मुहम्मदशाह की मृत्यु :- अप्रैल, 1748 ई. में मुगल बादशाह मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई। इसके बाद अहमद शाह बहादुर मुगल तख़्त पर बैठा। इन दिनों मुगल बादशाह अधिक समय तक राज नहीं कर पा रहे थे। मुगल सल्तनत का प्रभाव बहुत क्षीण हो चुका था।
1 अगस्त, 1748 ई. – बगरू का युद्ध :- खारी नदी की लड़ाई के बाद जयपुर के माधवसिंह और मराठा खंडेराव अपनी-अपनी फ़ौज समेत रामपुरा चले गए, जहां इन दोनों ने आपस में पगड़ी बदलकर भाईचारा दिखाया। जयपुर के माधवसिंह, बूंदी के राव उम्मेदसिंह, मराठा खंडेराव व कोटा की फौजें मिल गई।
माधवसिंह व मराठों ने महाराणा जगतसिंह द्वितीय को युद्ध का न्यौता भेजा, लेकिन महाराणा को मराठों से दगा होने की आशंका थी, इसलिए उन्होंने स्वयं ना जाकर 4 हजार सवारों समेत देवगढ़ के रावत जसवंत सिंह चुण्डावत, शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह, बेगूं के रावत मेघसिंह चुण्डावत, सनवाड़ के महाराज शंभूसिंह वीरमदेवोत राणावत व कायस्थ गुलाबराय को भेज दिया।
महाराणा जगतसिंह ने ठाकुर शिवसिंह (रूपाहेली वालों के पूर्वज) को मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह राठौड़ के पास भेजा, तो महाराजा अभयसिंह राठौड़ ने भी अपने 2 हजार घुड़सवार माधवसिंह की मदद खातिर भेज दिए।
उधर जयपुर के महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह कछवाहा और भरतपुर के राजा सूरजमल जाट की फ़ौजें आपस में मिल गईं। 3 दिन तक दोनों सेनाओं में बगरू गांव में लड़ाई होती रही और अंत में सवाई ईश्वरीसिंह की हिम्मत टूट गई।
सवाई ईश्वरीसिंह ने मल्हार राव होल्कर को अधिक धन का लालच देकर संधि कर ली, जिसके तहत माधवसिंह को टोंक के 4 परगने दे दिए गए। फिर भी मराठे महाराजा ईश्वरीसिंह को लगातार परेशान करते रहे, जिससे इन महाराजा को गलत व्यसनों की लत लग गई।
23 दिसंबर, 1750 ई. को शराब की लत में जकड़े महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह ने मराठों से तंग आकर ज़हर खा लिया, जिससे उनका देहांत हुआ। मल्हार राव होल्कर ने जयपुर पर कब्ज़ा कर लिया और माधवसिंह को ख़बर भिजवा दी।
माधवसिंह रामपुरा से रवाना होकर उदयपुर आए और महाराणा से कुछ फ़ौजी मदद लेकर सांगानेर तक पहुंचे, जहां बूंदी और करौली के राजाओं व मल्हार राव होल्कर ने माधवसिंह की पेशवाई की।
इन्हीं दिनों में किसी फ़साद के चलते जयपुर के शेखावत राजपूतों ने तीन-चार हज़ार मराठों को घेरकर मार डाला, जिसके एवज में महाराजा माधवसिंह ने टोंक के चार परगने व रामपुरा का परगना मराठों को दे दिया। उक्त परगने मेवाड़ के महाराणा ने ही माधवसिंह को दिलवाए थे।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने मेवाड़ के भाणजे माधवसिंह को जयपुर का राज दिलाने के लिए 84 लाख रुपए व हज़ारों राजपूतों के सिर गंवा दिए, जो उनकी अदूरदर्शिता का सूचक है। बदले में महाराजा बनने के बाद माधवसिंह ने महाराणा के उपकारों को भुला दिया।
जून, 1751 ई. में महाराणा जगतसिंह द्वितीय बहुत बीमार हो गए, तो वे लोग डरने लगे, जिन्होंने उत्तराधिकारी कुँवर प्रतापसिंह को बंदी बनाने में मदद की थी। क्योंकि उन्हें भय था कि कुँवर प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे, तो हमको जरूर मार डालेंगे।
ये सब विचार करके उन लोगों ने कुँवर प्रतापसिंह को ज़हर देकर महाराणा के छोटे भाई नाथसिंह को गद्दी पर बिठाने का इरादा किया, लेकिन ये बात महाराणा जगतसिंह को पता चल गई, तो उन्होंने उन लोगों को शहर से बाहर निकलवा दिया। 5 जून, 1751 ई. को महाराणा जगतसिंह द्वितीय का देहांत हो गया।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- अपने पिता महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की विशाल छतरी (आहड़) :- इस छतरी का गुम्बद बनने से पहले ही महाराणा जगतसिंह द्वितीय का देहांत हो गया था।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने उदयपुर राजमहल में छोटी चित्रशाली की चौपाड़ में इजारे का काम, पीतम निवास महल में चीनी की ओवरी व तिवारी बनवाई। इन महाराणा में जगन्नाथ राय मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, जिसका कुछ हिस्सा औरंगज़ेब के समय मुगलों ने तोड़ दिया था।
महाराणा जगतसिंह की रानी भटियाणी ने द्वारिकानाथ का मंदिर बनवाया और भूमिदान भी किया। मेवाड़ की राजकुमारी चंद्र कँवर बाई, जिनका विवाह जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह के साथ हुआ था, उनकी धाय भीला गूजर के पुत्र माना गूजर ने उदयपुर के गोवर्धनविलास में कुंड व बगीचा बनवाया।
