जोरदार हमला किया और इसी तरह महाराणा के साथी राजपूतों ने भी हमला बोल दिया।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

एक पहर से भी ज्यादा समय तक बरछे, तलवारों और कटारियों से लड़ाई हुई। कई नागा लड़ाई में मारे गए और बहुत से भाग निकले। महाराणा अरिसिंह ने इस लड़ाई में विजय प्राप्त की। विरोधी पक्ष के बागी सामन्तों ने भी अपनी जान बचाने में गनीमत समझी और अपने-अपने ठिकानों में लौट गए।

इस लड़ाई से रतनसिंह की फ़ौजी ताकत में कमी आ गई। रतनसिंह वह शख्स है, जो मेवाड़ के महाराणा अरिसिंह को पदच्युत करने हेतु बागी सामन्तों द्वारा एक राजपूत लड़के को नकली महाराणा रतनसिंह नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया था। इस लड़ाई के एक वर्ष बाद तक रतनसिंह का दोबारा लड़ाई करने का साहस न हुआ, लेकिन फिर से उसने लड़ाई करना तय किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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