मेवाड़ महाराणा अरिसिंह द्वितीय (भाग – 2)

मेवाड़ की गद्दी पर महाराणा अरिसिंह बैठ गए और मेवाड़ के पिछले महाराणा राजसिंह द्वितीय के पुत्र रतनसिंह की परवरिश गुप्त रूप से उनके मामा गोगुन्दा के जसवंत सिंह झाला ने की। बाद में सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत के ज़रिए रतनसिंह को कुंभलगढ़ भी ले जाया गया।

मराठों द्वारा धन वसूल करना :- महाराणा राजसिंह द्वितीय के करार के मुताबिक ठेके पर रखे हुए परगनों (रामपुरा, बूढ़ा, जारड़ा, कणजेड़ा) की आमदनी मराठों को पहुंचानी थी व पेशवा को डेढ़ लाख रुपए प्रतिवर्ष देने थे, जो कुछ वर्षों से नहीं पहुंचाया गया।

जिससे मल्हार राव होल्कर ने अपनी फौज समेत मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी और ऊंटाले तक आ पहुंचा। मेवाड़ की आर्थिक स्थिति इस समय अच्छी नहीं थी, जिस वजह से महाराणा अरिसिंह ने कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह और धायभाई रूपा को मल्हार राव के पास समझाने के लिए भेजा।

लेकिन दामों का लोभी बातों से कैसे राज़ी हो सकता था। नतीजतन मल्हार राव ने 60 लाख रुपए लेकर वहां से जाना स्वीकार किया। महाराणा अरिसिंह 51 लाख रुपए ही दे पाए।

इस कारण मल्हार राव ने मेवाड़ के ठेके पर रखे हुए परगनों पर कब्ज़ा कर लिया। इस तरह ये परगने हमेशा के लिए मेवाड़ के हाथों से निकल गए। मराठों की दिन प्रतिदिन बढ़ती लूटमार के कारण मेवाड़ की आर्थिक स्थिति व प्रजा बदहाल हुए जा रही थी।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

सामंतों पर अविश्वास :- महाराणा अरिसिंह ने चाटुकारों की बातों में आकर मेवाड़ के सच्चे हितैषी ठाकुर अमरचंद बड़वा को पद से हटाकर जसवंतराय पंचोली को अपना मुसाहब बनाया। महाराणा ने महता अगरचंद बच्छावत को अपना सलाहकार नियुक्त किया, जो राज्य के सच्चे हितैषी थे।

महाराणा अरिसिंह से बहुत से सामंत नाराज थे। महाराणा ने इनको मनाने के बजाय दमन नीति से काम लेना शुरू कर दिया। महाराणा ने सिंध व गुजरात के मुस्लिम सैनिकों को बुलाकर अपने यहां नियुक्त किया।

महाराणा द्वारा बागोर के महाराज नाथसिंह की हत्या करवाना :- महाराणा अरिसिंह को बागोर के महाराज नाथसिंह से बहुत भय था। इसके कुछ कारण थे, अव्वल तो ये कि मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह राठौड़ महाराज नाथसिंह के अच्छे मित्र बन गए थे।

इसके अलावा महाराज नाथसिंह का नाम मराठों में भी प्रसिद्धि पा चुका था। एक और मुख्य कारण ये था कि महाराणा अरिसिंह के ज़िद्दी रवैये से नाराज़ होकर महाराज नाथसिंह अपनी जागीर बागोर में चले गए थे।

इन सब कारणों से महाराणा अरिसिंह ने महाराज नाथसिंह को मरवाना तय किया। महाराणा ने भैंसरोड के रावत लालसिंह को इस कार्य के लिए नियत किया और उनसे कहा कि तुमने ये काम कर दिया, तो तुमको अव्वल दर्जे के उमरावों के बराबर इज़्जत मिलेगी।

रावत लालसिंह उदयपुर से रवाना हुए और अपनी जागीर भैंसरोड में चले गए। फिर महाराणा अरिसिंह ने रावत लालसिंह को पत्र लिखकर जल्द से जल्द महाराज नाथसिंह को मारने का आदेश दिया, तो रावत लालसिंह ने आदेश अनसुना कर दिया।

इसी तरह महाराणा अरिसिंह पत्र लिखते रहते और रावत लालसिंह बात को टालते रहते। सवा वर्ष बीत जाने के बाद जब रावत लालसिंह पर दबाव बढ़ता गया, तो आखिरकार उनको आदेश मानना ही पड़ा। इसके अलावा महाराणा अरिसिंह ने रावत लालसिंह को यह काम करने की सौगंध भी दिलवा दी।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

