मेवाड़ महाराणा अरिसिंह द्वितीय (भाग -6)

1769 ई. – एकलिंगगढ़ का युद्ध :- एकलिंग गढ़ का निर्माण महाराणा प्रताप के पौत्र महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर के माछला मगरा (मत्स्य शैल) पर करवाया था। ये गढ़ पिछोला झील के बड़ी पाल के दक्षिणी छोर के निकट स्थित है।

मेवाड़ के बागी सामंत माधवराव सिंधिया को फौज समेत उदयपुर पर चढ़ा लाए, क्योंकि वे महाराणा अरिसिंह को पदच्युत करना चाहते थे। मेवाड़ के सामंतों द्वारा महाराणा अरिसिंह को गद्दी से हटवाने का प्रयत्न गलत नहीं था, लेकिन मराठों से मेवाड़ पर हमला करवाने में हानि दोनों तरफ से मेवाड़ की थी।

माधवराव सिंधिया ने फौज लाकर उदयपुर की घेराबंदी कर दी, लेकिन इसी दौरान मेवाड़ के प्रधानमंत्री ठाकुर अमरचंद बड़वा ने जगतशोभा नामक तोप को एकलिंगगढ़ पर चढ़ाकर मराठों के लिए समस्या खड़ी कर दी।

जगतशोभा तोप :- इस तोप का निर्माण महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने करवाया था। इस तोप को दुश्मनभंजक नाम से भी जाना जाता है। ठाकुर अमरचंद बड़वा ने ये विशाल तोप एकलिंगगढ़ पर चढ़वाई। ये मेवाड़ की सुप्रसिद्ध तोप थी।

जगतशोभा तोप

वर्तमान में उदयपुर की शहरकोट की बुर्ज़ पर इस तोप की सुबह-शाम देवी के रूप में पूजा होती है। पूजा की शुरुआत ठाकुर अमरचंद बड़वा ने ही की थी। ठाकुर अमरचंद ने पर्याप्त मात्रा में गोला व बारूद भी जमा कर लिया। महाराणा अरिसिंह ने भी नीचे लिखे सर्दारों को दरवाज़ों, गढ़ों व अन्य जगहों पर तैनात किया :-

उदयपुर की शहरपनाह के दक्षिणी दरवाज़े रामपोल पर महाराज गुमानसिंह (कारोही के महाराज बख्तसिंह के पुत्र) व नीबाहेड़ा के ठाकुर हमीरसिंह मेड़तिया राठौड़ और 500 सिंधी सिपाहियों को तैनात किया। एकलिंगगढ़ से दक्षिण तारा बुर्ज़ पर खैराबाद के बाबा शक्तिसिंह भारतसिंहोत को तैनात किया।

एकलिंगगढ़ पर करजाली के महाराज बाघसिंह (महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र), धायभाई कीका व 700 अरबी मुस्लिम सिपाहियों को तैनात किया। महाराज बाघसिंह ने दुश्मनभंजक तोप की कमान संभाली।

कृष्णपोल दरवाज़े के मोर्चे पर शिवरती के महाराज अर्जुनसिंह (महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र), जमादार उमर व 3 हज़ार सिपाहियों को तैनात किया गया। इंद्रगढ़ के मर्हले में 500 अरबी सिपाहियों को तैनात किया गया।

शहरकोट के अग्निकोण वाले बुर्ज़ पर 200 सिंधी सिपाहियों को तैनात किया। कमल्या पोल पर मेवाड़ के प्रधानमंत्री सनाढ्य ब्राह्मण ठाकुर अमरचंद बड़वा 500 अरबी सिपाहियों के साथ तैनात रहे। (कमल्या पोल का नाम बाद में 19वीं सदी में महाराणा सज्जनसिंह ने उदयपोल रख दिया)।