महाराणा जगतसिंह के सान्निध्य में सनावड़ ब्राह्मण हरिवंश ने शिवालय, बावड़ी व बाड़ी का निर्माण करवाया। महाराणा जगतसिंह के मंत्री भटनागर कायस्थ देवजी ने विष्णु मंदिर, शिवालय, बावड़ी व धर्मशाला का निर्माण करवाया।
जगनिवास निर्माण (लेक पैलेस) :- अपने कुँवरपदे काल में एक दिन कुँवर जगतसिंह ने महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय से अर्ज़ किया था कि हमको हमारी रानियों समेत कुछ दिनों के लिए पिछोला झील के बीच बने जगमंदिर में जाने की आज्ञा हो।
महाराणा ने कुँवर के इस अय्याश रवैये को कुबूल नहीं किया और कहा कि तुमको ऐसा करना ही है तो खुद महल बनवाओ फिर रहो।
इसी ताने को याद रखते हुए महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने पिछोला झील में जगनिवास नामक महल बनवाने का विचार करके 4 मई, 1743 ई. को नींव का मुहूर्त करवाया। 1 फ़रवरी, 1746 ई. को वास्तु का मुहूर्त किया गया। इसके निर्माण में लाखों रुपए खर्च हुए।
ये महल डोडिया ठाकुर सर्दारसिंह की निगरानी में बनकर तैयार हुआ। 2 फरवरी, 1746 ई. को जगनिवास महलों के बनने की ख़ुशी में भव्य उत्सव रखा गया। चारणों को हाथी, घोड़े, ज़ेवर, कपड़े आदि भेंट किए गए। तीन दिन तक भव्य उत्सव चलता रहा। पहले दिन सारे जनाने को भी आमंत्रित किया गया।
जनाने में महाराणा जगतसिंह की 9 रानियां, भाणेज माधवसिंह की 4 रानियां, महाराणा के भाई महाराज नाथसिंह की 6 ठकुरानियाँ, युवराज प्रतपसिंह की 3 कुँवरानियां, भाई बाघसिंह की 4 ठकुरानियाँ और भाई अर्जुनसिंह की एक ठकुरानी शामिल थीं।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय के सान्निध्य में कवि नन्दराम ने जगतविलास नामक एक ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ के अनुसार महाराणा जगतसिंह ने जगविलास के जलसे में निम्नलिखित लोगों को घोड़े भेंट किए :-
ठाकुर सरदारसिंह डोडिया जिनकी देखरेख में जगनिवास महलों का निर्माण हुआ उनको सोवनकलस नामक घोड़ा, भाणेज माधवसिंह को धसलबाज नामक घोड़ा, राव रामचंद्र को हरबख्श नामक घोड़ा, रावत फतहसिंह चौहान को बाज बहादुर, रावत जसवंतसिंह को पंतगराज,
रावत मेघसिंह को नीलराज, मानसिंह झाला को दिलमालक, रावत फतहसिंह चुंडावत दुलहसिंहोत को सियाहलक्खी, राज कान्हसिंह झाला को प्राणप्यारा, कानोड़ के रावत पृथ्वीसिंह सारंगदेवोत को भी प्राणप्यारा नामक एक अन्य घोड़ा,
महाराज कुशलसिंह शक्तावत को सोनामोती, रावत हटीसिंह शक्तावत को सुर्खा, महाराज तख्तसिंह को लालप्यारा, बागोर वालों के पूर्वज महाराज नाथसिंह को पीताम्बरबख्श, महाराज बाघसिंह को वसन्तराज, महाराज बख्तसिंह को तेज बहादुर, राजा भाई सरदारसिंह को कल्याण,
राजा उम्मेदसिंह को सूरति, बाबा भारतसिंह को अतिगति, मुहकमसिंह राठौड़ को कन्हवां, रावत लालसिंह को रत्न, रावत जोरावरसिंह को प्यारा, रावत जयसिंह चुंडावत को हयगुमान, कुँवर नाथसिंह झाला को रूपवंत, सन्तोषराम पुरोहित को रणछोरपसाव, प्रधान देवकरण को चौगानबाज़ नामक घोड़ा भेंट किया।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा दी गई जागीरों का वर्णन :- महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने सलूम्बर के रावत केसरीसिंह चुण्डावत के दूसरे पुत्र लालसिंह चुण्डावत को भैंसरोडगढ़ की जागीर दी और उनको द्वितीय श्रेणी का सर्दार बनाया।
महाराणा जगतसिंह ने सलूम्बर के रावत केसरीसिंह चुण्डावत के तीसरे पुत्र अर्जुनसिंह चुण्डावत को कुराबड़ की जागीर दी और उनको द्वितीय श्रेणी का सर्दार बनाया। महाराणा ने सलूम्बर रावत केसरीसिंह चुण्डावत के चौथे पुत्र रोडसिंह को साटोला की जागीर दी।
महाराणा जगतसिंह ने ठाकुर सरदारसिंह डोडिया को लावे का ठिकाना दिया, जहां सरदारसिंह ने किला बनवाकर उसका नाम सरदारगढ़ रखा। महाराणा ने बान्सी के रावत नरहरदास शक्तावत के वंशज दुर्जनसिंह को सेमारी की जागीर दी।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय का परिवार :- इन महाराणा की 14 रानियां थीं। महाराणा जगतसिंह की 4 संतानें हुईं, जिनमें से 2 पुत्र कुँवर प्रतापसिंह व कुँवर अरिसिंह हुए और 2 पुत्रियां रत्न कँवर व सूरज कँवर हुईं। रत्न कँवर का विवाह मारवाड़ के बख्तसिंह के पुत्र विजयसिंह से हुआ।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)