मेवाड़ महाराणा राजसिंह (भाग – 26)

महाराणा राजसिंह के द्वारा व उनके शासनकाल में करवाए गए निर्माण कार्य :- महाराणा राजसिंह ने अपने जीवनकाल में तालाब और बावड़ियां बनवाने में विशेष रुचि दिखाई। महाराणा राजसिंह ने 16 वर्षों में राजसमंद झील बनवाई थी, जिसका वर्णन पहले ही विस्तार से कर दिया गया है। इस झील को बनवाने, प्रतिष्ठा में व दान आदि में मिलाकर कुल लगभग 1 करोड़ 45 लाख रुपए खर्च हुए थे।

महाराणा राजसिंह ने अपनी माता के नाम से एक तालाब बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा 1669 ई. में हुई। इस तालाब का नाम जना सागर रखा गया। वीरविनोद ग्रंथ के अनुसार इसके निर्माण में 2 लाख 61 हज़ार रुपए खर्च हुए, जबकि ओझा जी के अनुसार 6 लाख 88 हज़ार रुपए खर्च हुए। वर्तमान में उसे बड़ी तालाब के नाम से जाना जाता है।

महाराणा राजसिंह ने अपने कुँवरपदे काल में सर्वऋतु विलास बाग और महल का निर्माण करवाया व उसमें हौज, फव्वारे और बावड़ी भी बनवाई। 1660 ई. में महाराणा राजसिंह की एक खवासन सुंदर ने उदयपुर के पारड़ा गांव में सुंदर बाव नाम से एक बावड़ी बनवाई।

देबारी के घाटे का कोट और छोटा दरवाज़ा महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था, जो कि ख़ुर्रम (शाहजहां) ने महाराणा अमरसिंह के समय हुई चढ़ाई के दौरान 1614 ई. में तुड़वा दिया। 1674 ई. में महाराणा राजसिंह ने पुनः देबारी के घाटे का कोट, दरवाज़ा, बावड़ी और छोटा तालाब बनवाया।

महाराणा राजसिंह

महाराणा राजसिंह ने राणा देवली नामक स्थान पर संतू के मगरे में एक सांभर का शिकार करने की याद में एक स्तम्भ का निर्माण करवाया। महाराणा राजसिंह के शासनकाल में 1672 ई. में सिहाड गांव में एक मंदिर बनवाकर श्रीनाथ जी को पाट बिठाया गया। वर्तमान में यह मंदिर विश्वप्रसिद्ध है।

महाराणा राजसिंह ने कांकरोली में द्वारकाधीश जी का मंदिर बनवाया और राजनगर कस्बा भी बसाया, जो वर्तमान में राजसमन्द कहलाता है। महाराणा राजसिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में नए दरवाज़े और दीवारें बनवाईं, लेकिन शाहजहां ने सादुल्ला खां को सेना सहित भेजकर ये नवनिर्माण तुड़वा दिया।

महाराणा राजसिंह ने एकलिंगजी मंदिर के निकट स्थित इंद्रसरोवर के जीर्ण शीर्ण बांध के स्थान पर नया बाँध बंधवाया। महाराणा राजसिंह ने उदयपुर में प्रसिद्ध अम्बा माता के मंदिर का निर्माण करवाया।

महाराणा राजसिंह ने आहड़ में स्थित महासतिया नामक स्थान पर अपने पिता महाराणा जगतसिंह की छतरी का निर्माण करवाया। महाराणा राजसिंह ने बनोल के आनंदसिंह राठौड़ के बलिदान की स्मृति में राजसमंद झील की पाल के निकट एक छतरी का निर्माण करवाया।

महाराणा राजसिंह की पुत्री बाईजीराज ने उदयपुर में तीज का चौक नामक एक कुंड बनवाया। महाराणा राजसिंह के समय मेवाड़ के प्रधान फतहचन्द ने बेडवास की बावड़ी बनवाई।

बेडवास की बावड़ी

महाराणा राजसिंह की पत्नी चारुमति बाई राठौड़ ने राजनगर के पश्चिम में सफ़ेद पत्थर की एक बावड़ी का निर्माण करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा 23 जनवरी, 1676 ई. को हुई। इस बावड़ी के निर्माण में 30 हज़ार रुपए खर्च हुए। रानी चारुमति बाई राठौड़ किशनगढ़ के राजा मानसिंह की बहन थीं।