4 फरवरी, 1764 ई. को रावत लालसिंह बागोर पहुंचे, जहां महाराज नाथसिंह नर्मदेश्वर का पूजन कर रहे थे। रावत लालसिंह ने दस कदम की दूरी से महाराज नाथसिंह को प्रणाम किया। महाराज नाथसिंह ने कहा कि “पूजन के समय उठकर ताजीम देना उचित नहीं, इसलिए क्षमा चाहता हूं।”

रावत लालसिंह ने अचानक कटार निकालकर महाराज नाथसिंह की छाती पर इतनी ज़ोर से फेंक कर मारा कि वह कटार महाराज नाथसिंह के कलेजे को फाड़ता हुआ पीठ से बाहर निकल गया। रावत लालसिंह तुरंत घोड़े पर बैठकर भाग निकले।

महाराज नाथसिंह ने अंतिम क्षणों में नर्मदेश्वर पर रक्त चढ़ाते हुए कहा कि “मेरा इरादा महाराणा अरिसिंह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का बिल्कुल नहीं था। अगर मेरा इरादा ख़राब नहीं है, तो मुझे मारने वाले को नर्मदेश्वर सज़ा देंगे।”

रावत लालसिंह अपनी जागीर भैंसरोडगढ़ को लौट गए और वहां से एक ख़त महाराणा अरिसिंह को लिखा और घटना की सूचना दी। महाराणा अरिसिंह ने पत्र के जवाब में लिखा कि तुमने हमारे आदेश का मान रखा, अब हम भी अपने वचन से तुम्हें सोलह सामन्तों के बराबर सम्मान देंगे। इस घटना के कुछ ही महीनों बाद रावत लालसिंह की भी मृत्यु हो गई।

महाराणा अरिसिंह द्वारा सलूम्बर रावत जोधसिंह चुण्डावत की हत्या :- महाराणा का मन बागोर महाराज की हत्या से भरा नहीं, तो उन्होंने उस ठिकाने के सामंत को मरवाना चाहा, जहां की हर पीढ़ी ने मेवाड़ व महाराणा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।

रावत जोधसिंह को मारने का कारण ये था कि वे उन प्रमुख सामन्तों में से थे, जो महाराणा अरिसिंह की अनुचित नीतियों के ख़िलाफ़ थे। महाराणा ने सलूम्बर के सच्चे व मेवाड़ हितैषी सामंत रावत जोधसिंह चुण्डावत की हत्या करने के लिए उन्हें बहाने से अपने महल बुलाया।

लेकिन सलूम्बर रावत को इस षड्यंत्र का पता चल गया था, तो उन्होंने आने में आनाकानी की। महाराणा अरिसिंह को पता चला कि रावत जोधसिंह अपने ससुराल मोही (भाटी राजपूतों का ठिकाना) जाने वाले हैं, तो महाराणा पहले ही नाहरमगरा पहुंच गए, जहां से मोही का रास्ता जाता है।

महाराणा अरिसिंह के दरबार का दृश्य

रावत जोधसिंह नाहरमगरे तक पहुंचे, तो महाराणा को बिना प्रणाम किए जाना उन्हें उचित न लगा। रावत जब महाराणा से मिले, तो महाराणा उन्हें एकांत में ले गए और अपनी जेब से एक पान की बीड़ी निकाल कर उन्हें दी और कहा कि इसे या तो आप ख़ुद खा लेवें या फिर मुझे खिला देवें।

सलूम्बर रावत को मालूम पड़ गया कि इसमें जरूर ज़हर मिला हुआ है, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने बीड़ी खाते हुए कहा कि “आप चिरायु हों, सेवक के प्राण मालिक की ख़ैरख्वाही के लिए ही हैं”

कुछ समय बाद सलूम्बर रावत जोधसिंह का देहांत हो गया। इन सामंत की छतरी नाहरमगरे के पास अब तक मौजूद है। रावत जोधसिंह के पुत्र पहाड़सिंह सब जानते हुए भी अपनी कुल मर्यादा की ख़ातिर अपने पिता के हत्यारे महाराणा अरिसिंह के सामने हाजिर हो गए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Muhammad
    October 21, 2021 / 5:52 am

    Hukum Aap Maharana Hamir II ke barey me nahi likh rahey

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