कृष्णगढ़ के मर्हले में गाडरमाला के बाबा मुहब्बत सिंह और जमधार सिंधी कोली को एक हज़ार राजपूत व अन्य सिपाहियों सहित तैनात किया गया। कमल्या पोल से उत्तरी कोण के बुर्ज़ पर महुवा के बाबा सूरतसिंह को तैनात किया गया।

सूरजपोल दरवाज़े पर कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह केसरीसिंहोत कृष्णावत चुंडावत, हमीरगढ़ के धीरतसिंह उम्मेदसिंहोत राणावत और कायस्थ सुन्दरदास को सैनिक टुकड़ी सहित तैनात किया गया।

सूरजपोल के सामने सूरजगढ़ के मर्हले में रूद के ठाकुर जवानसिंह गोकुलदासोत शक्तावत को 500 सिंधी सिपाहियों समेत तैनात किया गया। ईशान कोण के ज्वालामुखी बुर्ज़ पर कायस्थ शंभूनाथ को शम्भूबाण तोप के साथ तैनात किया गया, यह तोप शंभूनाथ की देखरेख में ही तैयार हुई थी।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

उदयपुर के दिल्ली दरवाज़े के मोर्चे पर सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत कृष्णावत, नठारा के रावत विजयसिंह चुंडावत कृष्णावत, सोलंखी पेमा, कायस्थ नाथ, साह मौजीराम बोल्या महाजन व 3 हज़ार सिंधी सिपाहियों समेत सिंधी जमादार को तैनात किया गया।

दिल्लीगढ़ के मर्हले और सारणेश्वरगढ़ के मर्हले में सियाड़ के ठाकुर सूरजमल शक्तावत को उनके साथी राजपूतों व 800 सिंधी सिपाहियों समेत तैनात किया गया। डंडपोल के मोर्चे पर बदनोर के ठाकुर अक्षयसिंह मेड़तिया राठौड़ को उनके पुत्र कुँवर ज्ञानसिंह व अन्य 200 राजपूतों के साथ तैनात किया गया।

हाथीपोल दरवाज़े पर रूपाहेली के ठाकुर शिवसिंह को उनके पुत्र व पौत्र सहित व छोटी रूपाहेली के ठाकुर ज्ञानसिंह को तैनात किया गया।

दोनों तरफ की दीवारों पर 500 सिंधी सिपाहियों, मूंगाणा के ठाकुर के भाई, मेड़तिया वैरीशाल, 140 घुड़सवार, 400 पैदल राजपूत, ईटाली के मेड़तिया रामसिंह राठौड़ आदि को तैनात किया गया, जिनकी संख्या कुल संख्या 3 हज़ार थी।

हाथीपोल के सामने शमशेरगढ़ के मर्हले में लसाणी के ठाकुर गजसिंह जगावत चुंडावत को लसाणी के राजपूतों व अन्य 200 सिंधी सिपाहियों के साथ तैनात किया गया। हाथीपोल व चांदपोल के बीच की दीवार पर 200 सिंधी सिपाहियों को तैनात किया गया।

अम्बावगढ़ के मर्हले में पासवान गुहिलोत जोरा को 500 सिंधी सिपाहियों के साथ तैनात किया गया। ब्रह्मपोल दरवाज़े पर गजसिंह सोलंखी पासवान को 500 सिंधी सिपाहियों के साथ तैनात किया गया।

चांदपोल दरवाज़े पर सनवाड़ के बाबा शम्भूसिंह राणावत को 200 सिंधी सिपाहियों के साथ तैनात किया गया। शिताब पोल के दरवाजे पर कारोई के महाराज दौलतसिंह और बावल्यास के महाराज अनोपसिंह को तैनात किया गया।

नाव के कारखाने के मोर्चे पर चारण पन्ना आढा को 35 बन्दूकचियों के साथ तैनात किया गया। महलों से दक्षिण में स्थित जलबुर्ज़ के मोर्चे पर दौलतगढ़ के ठाकुर ईसरदास सांगावत चुंडावत को तैनात किया गया।

