1728 ई. – भाणजे माधवसिंह को रामपुरा देना :- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की बहिन व जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह की रानी चंद्रकुँवरी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम माधवसिंह रखा गया।
(महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने अपनी पुत्री चंद्रकुँवरी बाई का विवाह जयपुर के महाराजा जयसिंह से इस शर्त पर करवाया था कि कोई पुत्र उत्पन्न हुआ, तो उसे ही जयपुर का राज दिया जावे, भले ही अन्य पुत्र उससे बड़े हों)
माधवसिंह से पहले महाराजा जयसिंह के 2 पुत्र और हो चुके थे, जिनके नाम शिवसिंह और ईश्वरीसिंह थे। महाराजा सवाई जयसिंह को लगा कि अब माधवसिंह को राज मिला तो बहुत फसाद होगा और माधवसिंह की तरफदारी मेवाड़ वाले जरूर करेंगे।
सबसे पहले तो महाराजा जयसिंह ने जयपुर के महलों में ही माधवसिंह को मरवाना चाहा, परंतु रानी चंद्रकुँवरी बाई के रहते सफलता नहीं मिली। फिर महाराजा जयसिंह उदयपुर आए और महाराणा के मंत्री पंचोली बिहारीदास से मिले। महाराजा जयसिंह ने रामपुरा की जागीर माधवसिंह को दिलवाने की बात कही, पर पंचोली बिहारीदास ने इस बात को मंज़ूरी नहीं दी।
महाराजा जयसिंह दोबारा उदयपुर आए और महाराणा संग्रामसिंह से भेंट करके रामपुरा माधवसिंह को दिलाने की बात कही। धायभाई नगराज ने महाराणा को समझाया कि “महाराजा जयसिंह और मुगल बादशाह मुहम्मदशाह के बीच बढ़िया व्यवहार है, इसलिए बात न मानने पर बादशाह के हमले का भी ख़तरा है।”
लेकिन पंचोली बिहारीदास ने महाराणा संग्रामसिंह से कहा कि “रामपुरा के राजपूत भी चंद्रावत सिसोदिया ही हैं, उनकी जागीर छीनकर कछवाहों को देने में हमारी बदनामी है। मुगल बादशाह के हमले की फ़िक्र न करें, वह मैं सम्भाल लूंगा।”
इस तरह महाराणा संग्रामसिंह दोनों की बातों पर विचार करने लगे। रात के वक्त महाराजा जयसिंह बिहारीदास से मिलने गए और बड़ी खुशामद की बातें करते हुए कहा कि हमारी रियासत का फ़साद घटाना और बढाना अब तुम्हारे हाथों में है।
बिहारीदास पर महाराजा जयसिंह की बातों का असर हुआ। अगले दिन जब महाराणा से चर्चा हुई, तब बिहारीदास विरोध में कुछ न बोले और बस चुप रहे। तब धायभाई नगराज ने महाराणा को एक बार फिर समझाया, तो महाराणा ने रामपुरा का परगना माधवसिंह के नाम लिख दिया।
महाराणा ने रामपुरा जागीर देकर एक शर्त रखी कि माधवसिंह बड़ा होगा, तब उसे एक हज़ार घुड़सवार और एक हज़ार बन्दूकचियों समेत 6 माह तक मेरी सेवा में रहना होगा और लड़ाई के वक़्त 3 हज़ार घुड़सवार और 3 हज़ार बन्दूकचियों के साथ। इस तरह माधवसिंह अपनी माँ चंद्रकुँवरी बाई के साथ उदयपुर आ गए और वहीं रहने लगे।
रावत केसरीसिंह चुंडावत की परीक्षा :- सलूम्बर के रावत केसरीसिंह चुंडावत को लेकर कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने महाराणा संग्रामसिंह के कान भरे, पर महाराणा को उन पर पूरा विश्वास था। जब रावत केसरीसिंह लंबे समय तक मालवा के पठानों का दमन करने के बाद अपनी जागीर की तरफ लौटे, तब महाराणा संग्रामसिंह ने एक चोबदार को सलूम्बर भेजा।
रावत केसरीसिंह के सलूम्बर के द्वार तक पहुंचते ही चोबदार ने हाजिर होकर कहा कि महाराणा ने बुलावा भिजवाया है, तो रावत केसरीसिंह अपने परिवार से मिले बिना ही उदयपुर के लिए रवाना हो गए, जिससे महाराणा ने खुश होकर उनको बहुत कुछ इनाम देना, लेकिन रावत ने इसे अपना कर्तव्य बताकर कुछ भी लेने से इनकार किया।
मराठों से मेलजोल के प्रयास :- दिल्ली के पतन और मराठों के उत्थान को देखते हुए महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने मराठों से मेलजोल बढ़ाने का प्रयास किया। महाराणा ने पीपलिया के बाघसिंह शक्तावत के पुत्र जयसिंह को अपने वकील के तौर पर छत्रपति शाहू महाराज के पास भेजा।
छत्रपति शाहू महाराज मेवाड़ के वंशधर ही थे, इसलिए जयसिंह का बहुत सम्मान करते थे और उनको आदर से काका कहा करते थे।
