आऊवा के ठाकुर बख्तावर सिंह की एक पुत्री राज कंवर का विवाह बांसवाड़ा के रावल भवानी सिंह से हुआ। ठाकुर बख्तावर सिंह का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए लाम्बिया ठिकाने के ठाकुर भवानी सिंह और ठकुराइन रतन कंवर के पुत्र कुशाल सिंह को गोद लिया गया।
ठाकुर कुशाल सिंह चांपावत मारवाड़ रियासत के आऊवा ठिकाने के ठाकुर बने, जिन्होंने 1857 ई. की क्रान्ति में भाग लिया। आसोप, आलनियावास, गूलर, लाम्बिया, वंतावास, बाटा, भिवालिया, रुढावास आदि ठिकाओं ने ठाकुर कुशालसिंह का साथ दिया।
1856 ई. से ही ठाकुर कुशालसिंह अपने सहयोगी सिमरथ सिंह के ज़रिए मेवाड़ और मारवाड़ के जागीरदारों में एकता स्थापित करने का कार्य कर रहे थे। ठाकुर कुशाल सिंह का सम्पर्क महान स्वतन्त्रता सेनानी तांत्या टोपे के साथ भी था।
जोधपुर लीजन के विद्रोही सैनिकों ने खेरवा नामक स्थान पर पड़ाव डाला। जोधपुर लीजन में शीतल प्रसाद, तिलकराम, मोती खां व छावनी के पूर्बिया सैनिक थे। इन्होंने चलो दिल्ली, मारो फ़िरंगी के नारे लगाए।
उस समय ठाकुर कुशालसिंह 10 सिर और 54 हाथ वाली सुगाली माता की पूजा कर रहे थे कि तभी उन्हें एरिनपुरा से जोधपुर लीजन के सैनिकों के खेरवा आने की खबर मिली। ठाकुर कुशालसिंह खेरवा पहुंचे और उन 600 घुड़सवार व एक हज़ार पैदल सैनिकों को आऊवा ले आये।
ठाकुर कुशालसिंह के चाकरों ने समझा कि सुगाली माता का आदेश होने से ही ठाकुर खेरवा गए और एरिनपुरा के सैनिकों को साथ लाए। ये बात गांव-गांव में फैलती गई और लोगों का समर्थन ठाकुर कुशालसिंह को मिलता गया।
बिठोड़ा का युद्ध :- यह युद्ध 8 सितम्बर, 1857 ई. को हुआ। आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह, आलनियावास के ठाकुर अजीत सिंह, गुलर के ठाकुर बिशन सिंह आदि अपनी-अपनी सेना लेकर आऊवा आ गए। खेजड़ला ठिकाने की फ़ौज भी आऊवा आ गई।
मेवाड़ के सलूम्बर, रूपनगर, लासाणी व आसींद ठिकाओं से भी फौजी मदद आऊवा भिजवाई गई। कुल मिलाकर लगभग 6 हज़ार सैनिकों का नेतृत्व ठाकुर कुशालसिंह के हाथों में आ गया।
दूसरी ओर मारवाड़ के महाराजा तख्त सिंह राठौड़ ने किलेदार ओनाड़ सिंह और फौजदार राजमल लोढ़ा के नेतृत्व में 10 हज़ार सैनिक व 12 तोपें क्रान्तिकारियों के खिलाफ भेजी। इस सेना के साथ कैप्टन हीथकोट के नेतृत्व में अंग्रेजों की एक पलटन भी थी। कैप्टन हीथकोट ए.जी.जी. का खास था।
मारवाड़ दरबार व अंग्रेजों की इस सेना में मेहता विजयसिंह, रायमल, सिंघवी कुशलराज और मुस्ताक अली भी शामिल थे। कुछ दिनों तक दोनों सेनाओं में हल्की लड़ाइयां होती रही और फिर 8 सितंबर के दिन बिठोड़ा में बड़ी लड़ाई हुई। ठाकुर कुशालसिंह इस लड़ाई में हावी हो गए।
मारवाड़ की सेना के सेनापति ओनाड़ सिंह मारे गए। रायमल भी मारा गया। कैप्टन हीथकोट व मारवाड़ की सेना में शामिल कुशलराज सिंघवी और मेहता विजयसिंह ने जान बचाकर भागने में गनीमत समझी। हीथकोट भी भाग निकला।
इस युद्ध में मारवाड़ की सेना के 76 सैनिक रणभूमि में मारे गए। बिठोड़ा के इस युद्ध में आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह चांपावत ने विजय प्राप्त की। मारवाड़ की सेना का सामना लूट लिया गया। मारवाड़ की तोपें, युद्ध सामग्री और 1 लाख रुपए क्रांतिकारियों के हाथ लगे।
सेनापति ओनाड़ सिंह के मारे जाने व अपनी सेना के परास्त होने से महाराजा तख़्त सिंह काफी दुःखी हुए। उन दिनों मेहरानगढ़ के किले में दिन और सायं के समय कुल दो बार नौपत बजाई जाती थी, लेकिन महाराजा ने शोक मनाते हुए एक बार ही नौपत बजवाई।
चेलावास का युद्ध :- ये युद्ध 18 सितम्बर, 1857 ई. को हुआ। बिठोड़ा के युद्ध में हार की ख़बर सुनकर ए.जी.जी. पेट्रिक लॉरेन्स बौखला गया और वह ख़ुद ब्यावर से सेना लेकर आऊवा की तरफ रवाना हुआ। लॉरेन्स ने मारवाड़ के पॉलिटिकल एजेण्ट मोक मैसन को भी सेना सहित आऊवा पहुंचने का आदेश दिया।
