मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय (भाग – 4)

1699 ई. में महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने बादशाही मुल्क लूटने के इरादे से अपने ननिहाल बूंदी की तरफ कूच किया था, लेकिन बूंदी वालों के समझाने पर महाराणा पुनः मेवाड़ लौट आए। इस बात को महाराणा से नाराज़ डूंगरपुर रावल खुमानसिंह ने शिकायती तौर पर औरंगज़ेब को सूचित किया।

फिर औरंगज़ेब के वज़ीर असद खां ने महाराणा को खत लिखकर चेतावनी दी। इसके बाद महाराणा अमरसिंह ने विचार किया कि इस वक्त और बात बढ़ाना ठीक नहीं है इसलिए उन्होंने तसल्ली देते हुए 29 अक्टूबर, 1699 ई. को ये पत्र औरंगज़ेब को लिखा, जो हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

“इन दिनों में बादशाही ख़त इस मज़मून से आया कि बग़ैर हुज़ूरी हुक्मों के तीर्थ को गया, कहा गया कि ऐसी कार्रवाई फिर कभी न करें और तीनों परगनों में दख़ल न दिया जावे। बदनसीबी से मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया है। मेरे तीर्थ जाने को दुश्मनों ने बढ़ा चढ़ाकर बादशाह की बुज़ुर्ग, नेक तबीअत को नाराज़ कर दिया।”

महाराणा अमरसिंह ने इस पत्र में बहाने बनाये हैं कि उनका मकसद सिर्फ तीर्थ पर जाने का ही था, लेकिन वास्तव में बूंदी की तरफ ऐसा कोई तीर्थ था ही नहीं, जहां महाराणा अपनी गद्दीनशीनी के बाद जाते। जैसा कि पहले ही कहा गया है कि महाराणा अमरसिंह कूटनीति में माहिर थे, सो दिन-दिन प्रयोग भी किया करते थे।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराणा अमरसिंह ने एक फ़ौजी टुकड़ी पृथ्वीराज और रामराय के ज़रिए दक्षिण में भिजवाई थी, जो कि 4 नवम्बर, 1699 ई. को दक्षिण में पहुंची। पृथ्वीराज और रामराय को तीन-तीन थान कपड़े भेंट किए गए और इस फ़ौजी टुकड़ी को वहीं मुकर्रर कर दिया गया।

9 नवम्बर, 1699 ई. को औरंगज़ेब के वज़ीर असद खां ने महाराणा अमरसिंह को खत लिखकर सूचित किया कि आपके द्वारा भेजे गए जगरूप, पृथ्वीराज, रामराय और बाघमल को फौजी टुकड़ी के साथ तैनात कर दिया गया है।

4 जनवरी, 1700 ई. को अजमेर के वकाया निगार ने औरंगज़ेब को खत लिखकर कहा कि “उदयपुर का राणा अमरसिंह इन दिनों बहुत सी फ़ौज इकट्ठी कर रहा है, मालूम नहीं उसका क्या इरादा है।”

औरंगज़ेब ने महाराणा अमरसिंह के 3 परगने पुर-माण्डल, बदनोर व मांडलगढ़ ज़ब्त कर लिए थे, लेकिन उसके बाद हुसैन अली नाम का एक बादशाही सिपहसालार इन परगनों में जाकर राजपूतों पर हमले करता था, जिसको लेकर महाराणा अमरसिंह ने औरंगज़ेब से शिकायत की और कहलवाया कि हुसैल कुली को समझा दिया जावे।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराणा अमरसिंह का पत्र पाकर औरंगज़ेब के एक मंत्री ने 14 जनवरी, 1700 ई. को एक ख़त सैयद हुसैन नामक एक सिपहसालार को भेजा, जो हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

“बुज़ुर्ग खानदान वाले सैयद हुसैन को मालूम हो कि इन दिनों में बहादुर ख़ासियत राणा अमरसिंह ने लिखा है कि परगना बदनोर वगैरह 3 इलाके जो बादशाही खालिसे में शुमार किए गए हैं, हुसैन अली, अब्दुल्ला खां का बेटा वहां जाकर राजपूतों को सताता है, इसलिए उसको समझा दिया जावे कि वहां किसी तरह का दख़ल न दे।”

15 जनवरी, 1700 ई. को गद्दी पर बैठने के लगभग सवा वर्ष बाद महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया।

इन्हीं दिनों मेवाड़ में चुंडावत और राठौड़ राजपूतों के बीच फसाद हुआ। दरअसल मेवाड़ के 3 परगने औरंगज़ेब ने बादशाही ख़ालिसे में शुमार करके राठौड़ राजपूतों को सौंप दिए थे। इस कारण से इन राठौड़ राजपूतों और मेवाड़ वालों में अक्सर झगड़े हुआ करते थे।

राजसिंह राठौड़ ने मेवाड़ के कुछ चुण्डावत राजपूतों को मारकर पुर के समीप अधरशिला नाम की गुफा में डाल दिए और वह आमेट के रावत दूलहसिंह के 4 भाइयों को पकड़ कर ले गया।

महाराणा अमरसिंह ने क्रोधित होकर मांगरोप के महाराज जसवंतसिंह और देवगढ़ के रावत द्वारिकादास को पुर-माण्डल पर आक्रमण करने भेजा। महाराज जसवंतसिंह और रावत द्वारिकादास में किसी बात पर बिगाड़ हो गया और रावत द्वारिकादास ल्हेसवे गांव में ही ठहर गए।

महाराज जसवंतसिंह अपने भाइयों पेमसिंह व बख्तसिंह के साथ पुर के गढ़ में जा घुसे। राजसिंह राठौड़ ज्यादा देर मुकाबला नहीं कर सका और गढ़ छोड़कर माण्डल में छिप गया। इस लड़ाई में विजय सिसोदियों को मिली।

जुझारसिंह राठौड़ ने महाराणा अमरसिंह के खिलाफ कई शिकायती पत्र औरंगज़ेब को लिखे। महाराणा अमरसिंह ने औरंगज़ेब के एक बेटे को पत्र लिखकर इसका जवाब दिया। महाराणा अमरसिंह की ये आदत थी कि वे सल्तनत के ख़िलाफ़ काम भी करते थे और समय-समय पर पत्रों द्वारा ख़ुद को सही व दूसरों को गलत भी साबित करते रहते।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराणा अमरसिंह द्वारा लिखा गया पत्र :- “बुज़ुर्ग ख़त से इत्तिला पाई, जिसमें लिखा था कि राणा की फ़ौज जमा होकर फ़साद करना चाहती है। जुझारसिंह कई बातें अर्ज़ कर चुका है, जिसके जवाब में अर्ज़ किया जाता है कि जुझारसिंह की बातों को बिल्कुल झूठ समझना चाहिए।

जुझारसिंह का भतीजा मेरे मातहत (अधीनस्थ) दूल्हसिंह के चार भाइयों को पकड़कर ले गया। मैंने दूल्हसिंह से कहा कि बदला लेना सही नहीं है, सब्र करना चाहिए। पर जुझारसिंह ने अपनी तरफ से बादशाह को झूठ तूफ़ान लिख भेजा। इस मुआमले की तहकीकात हो और फ़सादी या झूठे को सज़ा दी जावे, ताकि दोबारा कोई बादशाही दरगाह में ऐसी झूठी अर्ज़ न करे।”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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