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- सहेलियों की बाड़ी, नाहरमगरे के महल, उदयसागर के पास वाली पहाड़ी पर शिकार का मकान, उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाली, जगमंदिर में नहर के महल व दोनों दरीखाने, महासती में अपने पिता के दाहस्थान पर विशाल छतरी,
त्रिपोलिया दरवाज़ा, अगड़ (हाथियों के लड़ने के स्थान के मध्य में खड़ी आड़), पीछोला झील के पूर्व की ओर दक्षिणामूर्ति शिवालय (दक्षिणामूर्ति नामक ब्राह्मण के सुझाव पर), देलवाड़े की हवेली के पास शीतला माता का मंदिर (कुँवर जगतसिंह के शीतला निकलने के अवसर पर)
पीछोला झील के निकट सीसारमा गांव में वैद्यनाथ का विशाल मंदिर (अपनी माता देवकुँवरी बाई के आदेश से), जगदीश मंदिर का जीर्णोद्धार जिसका कुछ अंश महाराणा राजसिंह के समय औरंगज़ेब ने तुड़वा दिया था।
11 जनवरी, 1734 ई. को महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय का देहांत हो गया। आहड़ में इन महाराणा की विशाल व खूबसूरत छतरी विद्यमान है।
महाराणा संग्रामसिंह द्वारा किए गए दान-पुण्य व भेंट देने के कार्य :- महाराणा संग्रामसिंह ने दिनकर भट्ट को कोद्याखेड़ी गांव, कवि करणीदान को एक लाख पशाव, वैद्य मंगल को एक गांव, ब्राह्मण देवराम को एक पालकी व एक गांव, ज्योतिषी कमलाकांत भट्ट को तिलपर्वत सहित एक गांव भेंट किया।
महाराणा संग्रामसिंह ने एकलिंगजी के मंदिर में हाथी-घोड़े आदि भेंट किए। महाराणा ने ऋषभदेव (केसरियानाथ) मंदिर के भोग के लिए एक गांव भेंट किया। महाराणा ने दक्षिणामूर्ति नामक एक दक्षिणी विद्वान ब्रह्मचारी को एक गांव व एक सिरोपाव भेंट किया।
महाराणा संग्रामसिंह ने काशी निवासी शंभू के पुत्र पंडित दिनकर को एक घोड़ा, स्वर्ण व एक गांव भेंट किया। महाराणा ने चंद्रग्रहण के दिन पंडित पुण्डरीक भट्ट को एक घोड़ा, एक गांव व यज्ञ हेतु 10 हज़ार रुपए भेंट किए। महाराणा के शासनकाल में राजमाता ने चांदी के चार तुलादान किए।
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की रानियाँ :- इन महाराणा की कुल 16 रानियाँ थीं, जिनमें से 10 के नाम कुछ इस तरह हैं :- 1) अतरकंवर बाई, जो कि जैसलमेर के महारावल अमरसिंह भाटी की पुत्री थीं। 2) सूरजकंवर बाई 3) उम्मेदकंवर बाई, जो कि बबोरी के मुकुंदसिंह पंवार की पुत्री थीं। ये महाराणा जगतसिंह द्वितीय की माता थीं।
4) रामकंवर बाई, जो कि समदरड़ी के दुर्गादास राठौड़ की पुत्री थीं। 5) सूरजमल राठौड़ की पुत्री 6) इंद्रकंवर बाई, जो कि प्रतापसिंह भाटी की पुत्री थीं। 7) महाकंवर बाई, जो कि ईडर के राठौड़ हटीसिंह की पुत्री थीं। इन रानी के पुत्र कुँवर नाथसिंह हुए।
8) महाकंवर बाई, जो कि गोगुन्दा के झाला राज अजयसिंह की पुत्री थीं। 9) वीरपुरा के दयालराम की पुत्री 10) जसकंवर बाई, जो कि झाला कर्णसिंह की पुत्री थीं। इन रानी के पुत्र कुँवर बाघसिंह व कुँवर अर्जुनसिंह हुए। कुँवर अर्जुनसिंह का जन्म महाराणा संग्रामसिंह के देहांत के 3 माह बाद हुआ।
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की पुत्रियां :- 1) सर्वकुँवर 2) रूपकुँवर 3) ब्रजकुँवर :- इनका विवाह कोटा के महाराव दुर्जनसाल हाड़ा के साथ हुआ। सम्भवतः इन महाराणा की एक पुत्री का नाम चिमनी बाई भी था।
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र :- 1) महाराणा जगतसिंह द्वितीय 2) कुँवर नाथसिंह, जिनको बागोर की जागीर मिली थी, जो बाद में जब्त की गई, इनके वंशज उदयपुर के नेतावल और पीलाधर में व जयपुर के गैणोली और भजेड़ा में हैं।
3) कुँवर बाघसिंह, जिनको करजाली का ठिकाना मिला। 4) कुँवर अर्जुनसिंह, जिनको शिवरती का ठिकाना मिला। महाराणा संग्रामसिंह की खवास से 2 पुत्र हुए, जिनके नाम नारायणदास और केसरीदास रखे गए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)