ठाकुर कुशाल सिंह चांपावत ने मारवाड़ और अंग्रेजों की मिली जुली सेना को पराजित किया और एजेण्ट मोक मैसन का सिर काटकर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया। लॉरेन्स भाग निकला।
इस युद्ध को “गोरे-काले का युद्ध” भी कहते हैं। इस युद्ध के बाद 10 अक्टूबर को आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में 4 हज़ार क्रांतिकारियों की सेना ने दिल्ली की ओर कूच किया और रेवाड़ी पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन ये लोग 16 नवम्बर को नारनौल में अंग्रेज अफसर गेरार्ड से पराजित हुए।
आऊवा का युद्ध :- यह युद्ध 20 जनवरी, 1858 ई. को लड़ा गया। भारत के गवर्नर लॉर्ड कैनिंग ने पालनपुर और नसीराबाद से कर्नल होम्स के नेतृत्व में एक सेना आऊवा भेजी। कर्नल होम्स के नेतृत्व में बम्बई की पलटन और 12वीं नेटिव इन्फेंट्री ने आऊवा के किले को घेर लिया।
जोधपुर महाराजा की फ़ौज भी इस पलटन की सहायता कर रही थी। 20 जनवरी को घमासान युद्ध हुआ। अंग्रेजों की तोपों ने लगातार 4 दिनों तक आऊवा के किले पर तोपों के गोलों की बरसात जारी रखी।
आऊवा के किसी विश्वासघाती ने अंग्रेजों से रिश्वत लेकर रात के समय किले के द्वार खोल दिए, जिससे किलेवालों को सम्भलने का मौका नहीं मिला और ठाकुर कुशाल सिंह पराजित हुए। 23 जनवरी को ठाकुर कुशालसिंह ने अपने छोटे भाई पृथ्वीसिंह को किला सौंप दिया और स्वयं बच निकलने में सफल रहे।
24 जनवरी को अंग्रेजों ने आऊवा के किले पर कब्ज़ा कर लिया। 25 जनवरी, 1858 ई. को अंग्रेजों ने आऊवा व आसपास के क्षेत्र में कहर बरपाया। 120 क्रांतिकारी गिरफ्तार किए गए, जिनमें से 24 को एक लाइन में खड़ा करके फांसी दे दी गई। एक साथ इतनी ज्यादा संख्या में फांसी का यह विचित्र मामला था। आऊवा की गलियों में लाशें बिखरी पड़ी थीं।
आऊवा का कामेश्वर मंदिर अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया और सुगाली माता की मूर्ति भी खंडित कर दी। अंग्रेजों ने आऊवा व आऊवा से सम्बंधित 6 किलों को सुरंगें बनाकर बारूद से उड़ा दिया। आऊवा का एक बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो गया, हालांकि बाद में जीर्णोद्धार किया गया।
29 जनवरी, 1858 ई. को कर्नल होम्स ने ए.जी.जी. लॉरेंस को एक पत्र लिखकर आऊवा के युद्ध का हाल बताया। इस पत्र में उसने क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा देने, आऊवा की गलियों में लोगों की लाशें बिखरी पड़ी होने और आऊवा के किले को ध्वस्त करने के बारे में लिखा है।
ठाकुर कुशाल सिंह ने मेवाड़ रियासत के ठिकाने कोठारिया के रावत जोधसिंह चौहान के यहाँ शरण ली। 8 अगस्त, 1860 ई. को ठाकुर कुशाल सिंह ने नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
10 नवम्बर, 1860 ई. को मेजर टेलर की अध्यक्षता में गठित जाँच आयोग ने उन्हें निर्दोष माना और रिहा कर दिया। 25 जुलाई, 1864 ई. को आऊवा के इन महान क्रान्तिकारी ठाकुर कुशाल सिंह चांपावत का मेवाड़ में देहान्त हो गया।
ठाकुर कुशाल सिंह के 4 विवाहों का वर्णन मिलता है :- 1) ठकुरानी गुलाब कंवर, जो कि डिग्गी के ठाकुर मेघसिंह खंगारोत की पुत्री थीं। 2) ठकुरानी केसर कंवर, जो कि रूपनगर के ठाकुर नवलसिंह सोलंकी की पुत्री थीं। 3) ठकुरानी सरदार कंवर, जो कि जालोरा के ठाकुर अजीतसिंह भाटी की पुत्री थीं। 4) ठकुरानी चाँद कंवर, जो कि साटोला के ठाकुर चिमनसिंह चुंडावत की पुत्री थीं।
ठाकुर कुशाल सिंह व ठकुरानी गुलाब कंवर की पुत्री चांद कंवर का विवाह 1860 ई. में खेतड़ी के राजा फतहसिंह शेखावत से हुआ। ठाकुर कुशाल सिंह व ठकुरानी गुलाब कंवर के पुत्र ठाकुर देवी सिंह हुए, जो आऊवा की गद्दी पर बैठे। ठाकुर कुशाल सिंह व ठकुरानी चाँद कंवर के पुत्र कुँवर रणजीत सिंह हुए, जिनको ठाकुर शार्दूल सिंह ने गोद ले लिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा-मेवाड़)