मेवाड़ महाराणा जयसिंह (भाग -2)

1681 ई. :- मारवाड़ के वीर राठौड़ दुर्गादास, राठौड़ सोनिंग, महाराणा जयसिंह, पारसोली के राव केसरीसिंह चौहान, सलूम्बर के रावत रतनसिंह चुंडावत आदि ने मिलकर औरंगज़ेब के बेटे शहज़ादे अकबर को बादशाह बनाने का लालच देकर उसको कई पत्र लिखे।

इसी दौरान शहज़ादे मुअज़्ज़म ने अकबर को पत्र लिखकर कहा कि तुम इन राजपूतों के बहकावे में हरगिज़ मत आना। फिर मुअज़्ज़म ने एक पत्र औरंगज़ेब को लिखकर कहा कि राजपूत लोग मेरे भाई अकबर को बहका रहे हैं, आप उसको नसीहत दो।

औरंगज़ेब को शहज़ादे अकबर पर भरोसा था। औरंगज़ेब ने मुअज़्ज़म को खत लिखकर कहा कि तुम अकबर के बारे में झूठ बोल रहे हो। औरंगज़ेब ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि राजपूतों ने शहज़ादे अकबर को बहकाने से पहले मुअज़्ज़म को बहकाने की कोशिश की थी।

इसलिए औरंगज़ेब को लगा कि मुअज़्ज़म बहकावे में आ चुका है और अब वह अकबर पर आरोप लगा रहा है। आखिरकार मेवाड़ और मारवाड़ के प्रमुख राजपूतों ने मिलकर शहज़ादे अकबर को औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ कर ही दिया।

महाराणा जयसिंह

अकबर ने अपनी फ़ौज के सरदारों और अफ़सरों को बड़े-बड़े इनाम देकर अपनी तरफ पूरी तरह से मिला लिया और शुआअत खां, कुली खां आदि जिन्होंने कहना नहीं माना, उनको क़ैद कर लिया। अकबर ने तहव्वुर खां को 7 हज़ार का मनसब देकर अमीर-उल-उमरा बना दिया।

इस तरह मेवाड़ के 6 हज़ार सिसोदिया राजपूत घुड़सवार व हज़ारों पैदल राजपूत, 30 हजार राठौड़ व शेष अकबर के 12 हज़ार घुड़सवार व हज़ारों की पैदल फौजें मिलाकर कुल 70 हजार की जर्रार फौज ने अजमेर की तरफ़ कूच किया।

औरंगज़ेब इस समय अपनी राजधानी से दूर अजमेर में था और उसकी फौजें अलग-अलग जगह तैनात थी, जिस वजह से उसके खुद के पास इस समय महज़ 800 सवार ही थे, लेकिन बग़ावत की ख़बर सुनकर फ़ौरन आसपास से फ़ौजें मंगवाई गई।

जल्द ही 10 हज़ार की फ़ौज इकट्ठी हो गई, लेकिन ये फ़ौज 70 हज़ार का मुकाबला करने के लायक नहीं थी। शहज़ादा मुअज्ज़म इस समय अपनी फौज समेत मेवाड़ की उदयसागर झील पर तैनात था।

वह अपनी बाकी फौज को छोड़कर 1 हज़ार घुड़सवारों सहित औरंगज़ेब की मदद खातिर रवाना हुआ और 3 दिन में 80 कोस का सफ़र तय करके 25 जनवरी, 1681 ई. को अजमेर पहुंचा।

औरंगज़ेब को मुअज्ज़म पर शक था। मुअज्ज़म के अजमेर पहुंचने पर औरंगज़ेब ने अपने सिपाहियों से कहा कि तोपखाने का मुंह मुअज्ज़म की तरफ कर दो।

फिर मुअज्ज़म से कहलवाया कि अगर नेकनियती से आये हो, तो फौज को वहीं छोड़कर अपने दोनों बेटों समेत चले आओ। मुअज्ज़म ने ऐसा ही किया।

औरंगज़ेब का बेटा शहज़ादा अकबर

औरंगज़ेब के पास अब तक भी 16 हजार की फौज ही थी, लेकिन फिर भी उसने अकबर के बारे में कहा कि “बहादुर ने अच्छा मौका पाया है, अब जल्दी क्यों नहीं आता ?”