महाराणा राजसिंह की पत्नी महारानी रामरसदे पंवार ने देबारी के भीतर झरणा की सराय के पास एक त्रिमुखी बावड़ी का निर्माण करवाया। इस बावड़ी की प्रतिष्ठा 1676 ई. में हुई। 24 हज़ार रुपए इस बावड़ी को बनवाने में खर्च हुए।

महाराणा राजसिंह के पुत्र कुँवर जयसिंह ने पिछोला के उत्तर में अम्बावगढ़ के नीचे रंगसागर नाम का तालाब बनवाया। महाराणा राजसिंह द्वारा भवाणा गांव में भेंट की हुई भूमि पर गोविंदराय व्यास की माता ने एक बावड़ी व सराय बनवाई।

महाराणा राजसिंह के मंत्री दयालदास ने नौचौकी बाँध के सामने स्थित पहाड़ी पर आदिनाथ का चतुर्मुख जैनप्रासाद बनवाया। दयालदास ने बड़ोदा नगर के पास स्थित छाणी नामक गांव में स्थित जैनमंदिर में आदिनाथ की मूर्ति स्थापित करवाई।

महाराणा राजसिंह बहुत बड़े दानी थे। उन्होंने अपने जीवन में रत्नों का तुलादान किया था, जिसका संसार भर में एकमात्र शिलालेख का लिखित प्रमाण है। इसके अतिरिक्त महाराणा राजसिंह ने कई बार स्वर्ण व चांदी के तुलादान किए। राजसमन्द झील की प्रतिष्ठा के अवसर भी लाखों रुपए दान किए गए।

महाराणा राजसिंह ने गंधर्व मोहन को रंगीली नामक गाँव भेंट किया। महाराणा ने गोविंदराम व्यास को भवाण नामक गाँव में 75 बीघा भूमि दान की। महाराणा ने पुरोहित गरीबदास को धार, गुणहण्डा, देवपुरा आदि गांव भेंट किए। महाराणा राजसिंह ने विश्वचक्र, हेमब्रम्हाण्ड, पंचकल्पद्रुम, स्वर्णपृथ्वी, कामधेनु, सप्तसागर आदि दान किए।

पंडित देवीदास के पुत्र श्री लालभट्ट ने महाराणा राजसिंह के सम्बंध में राजसिंह प्रभा वर्णनम नामक 101 श्लोकों का काव्य लिखा। मुकुंद ने राजसिंहाष्टक नामक काव्य लिखा। सदाशिव ने राजरत्नाकर नामक ग्रंथ लिखा। सदाशिव के गुरु भानुजित थे। महाराणा राजसिंह के साहित्यिक गुरु नरहरिदास बारहठ थे।

गुरु नरहरिदास बारहठ

महाराणा राजसिंह के सान्निध्य में यजुर्वेद हविर्यज्ञकांडम, वाजसनेयी संहिता, प्रायश्चित भयूख, शुद्धि भयूख, नित्य श्राद्ध विधि, राम कल्पद्रुम, तीर्थरत्नाकरम, चमत्कार चिंतामणि, गोवध व्यवस्थादीप, वाक्यदीप, सीमत पद्धति, जातकर्म पद्धति, उपवीत पद्धति, चतुर्थी कर्म धर्म, मातृ महालय,

श्राद्ध पद्धति, सर्व कर्म साधारण प्रयोग, कार्ष्णि संहिता, मयान भैरवागमनम, देव प्रतिष्ठा पद्धति, अनंत वृतोध्यापनम विधि, पारस्कर गृह्यसुत्रे प्रयोग पद्धति, शिवार्चन विधि, कालिका पुराणम, स्कंद पुराणम, सेतु माहात्म्य, स्मृति सार, वराह संहिता, दशकम आदि ग्रंथों की पांडुलिपियां तैयार की गईं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Amit Kumar
    September 3, 2021 / 4:07 pm

    जय महावीर महाराणा जी की।

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