इन सबके अलावा जो सामंत व सहयोगी महाराणा अरिसिंह के साथ इस लड़ाई में रहे, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :- वरसोडा के नाथसिंह चावड़ा, थांवला के नाथसिंह चौहान, बनेड्या के चतरसिंह चौहान, कांसेड़ी के सरदारसिंह पंवार, महाराणा अरिसिंह के मामा ध्रांगधरा के साहिबसिंह झाला व उनके पुत्र सामंतसिंह, भूणास के शिवसिंह,

पुरोहित नन्दराम, महता अगरचन्द, जनानी ड्योढ़ी के दारोगा महता लक्ष्मीचंद, साह मोतीराम बोल्या व उनके पुत्र एकलिंगदास, भट्ट देवेश्वर, नगराज, धायभाई रूपा, धायभाई कीका, धायभाई हट्टू, धायभाई उदयराम, धायभाई रत्ना, चतुर्भुज, कुशला, कायस्थ प्रताप।

इनके अलावा सिंधी और अरबी सिपाहियों के अफ़सर, जो महाराणा के साथ थे, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :- ज़मादार फिरोज़, ज़मादार लड़ाऊ, ज़मादार खगोट, ज़मादार खगोट द्वितीय, ज़मादार मलंग, ज़मादार गुल हाला, ज़मादार चंदर, ज़मादार जादू, ज़मादार शेरबेग, ज़मादार बदयो, ज़मादार अहमद, ज़मादार मुराद।

माछला मगरा

महाराज बाघसिंह की रहमदिली, बहादुरी व चतुराई :- लड़ाई के दौरान हज़ारों की तादाद में सैनिक होने से रसद की भारी कमी हो गई। जब तक घेराबंदी रही, तब तक करजाली के महाराज बाघसिंह (महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र) व उनके साथियों ने एक समय का खाना छोड़ दिया।

जब भी वे भोजन करने बैठते, तब नक्कारा बजाया जाता और भोजन जरूरतमंदों में बांट दिया जाता। महाराज बाघसिंह ने एकलिंगगढ़ पर दुश्मनभंजन नामक तोप चलाकर मराठों को बहुत हानि पहुंचाई।

शहरपनाह के दक्षिण की तरफ से कोई भी मराठा सिपाही नज़दीक तक नहीं आ सका। माधवराव सिंधिया ने तोप की मार बंद करवाने के लिए महाराज बाघसिंह को 50 हजार रुपए का लालच दिया और कहलाया कि तोप की मार बन्द कर दी जावे, हमारी फ़ौज कृष्णपोल दरवाज़े से भीतर आएगी।

महाराज बाघसिंह ने रुपए तो रख लिए, लेकिन जब माधवराव की फ़ौज कृष्णपोल दरवाज़े के नज़दीक आई, तो दुश्मनभंजन तोप से ऐसी तेज़ी से गोले दागे कि कई मराठा सिपाही मारे गए और बचे-खुचे पीछे हट गए। इस दौरान मराठों को जान-माल का भारी नुकसान हुआ।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

5 Comments

  1. Yogendra Singh
    October 7, 2021 / 3:31 am

    Hme Rana Lakha,Rana Hammir Singh Sisodia,Rana Sanga,BappaRawal ka itihaas jaanana hai.
    In sbke upar bhi series shuru kriye.

    • Yogendra Singh
      October 7, 2021 / 3:33 am

      Rana Kumbha ka itihaas bhi aur inke pehle bhi jitne Maharana hue hai un sbka itihaas shuru kriye ab pls.

  2. Muhammad
    October 7, 2021 / 5:31 am

    Mewar ki Maharaniyo ke nam nahi miltey unhey bhi likkhey hukum nam sahit

  3. Muhammad
    October 7, 2021 / 5:32 am

    Maharana Shri Ari Singhji ki mata ka kya nam tha

  4. October 7, 2021 / 8:59 am

    You are done grate job tanveer singh sarangdewot .your series is very reliable.keep it up👌👍

error: Content is protected !!