औरंगज़ेब फ़ौज समेत कुछ आगे बढ़ा और देवराई/दौराई गांव में पड़ाव डाला, इसी जगह उसने अपने भाई दाराशिकोह को शिकस्त दी थी। शहज़ादा अकबर भी फ़ौज समेत आगे बढ़ा।

अकबर की सबसे बड़ी गलती ये थी कि उसने बादशाह बनने के सपने देखते हुए विलासिता में इस क़दर समय गंवा दिया कि 120 मील का सफ़र तय करने में उसने 15 दिन लगा दिए, जिससे औरंगज़ेब को सम्भलने का मौका मिल गया।

औरंगज़ेब ने अकबर के मुख्य सेनापति तहव्वुर खां को उसके ससुर इनायत खां के ज़रिए एक ख़त लिखवाकर भेजा और कहलवाया कि

महाराणा जयसिंह

“अगर तुमने इसी वक़्त शहज़ादे अकबर का साथ छोड़कर बादशाह के सामने हाज़िरी नहीं दी, तो तुम्हारी औरतें सबके सामने ज़लील की जाएंगी और तुम्हारे बच्चे कुत्तों की कीमत पर गुलामों की तरह बेचे जाएंगे।”

इस धमकी से डरकर तहव्वुर खां अकबर का साथ छोड़कर औरंगज़ेब के पास आ गया। औरंगज़ेब उस समय नमाज़ पढ़ रहा था। उसने अपने सिपाहियों से कहा कि तहव्वुर खां से हथियार ले लो और उसको आने दो।

तहव्वुर खां ने हथियार देने से मना कर दिया, तब औरंगज़ेब ने कहा कि उस नालायक को हथियार समेत आने दो।

तहव्वुर खां जैसे ही भीतर आया, उसे कुछ खतरा लगा, तो वह फौरन हड़बड़ी में वापिस डेरों से बाहर जाने लगा कि तभी रस्सी में उसका पैर उलझ गया। फिर औरंगज़ेब के सिपाहियों ने तहव्वुर खां जैसे महत्वपूर्ण पद वाले व्यक्ति के टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

औरंगज़ेब

तहव्वुर खां के इस क़दर मारे जाने के बाद शहज़ादे अकबर की फ़ौज में शामिल बहुत से मुगल सिपाही भयभीत होकर औरंगज़ेब से मिल गए। फिर औरंगज़ेब ने एक शातिर चाल चली।

औरंगज़ेब ने शहज़ादे अकबर के नाम एक पत्र लिखा कि “ए मेरे प्यारे शहज़ादे, तू मेरी हिदायत के मुवाफ़िक़ इन नालायक राजपूतों को खूब धोखा देकर लाया है, लेकिन अब तुम इनको अपनी हरावल में रखो ताकि हमारी तोपों से ये कत्ल हो जावें और उसी वक़्त तुम हमारी फौज में शामिल हो जाना”

औरंगज़ेब ने अपने संदेशवाहक से कहा कि “ये ख़त अकबर के नाम है, लेकिन पहुंचना राजपूतों के हाथ में चाहिए”।

जब दुर्गादास राठौड़ के हाथ में ख़त गया, तो उन्होंने रातों रात बिना सोचे विचारे सिसोदियों और राठौड़ों को साथ मिलाकर खेमे में ही अकबर के विरुद्ध जंग छेड़ दी।

वीर दुर्गादास राठौड़

शहज़ादा अकबर कुछ समझ पाता उसके पहले ही राजपूतों ने अकबर के सैंकड़ों सिपाहियों को मारकर छावनी लूट ली और मारवाड़ की तरफ़ लौट आए। लाचार अकबर बचे खुचे मुगलों सहित भाग निकला।

इस तरह औरंगज़ेब ने मात्र एक ख़त से 70 हजार की फौज को तितर-बितर कर दिया। राजपूतों को 2 दिन बाद इस षड्यंत्र का पता चला। अकबर भागते हुए मारवाड़ की तरफ चला गया। उसका बचा खुचा खज़ाना और परिवार के कुछ सदस्य औरंगज़ेब के हाथ लग गए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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