मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय (भाग – 5)

महाराणा अमरसिंह द्वितीय द्वारा मुगल सल्तनत के बागी को शरण देना :- बादशाही सिपहसालार रामपुरा के राव गोपालसिंह दक्षिण में तैनात थे, तब उनके बेटे रतनसिंह ने रामपुरा पर कब्ज़ा कर लिया। रतनसिंह पर औरंगज़ेब की मिहरबानी थी, इसलिए राव गोपालसिंह का पक्ष नहीं सुना गया।

1700 ई. में राव गोपालसिंह मुगल सल्तनत से बग़ावत करके मेवाड़ आए, जहां महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने उनको शरण दी। महाराणा ने मलका बाजणां के जागीरदार उदयभान शक्तावत के ज़रिए राव गोपालसिंह को फौजी मदद भी दिलवाई और कहा कि बादशाही मुल्क में लूटमार करो।

जब महाराणा अमरसिंह की शिकायत औरंगज़ेब तक पहुंची, तो वज़ीर असद खां ने महाराणा अमरसिंह को एक ख़त लिखा, जो हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

“बादशाही दरगाह में अर्ज़ हुआ है कि नालायक गोपाल मालका और बाजणा के पहाड़ों में ठहरा में हुआ है। यह गांव पहले मांडलगढ़ के परगने में शामिल था, लेकिन राणा जयसिंह ने इस तरफ़ के 17 गांव अपनी जागीर में शामिल कर लिए थे।

अब भी यह जगह उन उम्दा सरदार (महाराणा अमरसिंह) के कब्ज़े में है। उदयभान शक्तावत, उस दोस्त (महाराणा अमरसिंह) का नौकर जो इस गांव का जागीरदार है, बदनसीब गोपाल के साथ इत्तिफाक रखता है और वह दोस्त (महाराणा अमरसिंह) भी मदद ख़र्च देते हैं।

बादशाही दरगाह में यह बात बहुत ख़राब मालूम हुई। इन गांवों को अपने इलाके में जानकर ताकीद रखें कि उदयभान बेजा हरकतों से शर्मिंदा होकर हुक्म के बर्ख़िलाफ अमल न करे। वह दोस्त (महाराणा) भी मदद ख़र्च से हाथ खेंचकर बादशाही खैरख्वाही पर कायम रहें।

ऐसी कोशिश करें कि गोपाल क़ैद होकर बादशाही दरगाह में पहुंचे। इस काम को अपनी उम्दा ख़िदमतगुज़ारी समझें। अगर उदयभान कहने पर अमल न करे, तो उसको भी निकालकर इत्तिला देवें और हर तरह अच्छा बन्दोबस्त करें। ज्यादा क्या लिखा जावे।”

उदयपुर राजमहल

इस प्रकार वज़ीर असद खां के खत का महाराणा पर कोई असर नहीं पड़ा। महाराणा अमरसिंह ने ना तो गोपालसिंह को बंदी बनाया और ना ही उदयभान पर कोई कार्रवाई की। इन बातों से नाराज़ होकर औरंगज़ेब के बेटे शहज़ादे शाहआलम बहादुरशाह ने 8 मई, 1700 ई. को महाराणा अमरसिंह को एक ख़त लिखा, जो हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

“हिंदुस्तान के राजाओं के बुजुर्ग, बड़े जागीरदारों के उम्दा राणाजी, मिहरबानियों से इज़्ज़तदार होकर जानें कि जितनी बादशाही खैरख्वाही करेंगे, उतने बड़े दर्जे पर पहुंचेंगे। ज्यादा ताबेदारी पर कायम रहना चाहिए। अगर मेरी इस बात को मानोगे, तो मैं तुम्हारा साथी हूँ और अगर बच्चों की बातों पर ध्यान रखा, तो तुम्हारा इख्तियार है, मैं शरीक नहीं हूं।”

19 दिसंबर, 1700 ई. को औरंगज़ेब के बेटे शहज़ादे आज़म ने महाराणा अमरसिंह को खत लिखकर एक हज़ार घुड़सवार मालवा में भेजने को कहा। आज़म ने हाथी, घोड़े आदि तोहफे के तौर पर महाराणा के पास भिजवाने हेतु रवाना किए, लेकिन किसी कारण से महाराणा तक नहीं पहुंच सके।

महाराणा अमरसिंह ने आज़म द्वारा फ़ौज की मांग करने के डेढ़-दो वर्ष बाद 1702 ई. में फौजी टुकड़ी मालवा की तरफ रवाना की, हालांकि ये फ़ौज संख्या में एक हज़ार से बहुत कम थी, लेकिन फिर भी जुल्फिकार खां ने एक हज़ार सवारों की रसीद लिख दी।

इन्हीं दिनों बांसवाड़ा के रावल अजबसिंह ने डांगल क्षेत्र में मेवाड़ के 27 गांवों में दख़ल देना शुरू कर दिया, जिसके बाद 27 अप्रैल, 1702 ई. को रावल अजबसिंह को सख़्त हिदायत दी गई कि मेवाड़ के क्षेत्रों में किसी भी तरह की दखलंदाजी न की जावे।

दिसम्बर, 1702 ई. में महाराणा अमरसिंह ने एक फौज रामपुरा की तरफ़ भेजी, क्योंकि रामपुरा के राव गोपालसिंह के बेटे रतनसिंह ने वहां अपने पिता को ही गद्दी से हटाकर अवैध कब्जा कर लिया था। इस कारण महाराणा की शिकायत औरंगज़ेब से की गई। बाद में महाराणा के वकील बाघमल ने होशियारी से बहाने बनाकर मामला शांत कर दिया, जिससे औरंगज़ेब की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

जो फ़ौजी टुकड़ी महाराणा अमरसिंह ने मालवा की तरफ भेजी, उसके बदले में शाइस्ता खां ने उनको सिरोही और आबूगढ़ की जागीरें दिलवाईं। महाराणा अमरसिंह इससे सन्तुष्ट नहीं हुए और उन्होंने पुर, बदनोर और मांडलगढ़ के परगनों की भी मांग रखी।

इन्हीं दिनों महाराणा अमरसिंह व मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह राठौड़ में बिगाड़ हो गया, क्योंकि औरंगज़ेब की तरफ से सिरोही और आबूगढ़ की जागीरें देवड़ा राजपूतों से छीनकर महाराणा अमरसिंह को दिला दी गईं, इसलिए महाराजा अजीतसिंह देवड़ा राजपूतों की तरफदारी करने लगे। हालांकि बाद में महाराजा अजीतसिंह ने स्वयं आगे होकर महाराणा अमरसिंह से मैत्री सम्बन्ध बनाये।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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